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“तिनका ” हिंदी कविता by Mahadev premi

Tinka hindi Poem by Mahadev premi

आज की मेरी कविता उन दुराभावो को दूर करने के लिए प्रेरित है जिस के चलते हम अपने से तुच्छ या नीचे ओहदे बाले व्यक्तियों कोइ सैदेव उलाहना या निंदा करते है. किसी भी व्यक्ति विशेष को उसके पद या हैसियत के हिसाब से छोटा या नीच नहीं समझना चाहिए,परिस्थितिया आपके प्रतिकूल होने पर ही भी आपके लिए कष्टकारी हो सकता है.

“तिनका”
तिनका तुच्छ न समझिये, पांव तले भी होय,
कभी आंख जाकर पड़ा, दुख जो भारी होय,

दुख जो भारी होय ,पडे जब तिन आंखों में,
चींटी सम ही होय, कि चोट करै लाखों में,

भाई लघु ना समझ,कभी कोई तिन के को,
तिन का बने पहाड,कि याद रहे जन जन को,

“प्रेमी” सब से बड़ा,मान चलिये कण के को,
डूबत को दे श्रेय,चलें हम उस तिनके को।

आपको मेरी कविताएं कैसी लग रही है,कृपया अपने सुझाब हमे जरूर कमेंट बॉक्स में लिख कर अवगत कराये. आप मेरी सभी कविता इस लिंक के जरिये पढ़ सकते है

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