क्या आप जानते हैं कि-
स्त्रीत्व, नारीत्व और मातृत्व का संचालन केन्द्र – डिम्बग्रन्थि है?
-कि स्त्रीत्व का व्यक्त रूप होता है, रोएं विहीन कोमल त्वचा, आकर्षक शरीर सौष्ठव, स्तन और नितम्ब, प्रजनन-सृजन की इच्छा, आतुरता, और ममत्व एवम् वात्सल्य के कोमल भावों की प्रकृति व प्रवृत्ति। स्त्रीत्व की इस नैसर्गिक और भावनात्मक अभिव्यक्ति की प्रेरणा, संचालन और संवर्द्धन का केन्द्र होती है डिम्बग्रन्थि।
- महिला की श्रोणि में स्थित बादाम के आकार और उतनी ही बड़ी दो डिम्ब ग्रन्थियाँ ही नारी जीवन का निर्वाह करती हैं, सृष्टि के सृजन का उत्तरदायित्व वहन करती हैं। प्रजनन से सृष्टि बनाये रखती हैं ये दो डिम्ब ग्रंथियां।
- डिम्ब ग्रन्थि के दो कार्य होते हैं। पहला, स्त्रीबीज (ओवम) उत्पन्न करना। दूसरा, यौन व जनन प्रेरक और पोषक अन्तःस्रावी हॉर्मोना स्रावित करना। ये प्रेरक और पोषक हॉर्मोन ही मातृत्व का संचालन करते हैं, किशोरी से स़्त्री और स्त्री को मां बनाते हैं। सृष्टि की जनक मां।
- बालिका के जन्म के समय डिम्बग्रन्थि में बीस लाख के करीब स्त्रीबीज अपरिपक्व अवस्था में विद्यमान होते हैं, जो कमशः घटकर सात साल की उम्र तक मात्र 3 लाख रह जाते हैं। लेकिन 3 लाख की भी आवश्यकता क्या है? प्रजनन काल (12 से 45 वर्ष उम्र) में प्रतिमाह केवल एक स्त्रीबीज परिपक्व होगा। अर्थात् पूरे प्रजनन काल में मात्र 400 स्त्रीबीज की आवश्यकता होगी। फिर 3 लाख स्त्रीबीज क्यों? और काम में तो 5 या 10 ही आने हैं फिर 400 का निरर्थक निर्माण क्यों? प्रकृति का अवश्य इसमें कोई गूढ़ प्रयोजन है जिसे समझने की आवश्यकता है। प्रकृति कोई रिस्क नहीं लेती-इन शहीदों के त्याग से ही जीवन शास्वत है।
- किशोर अवस्था तक पहुँचते-पहुँचते स्त्री बनने का समय आ जाता है, जिसमें डिम्ब ग्रन्थि निर्णायक भूमिका अदा करती है। लिंग-गुणसूत्रों पर स्थित जीन्स, समय का पूरा लेखा जोखा रखते हैं। किशोर अवस्था आते ही ये जीन पीयूष ग्रन्थि को सन्देश भेजते हैं। फलस्वरूप वहाँ से फ़ोलिकल प्रेरक हार्मोन स्रावित होता है। यह प्रेरक हार्मोन डिम्बग्रन्थि में स्थित स्त्रीबीजों को प्रेरित करता है, जिससे प्रतिमाह एक स्त्रीबीज परिपक्व होकर सतह पर आ जाता है। एक महीने एक डिम्ब ग्रन्थि और दूसरे महीने दूसरी डिम्ब ग्रन्थि से। लाखों बीजों में से कैसे एक ही बीज इस हार्मोन से प्रेरित होता है, यह प्रकृति का गूढ़ रहस्य है। इसे परिपक्व होकर डिम्बग्रन्थि की सतह तक आने में लगभग 12 दिन लगते हैं।
- जब परिपक्व स्त्री बीज ओवम, ओवरी की सतह पहुंच जाता है तब जीन स्थित घड़ी दूसरा सन्देश पीयूष ग्रन्थि को भेजती है और उससे दूसरा हार्मोन, फ़ोलिकल विदरक डिम्बक्षरण ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन, स्रावित कराती है। परिपक्व डिम्ब, जो एक बडे़ बुलबुले के रूप में होता है, फट जाता है और डिम्ब, डिम्बवाहक नली में गिर जाता है।
