दुनिया के लिए बेकार हूँ या
अपनों के लिये बेगार हूँ मैं
पर अपनों का ना बेगानों का
उस खुदा का ही तलबगार हूँ मैं।
ना धन दौलत का मैं मालिक हूँ
ना गाडी़ कोठी है पास मेरे
फिर भी गाहे बेगाहे बस यूं हीं
किसी ना किसी का मददगार हूँ मैं।
चाहे पेट कमर से है चिपका
पसलियां गिन लो सारी तुम
फिर भी हर बुराई की खातिर
अभी भी तलवार हूँ मैं।
चाहे न देना कब्र को मिट्टी कोई
इसकी मुझे परवाह नहीं
जब तक है रुह ए बदन मेरे
जालिमों के लिये यलगार हूँ मैं ।
लेखक- सुनीता शर्मा
Vow !!!! Lovely lines . ….