मुझे मेरे पेशे से लगाव है, मेरी रोजी-रोटी का जुगाड़ जो है, और साथ ही मुझे आज़ादी दे रहा है कि मैं कुछ अपनी पागलपन की शौकिया गतिविधियाँ, जैसे कि एक शौक आप पढ़ ही रहे हो, करने की छूट मिल रही है। लेकिन एक दुःख है कि सेवानिवृत्ति नहीं होगी। डॉक्टर, वकील और नेता—ये तीन पेशे ऐसे लगते हैं जो कभी रिटायर नहीं होते। मुझे एक बहुत ही वरिष्ठ सर्जन की स्मृति है जो अब इस दुनिया में नहीं रहे,रिटायरमेंट से पहले मेरे कॉलेज के प्रिंसिपल भी रहे थे, लेकिन रिटायरमेंट के बाद भी 25 साल वो एक्टिव प्रैक्टिस में रहे थे, उनकी उंगलियाँ कांपती थी,प्रेस्क्रिप्सन लिखवाने के लिए सहायक बिठाते थे, लेकिन जब सर्जरी करते तो मजाल की उंगलियाँ काँप जाए | लेकिन मुझे तो रिटायर होना है ,अगर मुझे पता लगता की इस पेशे में ऐसा है तो शायद में पेशा दूसरा चुनता , अब सेवानिवृत्ति का जो असली सुख है, उससे वंचित रहना पड़ेगा। कई मेरे परिचित हैं, उनके सेवानिवृत्ति के भव्य आयोजनों में शामिल हुआ हूँ। दूल्हा जैसा सजाया जाता है ,गाड़ी में बिठाकर बारात निकलती है, ऐसा लगता है जैसे समाज ने दुबारा शादी करने का मौका दिया हो। दफ्तर से निकलते हैं तो सबकी आंखें भीगी हुई भावभीनी मुद्रा में, दो शब्द सभी के सुनने को मिलते हैं—’आदमी बहुत बढ़िया थे, बहुत मिलनसार।’ वो शब्द जिन्हें सुनने के लिए बेचारे अपने कार्यकाल के दौरान तो आतुर ही रहता है, उसे खुद अहसास नहीं होता कि वो इतना अच्छा आदमी है, क्योंकि पूरे कार्यकाल के दौरान तो उसने अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की कानाफूसी और चुगली ही सुनी थी | उन्हें पता है कैसे उन्होंने अपना कार्यकाल ध्रष्टता और ढीठता की चरम स्थिति का अनुसरण करते हुए निकाला है,ये गुण जो उन्हें उनके सीनियर ने विरासत में सोंपे थे | दफ्तर का समय सर्दियों में धूप सेंकते, मूंगफली खाते और गर्मियों में AC की ठंडी हवा के झोंकों में कुर्सी पर ऊंघते निकल गया। शाम को लौटते वक्त जेब में लोगों के द्वारा दिए गए सुविधा शुल्क को संभाल के घर पहुंचना , खुद इस सुविधा शुल्क का एक पाई अपने ऊपर खर्च नहीं करते ,हमेशा सी बी आई के छापे के डर से जीवन बिताते है ।
वैसे एक बात और मुझे पता चली ,रिटायरमेंट के पहले कुछ साल कर्मचारी बिलकुल ही इमानदार, मिलनसार हो जाता है, स्वभाव में निर्मलता आ जाती है, अपने रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली पेंशन में कोई रोड़ा नहीं अटके इसलिए उपरी कमाई की तरफ से आँखें मूँद लेता है , अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के आगे भी मिन्नतें करता नजर आता है ताकि उसकी अनुअल सी आर खराब नहीं हो जाए.
