आज के युग में वृद्ध जानो की व्यथा को बाया करती मेरी यह कविता “वर्द्ध जनों का ” आपको बहुत पसंद आएगी. कविता कुंडली विधा में रचित है जिसमे ८ चरण है.
“वृद्ध जनों का”
वृद्ध जनों का इस समय,नहीं है चोखो हाल?
युवा वाल की इस समय ,बदल रही है चाल ,
बदल रही है चाल,भुले सव रीति रिवाजें ,
बिगडे घर के काज ,अगर बूढ़ों पर गाजें
बेटे हों दो चार,सभी रोटी नहिं देते,
सर्विस करें विदेश,बृद्ध आश्रम में रहते,
“प्रेमी”ये तो हाल,कई संभ्रांत घरों का,
कोइ रस्ता बने,आज इन वृद्धों का
रचियता- महादेव प्रेमी
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