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मरने की फुर्सत नहीं -व्यंग रचना
डेस्कटॉप पर बैठे हुए वे सभी काम जो एक डॉक्टर से कोई आशा नहीं कर सकता, मसलन सोशल मीडिया चलाना, लेखन करना, फोटोशॉप और कैनवा में अपनी कुछ डिजिटल क्रिएटिविटी को आजमाना , ये सारे काम डेस्कटॉप पर ब्राउज़र की एक दुसरे से सटी हुई टैब में फैला रखे थे । तभी श्रीमती जी का चिर परिचित ताना भरा वाक्य कानों में सुनाई पड़ा,” यहाँ कंप्यूटर पर आँखे गडाए पड़े रहते हो,हॉस्पिटल पर भी थोडा ध्यान दो ! ” वैसे तो इन तानों को हम रोज ही चाय की घूंट के साथ हजम कर लेते थे। लेकिन आज पता नहीं क्यों, जब ये शब्द कान में पड़े थे उससे पहले ही चाय खत्म हो गई थी और इसीलिए गले में अटक गए । हम अपने अब तक इन तानों के प्रहार से बने हुए गेंडे जैसी खाल आवरित ढीठ, निकम्मे शरीर को जैसे-तैसे संभालते हुए १ घंटा पहले ही बाथरूम में घुस गए। बाथरूम में चिड़िया स्नान कर के मतलब अपने कानों को भिगोकर अपने गीले अधोवस्त्र वहीँ छोड़े , गीला तोलिया बिस्तर पर छोड़ा और हमने झटपट अलमारी से एक जोड़ी कपड़े रैंडम सिलेक्शन विधि द्वारा निकाले और चार जोड़ी कपड़े फर्श पर गिरा दिए ,इस प्रकार हमने अपने पतिपन और आलसीपन के मिश्रित संस्कार जो हमारे अन्दर घर कर चुके थे ,उनका पूर्ण रूपेन प्रदर्शन किया । यह सब हमारी श्रीमती जी को ये बताने के लिए भी करना पड़ता है की डॉक्टर चाहे हम उनकी आशा के मुताबिक नहीं बन पाए हो लेकिन पतिपण का धर्म पूरा निभा रहे है | सीढ़ियों से उतरने लगा तो देखा मेरा सारा स्टाफ एक ही बेंच पर जमा हुआ मोबाइल पर कुछ रील वगैरह देख रहा था, हंसी ठिठोली का आलम था। मेरा अचानक ये समय परिवर्तन और जल्दी आना शायद उन सब को अच्छा नहीं लगा ,उनके मनोरंजन ओवर में मैंने व्यवधान जो डाल दिया था। यहाँ एक बात आपको बता दू ,मेरा स्टाफ मुझ से बड़ा खुश है, वो जैसे में डोक्टरी के अलावा दस फ़ालतू के कामों में व्यस्त रहता हु ,इसी प्रकार उन्हें भी ड्यूटी के समय में अपने सभी शौक ,मनोरंजन,घर के काम निपटटाने का मौका मिल जाता है, सभी स्टाफ का हॉस्पिटल में ड्यूटी करना एक पार्ट टाइम जॉब है जिसे वो सिर्फ टाइम पास करने के लिए अपनाते है,और ऊपर से मेरा मिजाज उन्हें बहुत भाता है ,कोई रोक टोक नहीं,कोई टारगेट नहीं, कोई डांट फटकार नहीं! इतनी लिबर्टी से लबरेज मेरा स्टाफ मेरी प्रैक्टिस के साथ साथ ही बूढा हो चला है | उनके इस अप्रत्याशित रेस्पोंस से एक एक बार तो मुझे लगा कि वापस अपने कदम मोड़ लूँ लेकिन आज मैंने ठान ली थी, मुझे भी असली डॉक्टर बनना है। सभी काम जो डॉक्टरी पेशे को शोभा नहीं देते ,उन्हें छोड़कर आज गंभीर रूप से डॉक्टरी करनी है। श्रीमती जी ने मुझे मेरे ही शहर के कुछ डॉक्टरों के नाम गिना दिए थे जो कि डॉक्टरी में रोल मॉडल हैं, और इसके साथ ही अपने भाग्य और कर्म फूटने का रोजना रोज मुझे रो रोकर बता ही देती की मुझ जैसा फर्जी डॉक्टर ही नसीब में मिला,क्या करें माँ बाप ने जल्दी कर दी , बात तो सही थी।