जन्म के समय बच्चों में लिंग अनुपात क्या होगा, उसे निर्धारित करने वाले कौन-कौनसे कारक (डिटरमिनेन्टे) हैं? यह समझना इतना सरल नहीं है जितना
साधारणतया सोचा जाता है।
यह सर्वविदित है कि सामान्यतः जन्म के समय लड़के अनुपात में लड़कियों से अधिक होते हैं – 104-107 लड़के प्रति 100 लड़कियाँ। लेकिन यह अनुपात भिन्न हो सकता है। जन्म के समय लिंग अनुपात क्या होगा यह निम्न बातों पर निर्भर करता है –
(1) गर्भाधान के समय, यानी प्रारम्भिक लिंग अनुपात (प्राईमरी सेक्स रेशो) क्या था, और
(2) गर्भावस्था के दौरान किस लिंग के बच्चे जीवित रहे और किस लिंग के बच्चांे का क्षरण हो गया, यानी गर्भ में ही नष्ट हो गए। जन्म के समय लिंग अनुपात को द्वितीयक (सेकेन्डरी) लिंग अनुपात कहते हैं।
प्राथमिक और द्वितीयक लिंग अनुपात का निर्धारण करने वाले कारक अलग-अलग होते हैं, यथा –
प्राथमिक लिंग अनुपात के कारक
(1) नर (वाई) और मादा (एक्स) शुक्राणुओं की गतिशीलता भिन्न होती है। योनि में स्खलन के उपरान्त कौन से लिंग का शुक्राणु स्त्री बीज के पास पहुँचेगा, बच्चे का लिंग उसी से निर्धारित होगा। नर और मादा शुक्राणुओें की भिन्न गतिशीलता का लाभ उठा कर उन्हंे अलग-अलग किया जा सकता है और चाहे गए लिंग के शुक्राणुओं से गर्भाधान हो सकता है।
(2) नर और मादा शुक्राणुओं का जीवनकाल भी अलग होता है। स्खलन के उपरान्त, स्त्री बीज के उपलब्ध होने तक, योनि में, अगले 48 घण्टों में, कितने नर और कितने मादा शुक्राणु जीवित रहेंगे, यह भी
(3) स्त्री बीज डिम्ब ग्रन्थि से उत्सर्ग होकर डिम्बवाहिनी नली में आता है जहाँ शुक्राणु से उसका मिलन होता है। वीर्य स्खलन के समय स्त्री बीज की अवस्था क्या थी, इस पर निर्भर करता है कि वह नर शुक्राणु को आकर्षित करेगा या मादा शुक्राणु को और उसका मिलन इनमें से किससे होगा।
(4) योनि पथ में स्थित तरल की क्षारीयता या अम्लीयता लिंग विशेष में शुक्राणुओं की गतिशीलता और जीवन काल को प्रभावित करती है। अतः बच्चे के लिंग निर्धारण में यह भी एक कारक होता है।
(5) माता के रक्त में प्रवाहित जननग्रन्थिपोषक (गोनाडाट्रोफिन) हार्मोन का स्तर भी लिंग निर्धारण को प्रभावित करता है। अधिक मात्रा में होने पर लड़कियों का अनुपात अधिक होता है। अश्वेत अमरीकियों में जननग्रन्थिपोषक हार्मोन का स्तर अधिक होने के कारण वहाँ लड़कियाँ अधिक होती हैं।
(6) ऋतुकाल (ऋतुस्राव के तीन दिन के बाद से 12 दिन तक) के प्रारम्भिक व आख़िरी दिनों में नर बच्चों का गर्भाधान अधिक होता है। जिन महिलाओं में सम्भोग की दर अधिक होती है उनमें ऋतु काल के शुरू में ही गर्भाधान हो जाता है अतः नर बच्चे अधिक होते हैं। यही कारण है कि युद्ध और आपात काल में जब सम्भोग की दर बढ़ जाती है, नर बच्चे अधिक होते हैैं।
जन्म के समय लिंग अनुपात (सेकण्डरी सेक्स रेशो) के कारक – यह निर्भर करेगा कि गर्भाधान के बाद, लेकिन गर्भावस्था के दौरान कौन से लिंग विशेष के भू्रणों का क्षरण हुआ है?
