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कचरे का अधकचरा ज्ञान –व्यंग रचना
सुबह-सुबह घर से मॉर्निंग वॉक के लिए निकला ही था कि मेरे दो पड़ोसी, सपरिवार , अपनी आदत से मजबूर होकर आपस में लड़ रहे थे। यह एक ऐसी घटना थी जिसके हम आदी हो चुके थे। झगड़े का कारण भी कचरा था, लेकिन एक विशेष प्रकार का कचरा जो दोनों परिवार रात के अंधेरे का फायदा उठाकर नाली में बैठकर निस्तारण करते हैं।यूँ तो कचरा निस्तारण की यह प्रणाली प्रधानमंत्री जी के स्वच्छता अभियान की धज्जियां उड़ाती है, लेकिन क्या करें, आदत से मजबूर दोनों परिवार आज भी इस पुरानी परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं। झगड़े का असली कारण यह था कि ये दोनों पड़ोसी, जो कि आमने-सामने रहते हैं, इस कार्य को आमने-सामने की नालियों में अंजाम देते हैं। लेकिन आज इनमे से एक पड़ोसी का बच्चा इस स्यंव निर्मित कचरे के निस्तारण दौरान आत्मुग्ध होकर खेलने-कूदने में इतना मशगूल हो गया कि उसने नाली की दिशा भूलकर अपने कचरे का नमूना थोड़ा आगे डाल दिया। बस इसी बात पर दोनों पड़ोसी भिड़ गए।दलीलें दी जा रही थीं कि अगर मानव शरीर से उत्पन्न कचरा नाली तक सीमित रह जाता, तो सहन कर लेते, लेकिन आज तो हद हो गई, सड़क पर पड़ा कचरा साफ दिख रहा था। आरोप लगाने वाले पक्ष की महिला अड़ी हुई थी कि “मेरे बच्चे की पोटी नहीं है ये, वो तो हरे रंग की करता है, ये पीले रंग का कचरा उनका उत्पादन हो ही नहीं सकता। शाम को ही बच्चे ने पालक खाया था तो निश्चित है हरे रंग का अवशेष होना चाहिए।”मैं थोड़ा बहुत अर्जित मेडिकल ज्ञान के हिसाब से सी आई डी के प्रदुम्न की तरह सोचने लगा की क्यों न इस कचरे का एक सैंपल लेबोरेटरी में भिजवा दिया जाए.दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा और इस झगड़े का निपटारा हो सकता है कि कौन इस मानव अवशिष्ट का असली स्वामी है।
खैर, कॉलोनी की ये समस्या प्रतिदिन की है और कचरा वो चाहे मानव निर्मित या गृह निर्मित, सभी इस आरोप प्रत्यारोप की दलीलों द्वारा माहौल को जीवंत बनाए रखने में मदद करता है। कचरा कहाँ नहीं है? आज सोशल मीडिया को देखें, अपने अधकचरे व्हाट्सअप ज्ञान से लोगों के मन मस्तिष्क को दूषित कर रहे हैं। जहाँ देखो वहाँ कचरे की प्रदर्शनी लग रही है, बुक स्टाल हो, लिटरेचर फेस्टिवल सब जगह कचरा प्रदर्शित है, जो असली लिटरेचर है वो बेचारा अपनी पुरानी रफ जिल्द में समेटा हुआ सिसक रहा है, और कचरा लिटरेचर अच्छे पैकेजिंग कवर के साथ, पेड प्रमोशन और समीक्षाओं के चमकीले पृष्ठों से सुसज्जित धड़डाधड़ बिक रहा