आज की मेरी कविता उन दुराभावो को दूर करने के लिए प्रेरित है जिस के चलते हम अपने से तुच्छ या नीचे ओहदे बाले व्यक्तियों कोइ सैदेव उलाहना या निंदा करते है. किसी भी व्यक्ति विशेष को उसके पद या हैसियत के हिसाब से छोटा या नीच नहीं समझना चाहिए,परिस्थितिया आपके प्रतिकूल होने पर ही भी आपके लिए कष्टकारी हो सकता है.
“तिनका”
तिनका तुच्छ न समझिये, पांव तले भी होय,
कभी आंख जाकर पड़ा, दुख जो भारी होय,
दुख जो भारी होय ,पडे जब तिन आंखों में,
चींटी सम ही होय, कि चोट करै लाखों में,
भाई लघु ना समझ,कभी कोई तिन के को,
तिन का बने पहाड,कि याद रहे जन जन को,
“प्रेमी” सब से बड़ा,मान चलिये कण के को,
डूबत को दे श्रेय,चलें हम उस तिनके को।
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