पेशेवर डॉक्टरी के जो सामाजिक मानदंड है ,उसमे में कही नहीं फिट होता हूँ, एक पेशेवर डॉक्टर का मतलब की आप एक धीर ,गंभीर, भावहीन असामाजिक प्राणी हो जो ऐसा लगना चाहिए कि किसी दूसरे ग्रह से आया है, जिसके पास मरने को फुर्सत नहीं है, और एक मैं हूँ कि मरने को फुर्सत ही फुर्सत है, टाइम ही टाइम है | और यह मेरी श्रीमती जी को ही को नहीं ,मेरे सभी रिश्तेदार ,हितैषी और परिचितों की चिंता का विषय बन चुका था, इन डॉक्टर साहब के पास इतना समय कहा से मिल जता है क्या ,भगवान् ने इनको दिन रात के 24 घंटे की जगह ज्यादा घंटे आवंटित तो नहीं कर दिए, एक उच्च स्तर की सांठगाँठ की बू उन्हें मेरे” मरने की फुर्सत ही फुर्सत है” से आने लगी . मरने की फुर्सत मुझे हर जगह है ,कहीं कोई निमंत्रण आये तो उसमें सबसे पहले पहुंच जाता हूँ , कोई संस्था के प्रोग्राम को मिस नहीं करता, दोस्तों के क्लब में जब डेट और टाइम निर्णय करने की बारी आती तो एक मैं ही हूँ जिसे न कोई डेट से प्रॉब्लम न किसी टाइम से, हर समय उपलब्ध, मैं सभी का फोन भी उठाता हूँ, किसी को कॉल वेटिंग नहीं करवाता,
कई डॉक्टर है जो घंटों मरीजों को ओ पि डी में वेट कराते है ,जब एक दम भीड़ डांवाडोल होने लगती है तब मरीज देखना शुरू करते है , ताकि मरीज कह सके, यार ये है डाक साहब ! देखो मरीज कैसे टूट के पड़ते है, ,और एक मुझे देखो ,मेरे यहाँ ,मेरे पास टाइम ही टाइम है ,इसलिए मरीजों को टूट कर नहीं पड़ना पड़ता ! कुछ ऐसे गुण जो ये सिद्ध कर सकते हैं कि मैं एक निहायत ही निठल्ला हूँ और शायद डॉक्टरी के पेशे से बिल्कुल अलग। शौक भी अजीब से पाले हैं फोटोग्राफी का शौक , लेखन का शौक , लोग विश्वास नहीं करते, पूछ बैठते है -आपको कब टाइम मिल जाता है लिखने के लिए, फोटोग्राफी के लिए। मुझे याद है सुबह के अंधेरे में फोटोग्राफी के लिए जाता था, ताकि लोग पहचाने नहीं, कई पहचान भी लेते थे लेकिन इसी भ्रम में कि डॉक साहब तो हो नहीं सकते ,कोई उनसे मिलता जुलता प्राणी होगा, लोग अपनी आँखें मसल कर अपने आप को समझा लेते। खैर, OPD में बैठा हुआ, बाहर गेट के पारदर्शी शीशे से मरीजों की बाट जोह रहा था, स्टाफ भी अनमना सा बेंच को खाली करके रिसेप्शन पर जमा हो गया था । मरीज तो नहीं आए एक परिचित आ धमके, मुझे खाली बैठा देखकर उनकी बांछें खिल गई, आज पकड़ में आया मुर्गा, अब वे मेरे सामने बैठकर इत्मीनान से मुझे अपने व्यंग बाणों से जलील करेंगे। कुर्सी पर धम्म से बैठते हुए एक टांग थोड़ी आगे फैला दी, “डॉक साहब, टांगों में दर्द हो रहा है सोचा आपको दिखा लूँ,” इसी के साथ अपने व्यंग बानों के प्रहार करने लगे -‘मुझे तो लगा कि भीड़ होगी, मैं तो पहले फोन करने वाला था कि मैं दिखाने आ रहा हूँ, लेकिन यहाँ तो कोई भीड़ ही नहीं है। “क्या बात है मरीज कम हो गए क्या?” फिर खुद ही दुखी होकर बोला, “हाँ आजकल शहर में इतने सारे ऑर्थोपेडिशियन हो गए ना, प्रैक्टिस पर फर्क तो पड़ेगा ही। आपको तो मैं तब ही से कह रहा हूँ जब से तुम इस शहर में आए कि सरकारी नौकरी ज्वाइन कर लो। लेकिन तुमने मानी नहीं, वैसे सरकारी नौकरी भी कहाँ रखी है डॉक साहब, मेरा बेटा देखो ना ५ साल से कम्पटीशन दे रहा है, नंबर ही नहीं आ रहा, इधर कोई संबंध करने के लिए राजी नहीं। आपने ठीक किया डॉक साहब जल्दी शादी कर ली,” में उनके शब्दों के पीछे छिपे कटाक्ष को समझ सकता था -उनका मतलब साफ था जल्दी शादी कर ली इसलिए आपको इतना अच्छा संबंध मिल गया, अगर पीजी के बाद शादी करते और आप इस प्रकार निजी प्रैक्टिस में घुस जाते , तो सरकारी नौकरी न मिलने के दुर्भाग्य से शायद ही कोई आपको लड़की देने के लिए राजी होता, ये तो भला हो ससुराल वालों का कि इस आशा में शादी कर दी कि लड़का सरकारी नौकरी करेगा। बात उनकी सही थी-मेरे ससुराल वाले भी मेरे इस निर्णय के बड़े खिलाफ थे कि मैं प्राइवेट प्रैक्टिस करूँ, उस समय कई सरकारी डॉक्टरों के ओ पि डी में मरीज टूट पड़ने के हवाले,उनको मरने की फुर्सत नहीं के हवाले और उनकी दिन दूनी रात चोगुनी कमाई के हवाले दिए जाते थे, लेकिन मैं शुरू से ढीठ स्वभाव का जो ठहरा , कभी मेरे कान में जूँ तक नहीं रेंगती!