कविता शीर्षक “सुख अरु शांति” मानव मन को सच्ची शांति का मार्ग दिखलाती है. कविता का भावार्थ है की हे मनुष्य तू जहा शांति खोज रहा है,बाहर संसार के भौतिक सुखो में शांति पाना असंभव है. असली शांति मनुष्य को तभी मिलेगी जब वो अपने अन्दर झांक कर देखेगा.
“सुख अरु शान्ति “
कुण्डली 8चरण
सुख अरु शान्ति चाहिये,तो इधर उधर मत झांक ,
मन को वश में कीजिये,फिर अंदर को झांक,
फिर अन्दर को झांक,मनन उस रव का करिये,
भोतिकता को छोड़,आप अध्यत्मिक भजिये,
नकारात्मक उर्जा,घर में आने न पाये,
सकारात्मक सोच,सभी की ही बन जाये,
,”प्रेमी”सच्चा प्रेम ,करो प्रेमी बन जइ है,
मन को वश में करो,यदि सुख अरु शांती चहि है।
रचियता -महादेव प्रेमी
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