“तेरा दुःख तेरा ही होगा “इस कविता के माध्यम से, यथार्थ को अपनाने और स्वयं के साथ खड़े होने की प्रेरणा देने का प्रयास किया गया है। उम्मीद है, यह आपको अपने दुखों से लड़ने और जीवन की सच्चाइयों को स्वीकार करने की शक्ति देगा।
जीवन की राहों में दुःख के कांटे जब भी बिछे पाए ,
जब अपना साया ही अपने अक्स से बिमुख हो जाए ।
दोस्त बने, साथी मिले, पर तुम्हे समझ ना पाए,
“तेरा दुख तेरा ही होगा”, ये साए की तरह मंडराए ।
हंसी खेल मस्ती में उलझे, सब अपनी राह चले जाते ,
दुखों का बोझ समझा ना कोई, दिल की जगह दिमाग लगाते ।
आँसू पोंछने वाला कोई ना दिखेगा दूर तलक ,
“तेरा दुख तेरा ही होगा”, जीवन की धूप ये सबक सिखाते ।
अपने साये से ही लड़ना सीख, दुख की इस घड़ी में,
हर दर्द भूल बढ़ आगे आशाओं के दीप जलाकर ।
समय बहा ले जाएगा, ये गम की सभी नदियाँ
,”तेरा दुख तेरा ही होगा”, बदल बहाव नदी का आकर ।
दुखों का समंदर जब भी तूफान बन जाए,याद रखना,
खुद की मजबूती ही तुझे पार लगाए ।
अपनी कहानी का हीरो तू, लिख अपनी इबारत खुद,
“तेरा दुख तेरा ही होगा” ये दुनिया शतरंज की चाल बिछाए ।
इस दुख की घड़ी में, अपने आप को पहचान,
ना सहारा दूसरों का, ना किसी से कर पुकार ।
जो बीत गया, उसे बीत जाने दे, कर नई सुबह का इंतजार,
“तेरा दुख तेरा ही होगा”, ये ही है जीवन का सार ।