में सुबह जब घूमने निकलता हूँ ,हमारी कॉलोनी की गली में ही एक परिचित सेवानिवृत्त अंकल से रोज रामा श्यामा हो जाती है , उन्हें में रोज सुबह घर के बर्तनों को सर पर रख कर कॉलोनी के नल से पानी भरकर लाते हुए देखता हु, जब घूम कर वापस आता हु तो इनकी हाथ में झाड़ू होता है और ये घर के आँगन की सफाई कर रहे होते है.इनकी श्रीमती जी भी सभी कामों को इन्हें सोंपकर खुद मंदिर,सत्संग,पूजा पाठ,व्रत उपवास में व्यस्त हो गई है | एक राष्ट्रीयकृत बैंक के लोन ऑफिसर के पद से रिटायर हुए है, जब नौकरी में थी तो शहर के लगभग सभी जाने माने व्यब्सायी इनके घर और ऑफिस के चक्कर लगाते रहते थे ,किसी को ओ डी लिमिट बढ़वानी,किसी को लोन लेना . थे भी बहुत मिलनसार और सहयोगी , लेकिन रिटायर होने के बाद कोई इनकी सुध नहीं लेता ,इनकी पत्नी भी इनके रिटायर होते ही खुद घर के सारे कामों से रिटायर हो गयी, अब ये सुबह ही अपनी ड्यूटी पर मुस्तैदी से तैनात हो जाते है |
मुझे थोड़ा और जानने की जिज्ञासा हुई कि ये सेवानिवृत्ति का सुख वास्तव में सुख है या नहीं, या हाथी के दांत दिखाने के कुछ और और खाने के कुछ और। तो एक बार एक सेवानिवृत्त परिचित को घेर कर चाय पीने के बहाने बिठा ही लिया उसे कुरेदेने लगा। ‘अंकल जी, और कैसी गुजर रही है आपका सेवानिवृत्त जीवन? अब तो बड़े मजे होंगे, ऑफिस का चक्कर नहीं, कोई नेताओं की चापलूसी नहीं , मंत्रियों के चक्कर लगाने नहीं ताकि पोस्टिंग मनपसंद जगह बनी रहे, सेवानिवृत्ति की पेंशन अलग मिल रही है, खूब सारा धन प्रोविडेंट फंड से आ ही गया होगा।’
परिचित थोड़ा गंभीर हो गए शायद उनकी कोई दुखती रग फड़कने लग गई, बोलने लगे—’अरे कहाँ, सेवानिवृत्ति के बाद आदमी की जिंदगी एक दम झंड हो जाती है, ताउम्र कार्यकाल के दौरान तो मेरे कर्मचारी मेरी चुगली करते नहीं थकते, मेरी शिकायतें, लॉबिंग करना और हमेशा मुझे नीचा दिखाने की कोशिश करते रहे, जैसे ही सेवानिवृत्ति का समय नजदीक आया सब का व्यवहार बदल गया, मेरी कुर्सी की तरफ लालसा भरी निगाहों से देखने लगे, कि मेरी जगह कुर्सी कौन हथियाएगा बस यही सबकी उत्सुकता | मेरी कुर्सी हथियाने के लिए मुझसे ही सिफारिश करवाने के लिए मेरे दफ्तर के बहार चक्कर लगाने लगे । मेरे घरवाले भी जिन्हें मैंने पूरे कार्यकाल के दौरान सुविधा शुल्क की ऊपर की कमाई से लबरेज रखा लेकिन उनकी निगाह तो मेरे प्रोविडेंट फंड पर थी, उसके बंटवारे को लेकर मेरे दोनों बेटों में घमासान हो गया, पहले ही एक ने मकान खरीद लिया ,एक ने गाँव में जमीन खरीद ली, मेरे सारे प्रोविडेंट फंड को डकार लिया। सोचा सेवानिवृत्ति के बाद कुछ समाज सेवा करूँगा, कई संस्थाओं के चक्कर लगाए लेकिन कोई भाव ही नहीं देता | कोई पूछ नहीं रहा ! जब कार्यालय में नौकरी पर था तो न जाने कितनी संस्थाएं मुझे मुख्य अतिथि बनाने के लिए चक्कर लगाती रहती थीं, हर संस्था में दान दिया लेकिन कुछ काम नहीं आया, लगता है मुझे खुद ही कोई NGO खोलनी पड़ेगी। समाज सेवा तो करनी ही है चाहे कुछ हो जाए।’
मुझे मालुम है इन परिचित का मेरे समाज से ही आते है, जब नोकरी पर थे,इनकी एंठन देखने लायक थी,चाल में जो अकड थी वाह सुभान अल्लाह ,किसी के अभिवादन का जबाब तो देना दूर उसकी तरफ अपना सर घुमाना भी अपनी तौहीन समझते थे. दफ्तर में कोई रिश्तेदार,पड़ोसी या मित्र चला जाता था तो उसे पहचान ने से इनकार कर देते थे, कोई काम इन्हें फेवर में करने को कहते थे तो दस नियमों का हवाला देते हुए उसे वहां से खिसकने को मजबूर कर देते, समाज में इनके रूखेपन स्वभाव की मिसाल दी जाती थी ! ये जो संस्थाएं जो इन्हें मुख्य अतिथि के स्वरुप बुलाती थी ये सब दुसरे समाज की संस्थाए थी जिन्हें ये खूब धन लुटाते थे , लेकिन अब उन्होंने भी इनसे कन्नी काट ली है | हमारे समाज में अलिखित और अघोषित समझौता हो चुका था की इन्हें न तो किसी संस्था का पदाधिकारी बनाना न ही इन्हें किसी संस्था में अतिथि स्वरुप बुलाना | एक बार ग़लती से ये संस्था के चुनाव में खड़े भी हो गए ,समाज ने इन्हें चुनाव में हराकर इनसे खूब बदला लिया !