- डिम्ब जब परिपक्व होने लगता है तब डिम्ब पोषक ग्रेन्यूलोसा कोशिकाएँ विभाजित होकर डिम्ब को चारों ओर से घेर लेती है। डिम्ब में पोषक तत्त्व का संग्रहण होता है, जो डिम्ब नली से गर्भाशय की अपनी दीर्घ यात्रा में उसके पोषण के लिए पर्याप्त होता है। डिम्ब क्षरण पर ग्रेन्यूलोसा कोशिकाओं का एक समूह, डिम्ब के साथ जाता है, राजकुमारी की दासियों की तरह, उसकी सेवा-सुरक्षा में रत, पालकी में उठाए हुए। डिम्ब के शुक्राणु से मिलन पर यह दासी कोशिकाएँ छिटक कर दूर हो जाती हैं। यह मिलन निषेचन (फर्टिलाईजेशन) टयूब में ही होता है। एक शुक्राणु को करोड़ो अन्य से प्रतिस्पर्धा कर गर्भाशय के रास्ते स़्त्री बीज तक पहुंचना होता है।
- स्त्री बीज अब युग्म बन जाता है और गर्भाशय की और चलने लगता है। अब शुरू होती है स्त्री से मां बनने की गूढ प्रक्रिया।
- डिम्ब ग्रन्थि का दूसरा कार्य भी साथ-साथ चलता रहता है। डिम्ब परिपक्व होने की प्रक्रिया में विभाजित होकर, समूह बनाती ग्रेन्यूलोसा कोशिकाएँ, स्त्रीमद(रज) प्रेरक, एस्ट्रोजन हार्मोन स्रावित करती हैं, जो गर्भाशय को गर्भधारण के लिए तैयार करता है। इस हार्मोन से प्रेरित होकर गर्भाशय की आन्तरिक झिल्ली, एण्डोमेट्रियम पोषक तत्त्वों से भरपूर ग्रन्थियों और रक्त नलियों से लैस होकर मखमली आकार ले लेती है, जैसे अति विशिष्ट अतिथि के आगमन पर लाल ग़लीचा बिछाया जाता है। युग्म की स्थापना और उसके भरण पोषण की पूरी तैयारी होती है।
- डिम्ब के क्षरण के उपरान्त, ग्रन्थि में स्थित गड्ढे में, थेका कोशिकाएँ उसे भर कर कॉर्पस ल्यूटियम नामक पीत पिण्ड बनाती हैं। इन कोशिकाओं से अब नया गर्भस्थापक पोषक प्रोजेस्टेरोन हार्मोन स्रावित होता है। गर्भस्थापन में इस हार्मोन की अहम् भूमिका होती है। गर्भाशय कोख बनती है।
- इस प्रक्रिया में डिम्ब ग्रन्थि से स्रावित ये दो हार्मोन केवल गर्भाशय पर ही असर नहीं डालते वरन् किशोरी से नारी होने के शारीरिक विकास में भी अहम् भूमिका निभाते हैं। उन्हीं के प्रभाव से स्तन उभार लेते हैं, नितम्ब भराव लेते हैं और महिला का सम्पूर्ण शरीर सौष्ठव मूर्त रूप लेता है।
- साथ ही ये हॉर्मोन मस्तिष्क के उन भागों को भी प्रभावित करते हैं जो यौन भावनाओं, यौन क्रिया की सुखद स्मृतियों और गर्भ-संवर्धन की कोमल भावनाओं, यथा ममत्व, वात्सल्य के अवचेतन पक्ष को समायोजित करते हैं।
- डिम्बग्रन्थि जनित रासायनिक अवचेतन प्रक्रिया ही स्त्रीत्व, नारीत्व और ममत्व का आधार है, और है सृष्टि संचालन का सम्बल।