पता नहीं किस मिट्टी का बना हूँ। शुरू में मैंने मेरे रिश्तेदार और हितैषियों को बताया भी कि मैंने जानबूझकर सरकारी नौकरी नहीं की , लेकिन मेरे इस स्पष्टीकरण को “अंगूर खट्टे हैं” जैसी कहावत के हिसाब से सभी ने नकार दिया ! इसलिए अब ये दलील देना भी बंद कर दिया । लोगों को में एक कौतूहल भरा एलियन प्राणी लगता हु ,इसलिए चर्चा का विषय हूँ ,राह चलते कई पूछ भी लेते है कि आप डॉक्टरी कब करते हो? दिन भर तो फेसबुक पर एक्टिव रहते हो, मेरे रिश्तेदार, हितैषि जो पहले मुझे मेरे इस प्राइवेट प्रैक्टिस करने के निर्णय को मेरी मजबूरी समझकर मेरे प्रति संवेदना प्रगट करते थे, धीरे धीरे अपना हृदय परिवर्तन कर लिया है, अब मुझे मेरे जैसे एक निजी चिकित्सक की छवि जो आम जन के अंदर होती है ,उसी श्रेणी में रखने लगे हैं। परिचित अभी भी कुर्सी पर धंसे हुए बोले जा रहे , मुझे खाली देख कर आज पूरा मन था उनका झिलाने का तो अपनी वाणी को तनिक धारा प्रवाह की गती देते हुए बोले – डॉक साहब वो देखो फलां डॉक्टर उसके यहाँ OPD में शाम तक नंबर नहीं आता, मरीज टूट कर पड़ते है , मरने की फुर्सत नहीं ,फलां ने २ साल में ४ मंजिला हॉस्पिटल खड़ा कर लिया, फलां ने वहाँ प्रॉपर्टी ले ली, और इसके साथ ही शायद उनके अवचेतन मन से पूछा जा रहा था -आपने इतने साल हो गए आपने क्या तरक्की की,” लेकिन मैं ऐसा ढीठ उसकी बातें मेरे ऊपर से ऐसे उतर रही थी जैसे चिकने घड़े से पानी , धीरे धीरे उसकी धारा प्रवाह वाणी ठंडी पड़ने लगी ,उसे लगने लगा कि कोई फायदा नहीं ,तब ही मैंने शीशे से देखा कि बाहर दो मरीज पर्ची बनवाने लगे थे, मेरी सांस में सांस आई, तब तक चाय भी श्रीमती जी ने भिजवा दी थी, ये चाय निगोड़ी भी मुझे बहुत परेशान करती है , जब कोई ऐसे तथाकथित हितैषी चैम्बर में आ धमकते है,तब आने में हमेशा लेट हो जाती है . वैसे मैंने एक लिखित आवेदन श्रीमती जी को दिया था की ,जब में चैम्बर से किसी अतिथि के आने पर चाय के लिए बोलूं,तो परिस्थिति की नजाकत को भांप कर ,सभी कार्यों को निलंबन करके सबसे पहले चाय बना कर भेज दिया करें ताकि में “अतिथि तुम कब जाओगे” भाव से उन्हें चाय पिलाकर विदा कर सकूँ. लेकिन मेर निवेदन सरकारी फाइलों की तरह दब कर रहा गया है और मुझे वैकल्पिक तौर पर बाहर से चाय मंगवानी पड़ती थी | मेरी बेचैनी और अतिथि तुम कब जाओगे ” वाली करून पुकार जो मेरे कुर्सी पर बार बार करवटें बदलने ,और मोबाइल को कान पर लगाकर किसी अद्रश्य आदमी को फ़ोन लगाने की जुगत से उनको भी लगा कि अब खिसकना ही बेहतर है, वैसे भी उनके द्वारा लगाई गयी आग का मेरे ऊपर कोई फर्क नहीं पड रहा था ।हां जाते जाते बोले “डॉक साहब लगता है कोई टोन टोटका हुआ है ! एक बहुत ऊँचे पंडित है ,उनसे बात करूँ क्या ? आप कहो तो उनसे अनुष्ठान करवा दें ? और मेरी राय जाने बैगेर ही तेज़ी से खिसक लिये !
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