लेकिन चूँकि मेरी हिम्मत नहीं थी की उन्हें हकीकत से रूबरू कराऊँ, तो मैंने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा, ‘आपकी तो इतनी पहुँच है सरकार में, सरकार से कहकर अपनी कोई जगह मंत्रालय में फिट करवा लो ना, आपके तो मंत्री खास हैं उनके OSD बन जाओ, या किसी सरकारी संस्था, प्रोजेक्ट कमीशन, आयोग वैगरह में कुर्सी हथिया लो, आप ऐसे कैसे जिंदगी काटोगे?’
एक दूसरा आप्शन देते हुए मैंने बात को जारी रखा-या फिर आप चुनाव लड़ो ना, आप जैसे पढ़े-लिखे, शक्तिशाली, और समझदार नेताओं की जरूरत है इस देश को ! वैसे भी लोकतंत्र खतरे में है, आप इसे बचा सकते हो। आपकी उम्र भी हो गई, लोग आपको गंभीरता से लेंगे | मन तो कहा की साथ में ये भी कहा दूँ की “आपकी मोटी तोंद और कुटिल मुस्कान एक टिपिकल नेता की छवि देती है।’ आपका कोई भी काम बिना पैसों के नहीं करने का स्वभाव जिसके आप अपनी नौकरी के दौरान सिध्हस्त हो गए है,आपको एक भ्रष्ट नेता और पार्टी का दुलारा नेता बनाने में मदद करेगा, आप भी घोटालों पर घोटाले करके इस लोकतंत्र की जड़ों को हिलाने में मदद करोगे |”
लेकिन हिम्मत नहीं हुई
अभी तक चाय का प्याला खत्म हो चुका था, इसी के साथ उनके गुबार भी थोड़े थोड़े कम हुए, शायद उनके दिमाग में कोई विचार कौंध गया तो जल्दी से उठ खड़े हुए और बोले ‘अभी मैं चलता हूँ, घर से निकला था सब्जी लेने के लिए ,आपके यहाँ टाइम का पता ही नहीं चला ! लेट पहुंचूंगा तो बेटा और बहू दोनों बिगड़ेंगे, उनके ताने बर्दाश्त नहीं होते।’#रिटायरमेंट #सेवानिवृत्ति_का_सुख #सेवानिवृत्त_जीवन #डॉक्टर #वकील #नेता #सर्जन #सेवानिवृत्ति_की_कहानी #रिटायरमेंट_के_बाद #समाज_सेवा #व्यवसायी #सरकारी_कर्मचारी #रिटायरमेंट_प्लानिंग #प्रोविडेंट_फंड #पेंशन #सेवानिवृत्ति_के_फायदे #सेवानिवृत्ति_के_चुनौतियां #सुखद_सेवानिवृत्ति #काम_और_सेवानिवृत्ति #सेवानिवृत्त_बुजुर्ग #रिटायरमेंट_के_अनुभव #सेवानिवृत्ति_के_पल