Dr Amit Goyal
Jun 22, 2025
हिंदी कहानी
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मैंने अपने क्लीनिक में प्रवेश किया। कई मरीज़ विश्राम कक्ष में बैठे हुए थे। कुछ के चेहरे पर संतोष था—शायद मेरे इलाज से उन्हें लाभ हुआ हो। कुछ आशंकित मुद्रा में बैठे थे—शायद पहली बार आए थे या फिर पूर्ववर्ती इलाज से संतुष्ट नहीं थे। एक वृद्ध सज्जन इधर-उधर टहल रहे थे। सफ़ेद दाढ़ी थोड़ी […]
डॉ मुकेश 'असीमित'
Jun 22, 2025
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तुम भगवान हो, तो गलती नहीं कर सकते — क्योंकि इंसान की तो गलती माफ़ होती है। अब जब भगवान बना दिया है, तो ये भी जान लो... इंसानों के हक़ मांगोगे, तो चोला उतार फेंका जाएगा। क्या कहा? छुट्टी चाहिए? भगवानों को छुट्टी नहीं मिलती... बस पूजा मिलती है या पत्थर!
डॉ मुकेश 'असीमित'
Jun 8, 2025
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"डॉक्टर साहब, आपकी पढ़ाई अपनी जगह… हम तो इसे 'नस जाना' ही मानेंगे!"
ग्रामीण चिकित्सा संवादों में हर लक्षण का एक लोकनाम है — 'चक चली गई', 'हवा बैठ गई', 'गोड़ा बोल गया', 'ऊपर की हवा का असर है'। ये केवल शब्द नहीं, एक पूरी चिकित्सा-व्याख्या है, जिसमें विज्ञान, विश्वास और व्यंग्य की त्रिवेणी बहती है। गाँव के मरीज डॉक्टर से नहीं, खुद अपनी बीमारी का निदान लेकर आते हैं। इस लेख में इन्हीं रंग-बिरंगे अनुभवों, प्रतीकों और मुहावरों के ज़रिए एक लोक-चिकित्सा संस्कृति का हास्य-चित्रण किया गया है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
May 22, 2025
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“गालियों का बाज़ार” नामक उस लोकतांत्रिक तमाशे का प्रतीक है जहाँ भाषाई स्वतंत्रता के नाम पर अपशब्दों की होड़ है। हर कोई वक्ता है, हर गाली एक ब्रांड। संविधान की आड़ में तर्क नहीं, तापमान बढ़ाया जा रहा है। यह व्यंग्य मौजूदा सोशल-मीडिया और राजनीति की भाषा पर करारा प्रहार है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
May 13, 2025
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पुरस्कारों की चमक साहित्यकारों को अक्सर पितृसत्ता की टोपी पहना देती है। ये ‘गुप्त रोग’ बनकर छिपाया भी जाता है और पाया भी जाता है, झाड़-पोंछकर अलमारी में रखा जाता है। साहित्यिक संसार में आज पुरस्कार एक ‘औषधि’ है – बिना मांगे मिल जाए तो शक होता है, न मिले तो रोग गहराता है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
May 11, 2025
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एक तीखा हास्य-व्यंग्य जो दिखावे के मदर्स डे और असल माँ के संघर्षों के बीच की खाई को उजागर करता है। सोशल मीडिया की चमक के पीछे वो माँ छुपी है, जो आज भी बिना शिकायत अपने बच्चों की खुशियाँ बुन रही है — रोटी सेंकते हुए, ममता लुटाते हुए। पढ़िए, मुस्कुराइए और सोचिए — क्या एक पोस्ट ही काफी है उस ममता के लिए?
डॉ मुकेश 'असीमित'
May 9, 2025
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बेवकूफ बनना कोई साधारण काम नहीं, यह भी एक कला और तपस्या है, जिसमें सामने वाले को यह आभास भी न हो कि आप अभिनय कर रहे हैं। यह समझदारी का मुखौटा पहनकर मूर्ख दिखने की युक्ति है। हर कोई जन्मजात बेवकूफ नहीं होता, बल्कि कई बार जो दूसरों को बेवकूफ बना रहा होता है, वही सबसे बड़ा बेवकूफ सिद्ध हो जाता है। आजकल के घोटाले, फ्रॉड और योजनाएँ इसी बेवकूफी की ज़मीन पर फलते-फूलते हैं। लोकतंत्र में तो वोट तभी मिलते हैं जब मतदाता को बेवकूफ बनाए रखा जाए। बाज़ार में 'वन गेट वन फ्री' जैसे ऑफर इसी मानसिकता का हिस्सा हैं। सनातन काल में भी देवताओं को मोहिनी अवतार लेना पड़ा था — यानी तब भी यह कला प्रचलित थी। अतः प्रस्ताव है कि “राष्ट्रीय मूर्ख आयोग” की स्थापना की जाए, क्योंकि अब नीतियाँ यही कहती हैं: "समझदारी सवाल उठाती है, समाधान तो बेवकूफी ही देती है।" जय बेवकूफी! जय भारत!
डॉ मुकेश 'असीमित'
May 6, 2025
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A darkly humorous satire on modern-day healthcare, portraying a doctor's hospital as a “Kaliyug temple” where survival needs CCTV, bouncers, panic buttons, and soundproof walls. Packed with witty metaphors, real-world ironies, and tongue-in-cheek advice for new doctors, it exposes the chaos of violence, politics, and DJ culture outside hospital doors — where healing meets havoc in India’s twisted reality.
डॉ मुकेश 'असीमित'
Apr 30, 2025
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A razor-sharp satire on today’s photo-op revolutions, Candle March – Of the Mighty "Mom-Batti Veers" mocks performative activism where grief is glamorized and protests are lit by candles, not courage. From WhatsApp warriors to Instagram patriots, it exposes how revolutions have become aesthetic rituals, not acts of change. A hilarious yet biting commentary on symbolic resistance in a nation addicted to drama over action.
डॉ मुकेश 'असीमित'
Apr 28, 2025
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An inspiring glimpse into the journey of publishing three books — from Hindi satires to an English humor collection. Dr. Mukesh shares heartfelt anecdotes, challenges of self-publishing, and the joy of finally bringing "Roses and Thorns" to readers worldwide. Now available on Amazon, Flipkart, and Notion Press!