जिहिं बृज केलि निकंज में, पग पग होत प्रयाग।
डॉ. श्रीगोपाल काबरा
प्रयाग – मिलन स्थल – संगम – जल धाराओं का मिलन, नदियों का संगम। पंच प्रयागः 1. विष्णुप्रयाग जहां अलकनंदा में धौली गंगा मिलती है; 2. नन्दप्रयाग में नन्दाकिनी का अलकनंदा से मिलन; 3. कर्णप्रयाग में अलकनंदा का पिंडार ग्लेसियर से आई पिंडार नदी से संगम; 4. रुद्रप्रयाग में अलकनंदा का मंदाकिनी से मिलन और 5. देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा के संगम से बनी गंगा। और फिर प्रयाग राज (इलाहबाद) जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का त्रिवेणी संगम।
ज्ञानेन्द्रियों, अंतेन्द्रियों और रसायेनेन्द्रियों से आये संवेगों की त्रिवेणी
इन्द्रियों से आये हर आवेग का संचारन, जैसा कि कम्प्यूटर में होता है, एक ‘कोड’ के रूप में होता है। कोडेड आवेगों के संकलन से संवेग बनते है, जिनका अपना कोड होता है और संवेगों से संवेद। मस्तिष्क में नियत केन्द्र में पहुंचने पर डी–कोड हो कर पहचाने जाते हैं, उनकी चेतना में अनुभूति होती हैं। संवेदनाओं का सामुहिक अनुभव कोड हो कर संकलन के लिए स्मृति में भेज दिया जाता है, जिसकी अपनी एक प्रक्रिया होती है।
ज्ञानेन्द्रिया – आंख, नाक, कान, जीभ और तवचा। शरीर की त्वचा से आये स्पर्श, ताप और दर्द संवेगों का मेरूरज्जू की तंत्रिका धाराओं में प्रवाह होता है और अन्य ज्ञानेन्द्रियों से आये संवेगों के संगम के बाद उनकी संवेदों के रूप में आकलन, पहचान और अनुभूति होती है। यह संवेग प्रवाह तीन न्यूरो कोशकीय कड़ी द्वारा होता है। कड़ी की पहली कोशिका त्वचा में स्थित अति सूक्ष्म नली नुमा डेन्ड्राइट पर इन्द्रियों से इन संवेगों का उदगम होता है (आवेग), पहाड़ी झरनों से नदी के उदगम जैसे। यह कोशिका मेरूरज्जू में अपनी ओर (साइड) की एक कोशिका से मिलन करती है (पहला संगम)। दूसरी कोशिका के सूक्ष्म नली नुमा एक्सोन क्रोस कर दूसरी ओर जाती है (दांई बांई ओर और बांई दांई ओर), और फिर एक निश्चित ट्रेक्ट (धारा, नदी) के रूप में ऊपर मस्तिष्क की ओर प्रवाहमान हो जाती है। दूसरी कोशिका मस्तिष्क के थेलामस में स्थित तीसरी कोशिका से संगम करती है (दूसरा संगम)। तीसरी कोशिका के एक्सोन मस्तिष्क के उस ओर के गोलार्ध में स्थित सेन्सरी कॉर्टेक्स – संवेद केन्द्र – में संवेद पहुचा कर शेष हो जाते हैं। जिस प्रकार सभी नदियां समुंद्र में मिलती है वैसे ही सभी संवेग धारायें आकर अपनी ओर के गोलार्ध में अलग अलग संवेद केन्द्रों में। और फिर होता है इस अथाह समुंद्र में इन धाराओं नदियों का मिलन संगम। लेकिन संवेद केन्द्रों में पहुचने के पहले इनका संगम थेलामस में होता है जैसे प्रयाग राज में गंगा, यमुना, सरस्वती का।
