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मैं और मेरा आलसीपन –अक्सर ये बातें करते हैं
मैं अपनी साज-सज्जित साहित्यिक कार्यशाला की शोभित डेस्क के समक्ष विराजमान था, जहां कुंजीपटल पर मेरी उंगलियाँ कुछ उंघती सी ,लड्खाडाती सी कुछ उकेर रही थीं, कि अचानक मेरी धर्मपत्नी ने आज के अखबार का पुलिंदा मेरे समक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने एक विशेष समाचार कालम की ओर संकेत करते हुए कहा, “देखो, एक व्यक्ति ने ‘आलस्य’ के क्षेत्र में विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया है, तुमने इसके लिए क्यों नहीं आवेदन किया? निश्चय ही विजयी होते।” वास्तव में, आलस्य और मेरे मध्य ऐसा अटूट बंधन है,जैसे की आत्मा और शरीर का होता है जो केवल महाप्रलय में ही छूट पाएगा, ऐसी मेरी आशा है।
परन्तु, मेरी धर्मपत्नी के तीव्र व्यंग्य की चुभन से मेरी सदैव निद्रालु अंतरात्मा ने आज कुछ क्षण के लिए पलकें उठाईं और इस घटना पर कुछ विचार-विमर्श करने का साहस किया। मैंने सोचा, आज आलस्य पर ,अपने आलस्य को त्यागकर कुछ लिख ही डालूं । यद्यपि यह मेरे आलसी स्वभाव का अपमान होगा, परंतु मैं मेरे अन्दर चिरकाल से डेरा डाले हुए आलसीपण को सार्वजनिक रूप से अपमानित होते हुए भी नहीं देख सकता।
वैसे ये आलसीपन एक अनुवांशिक गुण है ,जिसे मैंने मेरे पिताजी से लेगसी के रूपप में प्राप्त की है तो मेरा बेटा भी इसे विरासत को फलने फूलने के लिए जी तोड़ मेहनात कर रहा है और ‘गुरु गुड ही रहा और चेला चीनी हो गया “ रूप को चरितार्थ कर रहा है. जब तीनो पीढियां घर में होती है तो हमारे घर में आलसीपन की दुश्मन महिला सदस्यों द्वारा वातावरण में फैलाई गयी हमारे आलसीपन की गंध की ही चर्चा होती है,वो गंध जो दो और दो मिलकर चार नहीं चार हजार गुना रूप में गुणित ओर फलित होकर पूरे घर को आलसीपन की जीती जागती मिसाल बना देता है |
जहाँ तक मेरे आलसीपन का सवाल है ,अब चाहे श्रीमती जी मुझ पर तोहमत लगाए की में अपने आलसीपन के कारन इतना निकम्मा नकारा हो गया हु की कभी भी कोई ग्रगृहस्थी के काम में हाथ नहीं बंटाता, न झाड़ू न पोंछा, न बर्तन , एक योग्य टिकाऊ पत्नीव्रत पति के गुणों से वंचित , दिन भर बेड पर पड़ा रिमोट से टीवी चैनलों को खंगालता रहता हु, लेकिन मेरे तर्क को कोई समझता ही नहीं,ये ग्र गृहस्थी के झाड़ू पोंछे वाले काम,बिलो के भुगतान का काम ,बाजार में शौपिंग,दूधवाले से दूध लेना ये सब टुचे मुचे से काम है ,अगर इन कामों को मेरी श्रीमती जी न करके में करने लागुन तो फिर बड़े बड़े मसले ,जो देश और विदेश तक फैले है उन्हें कौन संभालेगा,ममें बड़े मसलों को हल करने की कोशिश करता हु ,जैसे भारत पकिस्तान के बॉर्डर विवाद,उक्रेन रूस के युध्ह विराम, अमेरका के राष्ट्र पति चुनाव ,इतनी सारी इंटरनेशनल समस्याए है,आखिर उन्हें भी तो कोई संभालने वाला होना चाहिए न.
वैसे इस संसार के अनेकों आविष्कार आलसी लोगों की ही देन हैं, इसमें कोई शक नहीं। मनुष्य पैदल नहीं चलना चाहता, तो मोटर कार बना दी। वह किसी के यहाँ समाचार लेने नहीं जाना चाहता, तो फोन बना दिया। बाहर मल-मूत्र विसर्जन करने के लिए नहीं जा सकता, तो घर में ही शौचालय जोड़ दिया। टीवी बंद और चालू करने के लिए बिस्तर छोड़कर नहीं जा सकता, तो रिमोट बना दिया।
अब तो बड़े बड़े नेताओं ने भी अपनी अभी हाल ही में हथियाई हुई रईसी की शानो शौकत में, रिमोट के परदे ,रिमोट से चलने वाले टॉयलेट फ्लश लगवा लिए है ,धन्य है मानव और उसकी क्रिएटिविटी जिसको जन्म दिया इस आलसीपण ने |
इस प्रकार आलस्य का आर्थिक व्यवस्था में भी विशेष योगदान है। यदि आलस्य न हो, तो नौकरी भी समाप्त हो जाएंगी। वाहन खुद न चलाने के आलस्य के कारन ड्राईवर रखे गए, महिलाओं ने झाड़ू-पोंछा और बर्तन न करने के लिए मेड रखी, और बॉस को केवल आदेश देने हैं, तो उसे काम करवाने के लिए अपने अधीनस्थ कर्मचारी चाहिए। अब बॉस भी क्या करे उसके घर पर उसका बॉस उसके आलसीपन की अंतरात्मा को चुनौती देते हुए घर के सारे काम करवाती है ,अब कही तो उसे अपने आलसीपन के अहंकार की चोट को संतुष्ट करना पड़ेगा.
