हमारे नीति निर्माताओं ,नेताओं ,ब्यूरोक्रेट्स की मानें तो सीटी स्कैन की फ़िल्म 150 रुपये की आती है ,डायग्नोस्टिक सेंटर्स वाले मरीज़ से 2000 रुपये लेकर भोली भाली जनता को लूटते हैं।एमआरआई की फ़िल्म 250 रुपये की आती है ,सेंटर्स 5000 रुपये लेकर भोली भाली जनता को लूटते हैं।ईसीजी का पेपर तो 5 रुपये का भी नही खर्च होता ,हॉस्पिटल्स वाले 200 रुपये लेकर भोली भाली जनता को लूटते हैं।
जिस देश मे स्वास्थ्य सेवाओं का मूल्यांकन इतनी निर्दयता से किया जाता हो उस देश में यदि डॉक्टर्स को चोर ,डाकू, लुटेरा बोला जाए तो किसी को भी आश्चर्य नही होना चाहिए।
2000 रुपये में जनरल वार्ड में और 4000 रुपये में आईसीयू में कोविद के इलाज की नीति बिल्कुल ऐसी ही सोच के साथ बनाई गई होगी।
हमारी सरकारें ऐसे- ऐसे नियम बना देती हैं जिनकी पालना लगभग असंभव होती है,और फिर जनता अस्पतालों और डॉक्टर्स को चोर डाकू लुटेरा बोलकर उनका मान मर्दन करती है।।
एक बार राज्य के सभी नेता और अफसर ये लिख कर दे देंवे कि यदि उन्हें कोरोना हुआ तो 2000 रुपये प्रतिदिन वाले वार्ड या 4000 रुपये प्रतिदिन वाले आईसीयू में इलाज़ लेंगे,हम सभी प्राइवेट अस्पताल इन रेट्स पर हंसते- हंसते काम करेंगे।
ये खुद बीमार होते हैं तो अपने लिए सबसे अच्छा और महंगा अस्पताल ढूंढते हैं लेकिन जनता के लिए ऐसे- ऐसे नियम कानून बनाते हैं कि अस्पताल वाले चाह कर भी ढंग से इलाज़ न कर पाए ।
शुरू में कोरोना महामारी को युद्ध कहा गया था और स्वास्थ्य कर्मियों को कोरोना वारियर्स।
सोचो पड़ोस के किसी राक्षस देश से युद्ध हो और उस में होने वाले मिलिट्री ऑपरेशन्स के खर्चों को पैकेजेज़ में बांध दिया जाए तो क्या वो युद्ध हम जीत पाएंगे?
कुछ साल पहले हमारे शूरवीरों ने बेहद सफल सर्जिकल स्ट्राइक की थी ।सोचो उस आपरेशन का खर्च कोविद के इलाज की तर्ज़ पर पूर्व निर्धारित कर दिया गया होता तो क्या वह आपरेशन सफल हो सकता था?
सड़क,बिल्डिंग ,ब्रिज जिनका अनुमानित खर्च आसानी से निकाला जा सकता है उनमें भी यदि साल दो साल की देरी होती है तो उस प्रोजेक्ट की cost revise करनी पड़ती है । एक युद्ध, चाहे वो दुश्मन देश की सेना से हो या फिर दुश्मन देश के वायरस से हो उसमें होने वाले खर्च असीमित होते हैं ,आकस्मिक होते हैं और बहुत बार तो अनुमानित खर्च से कई गुना अधिक भी होते हैं।सर्जिकल ऑपरेशन्स हों या सर्जिकल स्ट्राइक ,दोनों में किसी गलती की गुंजाइश भी बहुत कम होती है।बहुत सावधानी से काम करो तो भी गलती हो सकती है।कुछ मिलीमीटर की चूक जानलेवा साबित होती है इन ऑपरेशन्स में।
आप दवाओं के दाम निर्धारित कीजिये, सर्जिकल इम्प्लांट्स के दाम निर्धारित कीजिये, किसी जांच के दाम यदि अव्यवहारिक हैं तो उन्हें भी ठीक कीजिये लेकिन बीमारियों और ऑपरेशन्स को पैकेजेस में मत बांधिए।हमें मेडिकल की पढ़ाई के दौरान Diseases का इलाज सिखाया जाता है ,Disease Packages का नहीं।
प्यारे देशवासियों ,अपने वॉरियर्स को अव्यवहारिक पैकेजेस में बाँधोगे तो हार निश्चित है।।
-डॉ राज शेखर यादव
फिजिशियन एंड ब्लॉगर