कौन तय करे स्वास्थ्य सेवाओं का मूल्य???
डा राजशेखर यादव पेशे से चिकित्सक है और चिकित्सा सम्बन्धी समसामयिक विषयों पर अपने लेख बात अपने देश की पर प्रकाशित करते रहते है. यह उनका नया लेख आजकल चिकित्सा सेवाओं के मूल्यों को लेकर छिड़ी गर्मागर्म बहस पर आधारित है. और लेखक ने अपने तरीके से समाज में विद्यमान कुछ भ्रांतियों और पुर्बनुमानो को दूर करने का प्रयास किया है
इन दिनों कॉर्पोरेट अस्पतालों के चार्जेज पर देशव्यापी बहस चल रही है।कोई इन्हें मालदीव्स के रिसॉर्ट्स से भी महंगा बता रहा है तो किसी का कहना है कि ये अस्पताल लोगों की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं।सरकार को भी लगा कि रेट्स ज्यादा है तो उसने कॉरपोरेट अस्पतालों में कोरोना के इलाज़ पर कैपिंग करनी शुरू कर दी।
कॉर्पोरेट अस्पतालों का कहना है कि कोविद के दौरान उनके खर्च बेतहाशा बढ़ें हैं,उनके खर्चों की भरपाई यदि मरीज़ नहीं तो कौन करेगा?
सवाल है कि किसी भी स्वास्थ्य सेवा का मूल्य कैसे निर्धारित हो?
क्या सरकारों को स्वास्थ्य सेवाओं के मूल्य निर्धारित करने चाहिये या फिर अस्पतालों पर ये काम छोड़ देना चाहिए कि वो अपनी सेवाओं का मूल्य कितना रखें।
अभी एक अर्थशास्त्री मित्र का लेख पढ़ा ।उन्होंने Carl Menger के मार्जिनल यूटिलिटी के नियम के बारे में लिखा था।
Carl Menger ने कहा था कि किसी भी वस्तु का अपना कोई मूल्य नही होता है।मनुष्य यानि वस्तु लेने वाले जो मूल्य लगाएं वही होता है व मनुष्य उसका मूल्य अपनी आवश्यकता व उस वस्तु की उपलब्धता के आधार पर लगाता है। जैसे,वायु के बिना मनुष्य दो मिनट भी जीवित नही रह सकता लेकिन फिर भी बहुमूल्य वायु का वास्तविक मूल्य शून्य है क्योंकि वायु सर्वत्र विद्यमान है। यानि आवश्यकता से कई गुना अधिक वायु उपलब्ध है।
एक 80 वर्षीया गाएनीकॉलोजिस्ट बता रही थी कि कैसे सत्तर के दशक में उनके छोटे से कस्बे में सिजेरियन के चार्जेज 25 से 30 हज़ार होते थे।आज 2020 में राजस्थान के बहुत से छोटे कस्बों में 20-22हज़ार में सिजेरियन करने वाली स्त्री रोग विशेषज्ञ मिल जाएंगी।
मतलब गाएनेकोलोजिस्ट की सर्वत्र उपलब्धता ने ऐसा चमत्कार किया है कि कई स्थानों पर 2020 में सिजेरियन आपरेशन के चार्जेज 1970 के सिजेरियन चार्जेज से भी कम है।
कोविद के दौरान मालदीव्स के रिसोर्ट से भी महंगे होने का लांछन जिन कॉर्पोरेट अस्पतालों पर लग रहा है वैसे ही एक कॉर्पोरेट अस्पताल को साल भर पहले हम सभी ने 3 हज़ार रुपये में एंजियोग्राफी के विज्ञापन देते हुए भी देखा है।
आज आपको कॉर्पोरेट अस्पतालों के चार्जेज से कष्ट हो सकता है लेकिन याद रखिये ,ये चार्जेज और ये कष्ट स्थायी नही है।
यदि हमारी सरकारें हर छोटे बड़े शहर में कॉर्पोरेट अस्पतालों जैसे सरकारी अस्पताल बना दें तो इन अस्पतालों के चार्जेज पर प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है बिना इनकी आर्म ट्विस्टिंग के।
बचपन से पढ़ते आये हैं किसी लाइन को छोटा करने का सबसे बेहतरीन तरीका है उसके बगल में एक लंबी लाइन खींच दो।
स्वास्थ्य सेवाओं का मूल्य मार्किट फोर्सेज के द्वारा ही निर्धारित होना चाहिए न कि सरकारों को इसमें दख़ल करना चाहिए ।
यदि हमारी चुनी हुई सरकारों ने अपना काम सही- सही किया होता तो आज कॉर्पोरेट अस्पतालों की आवश्यकता होती क्या?
-डॉ राज शेखर यादव
फिजिशियन एंड ब्लॉगर
An eye opener article ….Very well written