क्या आप जानते हैं –
–कि अण्डकोश (टेस्टीज़) शुक्राणुओं का उत्पति स्थल व पौरुष का उद्गम स्थल है। पौरुष का उद्गम स्थल जननंग और जननग्रन्थि। इसके दो प्रमुख कार्य होते हैं, शुक्राणु पैदा करना और पुरुष को पुंसत्व प्रदान करने के लिए पौरुष पोषक टेस्टोस्टेरोन हार्मोन बनाना। अण्डकोश जनित इस हार्मोन की वजह से ही पुरुष एक पुरुष बनता है, उसकी अस्थियाँ, उसकी मांसपेशियाँ, कद–काठी आकार लेती हैं, दाढी़ मूँछ आती हैं, लैंगिक तनाव आता है और सहवास की क्षमता विकसित होती है।
– कि जहां स्त्रीबीज (ओवम) को निषेचित (फर्टिलाइज) करने के लिए मात्र एक शुक्राणु (स्पर्म) की आवश्यकता होती है, 1 मिली लिटर (मि.लि.) वीर्य में 2.5 से 4 करोड़ शुक्राणु होते हैं। एक बार में स्खलित वीर्य में 12 से 20 करोड़। क्यों? प्रकृति में व्यर्थ कुछ नहीं होता तो फिर जहां मात्र एक की आवश्यकता है वहां 20 करोड़ का प्रावधान क्यों? किस निमित्?
– कि माइक्रोस्कोप से वीर्य की बूंद में देखें तो चंचल, चपल, एक क्षण को भी स्थिर न रहने वाले, गतिमान, आतुर, करोड़ों शुक्राणुओं की फौज नजर आयेगी।
– कि स्त्रीबीज और शुक्राणु का मिलन (फर्टिलाइजेशन) गर्भाशय में नहीं, यूटेराईन ट्यूब में होता है। सबसे शक्तिशाली और सक्षम शुक्राणु को अपने करोड़ो साथियों से प्रतिस्पर्धा कर गर्भाशय और यूटेराइन ट्यूब के ऊबड़ खाबड़ रास्तां से तैरते हुए स्त्री बीज तक पहुंचना होता है। क्या प्रेरित करता है इन स्खलित शुक्राणुओं को? टयूब में स्थित स्त्री बीज केसे न्योतता है इन शुक्राणुाओं को स्वयंवर के लिए? प्रकृति के नियमानुसार सर्वश्रेष्ठ का चयन।
– कि शुक्राणु की साइज के अनुपात में यह रास्ता 26 किलो मीटर के बराबर का होता है। तैर कर जाना होता है। कहां से मिलती है शुक्राणुओं को इसके लिए ऊर्जा, दिशा और दशा?
– कि स्त्रीबीज, सझी धजी दुल्हन बनी मात्र 24 घटें तक ही प्रतीक्षा करती है। अगर इस समयावधि में वर शुक्राणु बारात ले कर नहीं पहुंचा तो वधू प्राण त्याग देती है। एक शुक्राणु ही स्त्रीबीज में प्रवेश पाता है, शेष बाहर ही अपना जीवन उत्सर्ग करते हैं। स्वयंवर की मासिक तिथि और मुहूर्त निश्चित होते हैं। 26 कि.मि. दूर बैठी प्रणय आतुर दुल्हन कैसे आकर्षित करती हैं उन करोड़ो शूक्राणुओं को? रासायनिक आकर्षण।
– कि शुक्राणु का भी केवल सर, जिसमें न्यूक्लियर डी एन ए होता है, वही प्रवेश पाता है, शेष भाग और दुम बाहर ही रह जाता है। दुम में स्थित पिता के माइटोकोंड्रिया स्त्रीबीज में प्रवेश नहीं पाते। निषेचित स्त्रीबीज में और उस से बने भ्रूण की कोशिकाओं में माईटोकोंड्रिया मां से ही आते हैं।
– कि संतति में पिता की पहचान के लिए न्यूक्लियर डी एन ए और माता की पहचान के लिए माईटोकोंड्रियल डी एन ए का विश्लेषण किया जाता है। माता और पिता की पहचान की जाती है।
– कि निषेचित होने के बाद स्त्रीबीज तीव्र गति से विभाजित होता हुआ ट्यूब से बिदा हो कर गर्भाशय की और प्रस्थान करता है। गर्भाशय तक पहुंचने और स्थापित होने में उसे 72 घटें लगते हैं। प्रस्थान की प्रेरणा कहां से मिलती है? कौन करता है मार्गदर्शन?
– कि प्रकृति का शास्वत नियम है कि कोई भी प्राणी या जीव अपने से भिन्न गुणसूत्र वाले किसी अवयय को स्वीकार नहीं करता। इसके विपरीत गर्भाशय, भिन्न गुणसूत्र (पिता के) वाले भ्रूण को स्वीकार करना एक विलक्षण रासायनिक प्रक्रिया है। गर्भाशय के कोख बनने का आधार यही है। मातृत्व का आधार भी।
– कि करोड़ों शुक्राणुओं की बलि और उस से उत्सर्ग होने वाले रसायन गर्भाशय को सहिष्णु बनाने में सार्थक भूमिका निभाते है। प्रकृति में व्यर्थ कुछ नहीं होता।
– कि जहां स्त्रीबीज केवल स्त्री ही होता है, शुक्राणु मादा और नर – एक्स और वाई स्पर्म अलग अलग होते हैं। स्त्रीबीज को निषेचित करने वाला शुक्राणु नर था या मादा, उसी से संतति का लिंग निर्धारण होता है। लड़का होगा या लड़की यह बाप के शुक्राणु पर निर्भर करता है, मां के स्त्रीबीज पर नहीं। मां इसे प्रभावित नहीं कर सकती। निषेचित स्त्रीबीज का लिंग भी बाद में नहीं बदल सकता, न किसी दवा से और न हीं किसी अनुष्ठान से।
– कि स्खलित वीर्य में से नर और मादा शुक्राणुओं को अलग अलग किया जा सकता है। और चिन्हित शुक्राणु से कृत्रिम गर्भाधान कर एच्छिक लिंग की संतति प्राप्त की जा सकती है। लेकिन ऐसा करना भारत में कानूनन अपराध है।
– प्राणियों के प्राण प्रणेता – प्राणनाथ – शुक्राणु ही होते हैं।
डॉ. श्रीगोपाल काबरा
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