(1) गर्भावस्था के 3-5 महीनों में होने वाले स्वतःगर्भपात में नर बच्चे अधिक होते हैं, उनका क्षरण अधिक अनुपात में होता है। 6-8 महीने में होने वाले स्वतःगर्भपात में नर बच्चे कम होते है और आख़िरी अवस्था में होने वाले गर्भपात में नर बच्चों का अनुपात अधिक होता है। स्वतः होने वाले गर्भपात में कुल मिलाकर नर बच्चे अधिक नष्ट होते हैं, अतः प्रारम्भिक लिंग अनुपात जो नर के हक में था घट जाता है। वे कारक जिनके कारण स्वतःगर्भपात की दर बढ़ जाती है, यथा हार्मोन डिसरप्टर्स (नष्ट करने वाले) आदि, के कारण जन्म पर लड़कियों का अनुपात अधिक होगा।
(2) कुछ महिलाओं में एक लिंग विशेष के भ्रूण के खिलाफ नष्ट करने की शक्ति विकसित हो जाती है।
(3) सामाजिक एवं जनसांख्यिकी (डेमोग्राफिक) कारण भी जन्म के समय लिंग अनुपात को प्रभावित करते हैं, यथा, माता-पिता की उम्र, जन्म क्रम (प्रथम जन्म में नर अनुपात अधिक होता है), आर्थिक एवं जीवन स्तर (सम्पन्न लोगों में स्वतःगर्भपात कम होते हैं)। परिवार नियोजन से जब जन्म दर घटती है तब नर बच्चों का अनुपात बढ़ता है।
लिंग अनुपात को प्रभावित करने वाले कारक अनेक होते हैं और वे अलग तरह से और अलग-अलग अवस्था में प्रभावित करते हैं। लिंग अनुपात को प्रभावित करने की क्षमता भी अलग-अलग होती है। किसका कितना प्रभाव होता है, इस विषय में विश्वव्यापी अनुसन्धान हो चुके हैं।
युद्धरत राष्ट्र के नागरिकों में युद्ध के दौरान हुए गर्भाधान में नर अधिक होते हैं। ट्रक चालकों में, जिनके अण्डकोश इंजन की गर्मी से लम्बे समय तक प्रभावित रहते हैं, उनमें लड़कियों का गर्भाधान अधिक होता है। डायोक्सिन नामक गैस से प्रभावित होने पर लड़कों का गर्भाधान काफ़ी कम होता है। एक फ़ैक्ट्री में विस्फोट के बाद जब डायोक्सिन गैस दूर तक फैल गई तो उससे प्रभावित मर्दों में लड़कों का जन्म काफी घट गया। गर्भाधान के समय फ़ोलिक ऐसिड की कमी होने पर मादा भू्रण मस्तिष्क विहीन होकर नष्ट हो जाते हैं। अनेक प्रकार के हॉर्माेन डिसरप्टर्स, जोे वातावरण में हो सकते हैं, उनमें मादा भ्रूण का क्षरण अधिक होता है।
लिंग अनुपात को प्रभावित करने वाले कारक, क्षेत्र विशेष, आबादी विशेष, वातावरण विशेष में अलग-अलग होते हैं। वातावरण में स्थित हानिकारक तत्त्वों से अगर अधिक भू्रण क्षरण होता है तो वह दोनों लिंग के भ्रूणों को बराबर प्रभावित करेगा, यह धारणा ग़लत है। ऐसे अधिकतर हानिकारक तत्त्व एक लिंग विशेष के भ्रूणों को अधिक प्रभावित करते हैं। इसके अतिरिक्त, गर्भावस्था के प्रारम्भिक काल में (1-4 महीने) मादा भू्रण अधिक संवेदनशील होता है।
डॉ. श्रीगोपाल काबरा
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