है। कथा पंडालों में कथावाचकों द्वारा कथा वाचन कम और मोटिवेशन सेमिनार के प्रवचनों का कचरा परोसा जा रहा है, टीवी न्यूज वाले खबरों के नाम पर, नेता जी वादों और लुभावनी घोषणाओं के नाम पर, मोबाइल पर यंग जनरेशन को मनोरंजन के नाम पर, सभी जगह कचरा डाला जा रहा है, ऐसा अदृश्य कचरा जिसके निस्तारण की भी समस्या नहीं। हमारा मस्तिष्क है न, इसे बिना प्रोसेस किए बस अंदर समा रहा है। इस कचरे से वायु ,जल प्रदुषण की समस्या भी नहीं,अब संस्क्रितिक प्रदूषण की बात करेंगे तो सबसे बढ़िया है इस की बात सिर्फ बड़े बड़े सेमीनार में ए सी हाल में बैठकर ही हो, संस्कृतिक प्रदूषण की समस्या अगर आप गली मोहल्ले में करने लगोगे तो कॉलोनी वाले आपको पागल करार दे देंगे,ये दार्शनिक विचार कम से कम किसी हँसते हुए हसबंड के जहन में तो आ नहीं सकते. सुबह-सुबह मॉर्निंग वॉक के लिए निकलता हूँ कि चौराहे के कोने में एक कचरे का ढेर अपनी सड़ांध और बदबू मेरी नाक में घुसाकर मुझे अभिवादन करता है। बरसों से देख रहा हूँ कचरे का ढेर अंगद के पाँव की तरह ढीठता पूर्वक प्रथ्वी पर चिपका हुआ है , यूँ तो ये भी कुछ विवाहित महिला की तरह है जो 9 महीने के लिए अपने पैर भारी कर लेता है, फिर म्युनिसिपलटी वाले इस पर तरस खाकर इसकी डिलीवरी कराकर इसे ले जाते हैं। अब आप समझ गए होंगे कि कचरा यहाँ स्थायी क्यों रहता है। म्युनिसिपलटी वाले भी जानते हैं, कॉलोनी वालों की मानसिक अवस्था , जहाँ ‘कचरा नहीं डालें’ का साइन बोर्ड लगा होगा लोग वहीं कचरा डालेंगे, इसके लिए एक साइन बोर्ड उन्होंने लगा दिया है, और दूसरा इस कचरे का एक स्थायी भाग हमेशा यहाँ छोड़ा जाता है जो कि कॉलोनी वालों को एक इत्मीनान देता है कि कचरा यहीं डालना है। क्या है कई बार कचरा साफ होने पर कॉलोनी वालों को हर जगह कचरा दान नजर आता है, जहाँ भी सड़क पर थोड़ी खाली जगह दिखी उसे कचरे से सजाकर सड़क की खूबसूरती पर चार चांद लगा देते हैं। कुछ सालों पहले नगरपालिका ने भावुक होकर यहाँ तीन का कंटेनर नुमा कचरे दान भी लगवाया, लेकिन कॉलोनी वालों को उसकी शक्ल पसंद नहीं आयी,इसलिए कभी उसके मुह में कचरा नहीं डाला ,हमेशा कचरा बहार उसके आसपास ही डालते, बेचारा सालों अपना मुह खोले कचरे का इंतज़ार करता रहा,बस कभी कभार कॉलोनी के उद्दंड बच्चों की टोली कचरे की थैली दूर से ही निशाना लगाकर उसके मुह पर फेंकते और १० में से 8 बार निशाना चूकने से मायूस हो जाते, लेकिन इस प्रकार धीरे धीरे गली के बच्चे निशाने बाजी में अभ्यस्त हो गए. इस कनस्तर की ऐसी दुर्दशा पर आंसू बहाकर नगर पालिका वालों ने इसे हटा ही दिया.