मांसपेशियों, जोड़ों और रक्त वाहनियों में स्थित दबाव व तनाव–इन्द्रियों (अंतेन्द्रियां – स्ट्रेच रिसेप्टर्स और बेरो रिसेप्टर्स) से आये संवेग मेरूरज्जू और मेरूदन्ड की तीन कोशकीय कड़ी की अपनी धाराओं (ट्रेक्ट्स) में प्रवाहित होते हैं, क्रोस करते हैं व अन्य संवेगो से मिलते हैं। ये दो धराओं में विभक्त हो जाते हैं। 1. जो चैतन मस्तिष्क तक पहुंचते है, जिनका बोध होता है, चेतना के स्तर पर अनुभूति होती है, और 2. जिनका आकलन, पहचान और संग्रहण अवचेतन में ही होता है। रसायनेन्द्रियों (केमोरिस्प्टर्स) से आये संवेगों का भी मिलन और आकलन अवचेतन में ही होता है। चेतन, अवचेतन और भावनाओं की त्रिवेणी का संगम लिम्बिक लोब होता है। लिम्बिक लोब में ही संवेगों की भावानुभूति होती है। त्रिवेणी स्नान से धर्मानुभूति। आध्यात्म की गंगोत्री टेम्पोरल और लिम्बिक लोब ही हैं।
पंच प्रयाग की तरह ही पांच ज्ञानेन्द्रियों – आंख, नाक, कान, जीभ और त्वचा – जहां से देखने, संघने, सुनने, चखने (स्वाद) महसूस करने (स्पर्श, ताप, दर्द) के संवेगों की संवेदनाओं के रूप में अनुभूति होती है। बाहरी जगत से सतत आती इन संवेदानोओं की बहुआयामी सामुहिक अनुभूति और स्मृति ही ज्ञान का आधार होती हैं। आवेग – संवेग – संवेदना – संज्ञान – अनुभूति – अनुभव – स्मृति। दृष्टि से दृष्यों की अनुभूति, स्मृति। श्रवण से शब्द, भाषा, नाद का ज्ञान व स्मृति, बोली, लेखन। त्वचा से आये संवेगों से बाहरी जगत की भौतिक अनुभूति, ज्ञान, स्मृति, परिवेश में शरीर की स्थिति, ज्ञान। अंतेन्द्रियों से आये संवेगों से स्वयं शरीर का आत्मबोध (बॉडी इमेज, कॉन्शस प्रोप्रियोसेप्सन)।
संवेगों के संगम से जनित संवेदनायं, और संवेदनाओं के संगम से जनित अनुभव। चेतना में अनुभूति और अवचेतन में स्मृति संकलन। स्मृति से स्वतःस्फूर्त संवेदनओं की पुनः अनुभूति। संवेदनाओं की सामुहिक अनुभूति, ज्ञान और स्मृति का विश्लेषण और विवेचन ही चितंन–मनन होता है, सोच और विचार का आधार होता है। चिंतन, मनन, सोच, विचार, विवेचन आदि के लिए संवेदनाओं का संगम स्थल मस्तिष्क का अग्रभाग – फ्रंटल लोब होता है। ध्वनि, प्रकाश और गंध जनित सेवेदनाओं का संगम स्थल टेम्पोरल लोब होता है। फ्रंटल, पेराइटल, ओक्सिपीटल और टेम्पोरल लोब के संगम स्थल (एसोसियेशन एरिया) में प्रयाग, उज्जेन, हरिद्वार और नासिक की तरह ही संवेदनाओं का कंभ मेंला लगता है। तंत्रिका तंत्र के चक्रों में प्रवाह–रत, बाहर से आये या स्मृति से स्वतःस्फूर्त, संवेगों का बोध ही चेतना है, चिंतन, मनन, सोच और विचार है। विभिन्न न्यूरोट्रांसमीटर्स (न्यूरोरसायन) द्वारा उद्वेलित तंत्रिकातंत्र के चक्रो में प्रवाहित आवेग ही मस्तिष्क की कार्यविधि होती है, ब्रेन और माइन्ड, मस्तिष्क और चेतना का आधार।
तज तीरथ हरि राधिका, तन दुति कर अनुराग
जिहिं बृज केली निकुंज में, पग पग होत प्रयाग।
डॉ. श्रीगोपाल काबरा
15, विजय नगर, डी-ब्लॉक, मालवीय नगर, जयपुर – 302017 मोबाइलः 8003516198