यूँ तो कचरा एक ऐसी समस्या है जिसकी चर्चा में पूरा शहर और शहर का हर महकमा व्यस्त है, हर सम्बंधित महकमा उपरी आदेशो की पालना करके कचरा निस्तारण पर शानदार प्रोजेक्ट बनाते है,करोड़ों रूपये का बजट सेंकसन करवा लेते है, लेकिन कचरा निष्पादन की समस्या सिर्फ फाइलों में ही जूझ कर रहा जाती है , इधर ग्रीन ट्रिब्यूनल वाले चिल्ला चिल्ला कर पेनाल्टी लगा लगा कर , कचरे के पीछे पड़े हैं,पर्यावरण बचाओ की दुहाई दे रहे है लेकिन मजाल की किसी के कान में जुएँ भी रेंगे. । लेकिन आम जनता भी क्या करे ,वो तो एक समभाव से इस कचरे को देखती है क्योंकि ये कचरा, जो दिमाग में कचरा भरा है, उससे कहीं ज्यादा भयानक नहीं है। इसलिए कचरे में किसी को कोई समस्या नहीं आती। शहर में कचरा भी अपनी किस्मत की बुलंदी पर इतरा रहा है, सूअरों का तो ये आश्रय स्थल है ही, कचरे बीनने वालों की जीवनी भी इसी से चलती है। अब भला कचरा नहीं होगा तो इनकी रोजी रोटी कैसे चलेगी। शहर में नालियां भी बनाई गई हैं ,बनाई तो पानी के निकास के लिए ,लेकिन काम आ रही है ,इस कचरे को समाहित करने के लिए, क्योंकि नल तो आते ही नहीं, नालियों में अगर पानी बहेगा नहीं तो फिर नालियों में नालियों की तरह सरकारी पैसा व्यर्थ बहाया है उसका सदुपयोग कैसे फाइलों में दिखाया जाए। इसलिए उन्हें कचरादान बना दिया गया है, और इस प्रकार ये नालियां हर साल अपनी मरम्मत का बिल सरकारी फाइलों में दर्ज कराके मोटी राशि उठा ली जाती है। नेताजी का राजनीतिक धंधा भी कचरे से ही चल रहा है, सिर्फ कचरे को देखने भर से और एक झाड़ू के साथ फोटो खिंचवाने से मोहल्ले के हजारों वोट नेताजी बटोर लेते हैं। कचरा भी अपनी किस्मत पकी बुलंदी पर इतरा रहा है, कहते हैं घूरे का भी साल में एक बार दिन फिरता है , यहाँ तो कचरे के रोज़ाना ही दिन फिर रहे हैं। अब देखिए ना, कचरादान ही है जहाँ रात के अंधेरे में मुँह काला करने वाले कुकर्मों की पैदावार को कपड़े में लपेट कर फेंका जता हैं। अखबार वाले भी कचरादान को ऐसी किसी ब्रेकिंग न्यूज के लिए बीनते नजर आते हैं। शहर में सांड गोदे भी इन कचरे के ढेर से विशेश लगाव रखते हैं, क्योंकि हम लोगों की फितरत है ना, घर में बचा हुआ खाद्य सामग्री बजाय कुत्तों गायों को खिलाने के कचरे में फेंकना ज्यादा पसंद करते हैं, डर लगता है कहीं कोई धर्म लाभ न मिल जाए। फिर कचरे के ढेर को भी फलते-फूलते देना है। कचरे का ढेर ही तो है जो दो धुर विरोधी पार्टियों को एक दूसरे के माथे शहर की दुर्व्यवस्था का जिम्मेदार ठहराने के काम आते हैं। एक दूसरे के ऊपर कचरा उछालने के काम आता है। कचरे की दलाली में हर कोई अपने हाथ काले कर रहा है।
कचरा निष्पादन के लिए बड़ी बड़ी कंपनियाँ ने टेंडर उठा लिए हैं, मनमाने रेट वसूल रही हैं, ऊपर के आला अधिकारी इन कंपनियों से लाखों करोड़ों डकार चुके हैं, और ये कंपनियाँ उनके वरदहस्त के नीचे मनचाही वसूली कर के, ग्रीन ट्रिब्यूनल की गाइडलाइन को वसूली का धमकी पत्र बताकर डरा रहे हैं। नगर पालिका और परिषद भी इसी कचरे के नाम पर शहरी विकास टैक्स , व्यापारिक प्रतिष्ठानों से वसूल रही है। कचरा इस वसूली के गोरख धंधे में काम आ रहा है। शहरवासी क्या करें, कचरा उन्हें कोई पसंद नहीं है इसलिए कचरा घर में भी नहीं रखना चाहते, और तो और घर के सामने भी नहीं। हाँ, पड़ोसी के सामने कचरा उन्हें अच्छा लगता है चाहे उसकी सड़ांध उनके घर तक भी आ रही हो, और इसलिए ये कचरा लुढ़कने लोटे की तरह एक घर से दूसरे घर के सामने लुढ़कता रहता है। मजेदार बात ये है कि कोई भी इस पर अपना स्वामित्व नहीं जमाता, सब इसे दूसरे का बताते हैं। कचरा ही है जिसने आदमी को गीता का ज्ञान दिलाया है,कुछ लेकर नहीं जाना,सब कुछ येही छोड़ जाना है ,और इसलिए लोग इसे यत्र तत्र सर्वत्र बस छोड़ रहे है |
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