आदिम काल से ही आलस्य अपने अस्तित्व को बनाये हुए है , जब मनुष्य और जानवर में ज्यादा फर्क नहीं था, और मनुष्य का काम केवल शिकार करके पेट भरना था, उसे शिकार के लिए दौड़ना पड़ता था, उसने भाला का आविष्कार किया ताकि दूर से ही शिकार कर ले। इस प्रकार, आलस्य न केवल व्यक्तिगत, बल्कि समाजिक और आर्थिक प्रगति में भी अपना योगदान देता है। इसे न केवल स्वीकारा जाना चाहिए, बल्कि सम्मानित भी किया जाना चाहिए।
तो विचार करें, यदि सारे नागरिक आलस्य को अपना लें, तो देश में न केवल भ्रष्टाचार और अत्याचार का अंत होगा, बल्कि अपराध की दुनिया भी समाप्त हो जाएगी। अगर सभी आलसी हो जाएं, तो कोई भी दूसरों को लूटने, डराने-धमकाने के लिए अपने आरामदायक बिस्तर से उठना नहीं चाहेगा। समाज में जहां भ्रष्टाचारी जुगत लगाकर घोटाले पर घोटाला कर रहे हैं, गुंडे-मवाली सुबह से काम पर लग जाते हैं और दिन भर भाग-दौड़ कर दो जून की रोटी का जुगाड़ करते हैं, यदि वे भी आलस्य को अपना लें तो इस प्रकार की समस्याएँ स्वतः ही समाप्त हो जाएंगी।
वास्तव में, आलस्य ही है जो मनुष्य को तरक्की की ओर ले जाता है। लोकतंत्र के गिरते स्तर, दिशाहीन समाज की स्थिति को देखते हुए भी एक आलसी व्यक्ति आंखें मूंदे बिस्तर पर पड़ा रहता है और सब कुछ अच्छा है, ऐसा फील गुड का आभास करता रहता है। नेता लोग भी तो इसी का फायदा उठाकर आधी जनता जो अपने आपको इन्तेलेक्चुअल कहलवाती है,लेकिन मजाल की अपना आलस छोड़कर वोट देने चली जाए, और अछा खासा मौका देती है नेताओं को अपनी मनमानी करने का,चुनावी धान्द्ली में वोट के बदले नोट बरसाकर ,दारू की बोतले खुलवाकर वोट बटोर लेती है ,लोकतंत्र का असली मजाक इस आलसीपन के कारन ही तो चल रहा है, और फिर आलसी का एक ब्रम्ह वाक्य-कोऊ नृप होय हमे का हानि “ बस हमारी आलसीपन में कोई खलल नहीं डाले
इसी तरह, जब बात आती है जनसंख्या वृद्धि की, तो यहाँ भी आलस्य का योगदान अप्रतिम है। मनोरंजन के लिए कौन बाहर जाना चाहेगा? सिनेमाघरों में, सर्कस में लंबी लाइनें लगाने या मेलों में धक्का खाने के बजाय, घर के एक कमरे में बिस्तर पर पड़े-पड़े मनोरंजन के माध्यम से देश की जनसंख्या वृद्धि में अपना योगदान दे रहा होता है।
आलसी आदमी की चाहत सभी बिभागों में भी होती है, मंत्रालयों में होती है,तभी तो देश के विकास की ढेरों प्रोजेक्ट की फाइलें आलमारियों में धुल खाती रहती है , नेताओं के बड़े बड़े घोटालों की फाइलें ठन्डे बस्ते में पडी रहती है. आलसी आदमी को कुछ बॉस ढीठता पूर्वक ढीठ भी कहते है,बेकार कहते है ,निकम्मा कहते है ,लेकिन कुम्भ्कर्निय गुणों से ओतप्रोत इस प्राणी के कोई फर्क नहीं पड़ता, इसने काम नहीं करने की भीष्म प्रतिज्ञा धारण कर रखी है और वो इसे निभाएगा, चाहे हार थककर इसका बॉस इसे काम बताना ही छोड़ दे.
मेरा मानना है कि आलस्य को व्यक्ति के सर्वश्रेष्ठ गुणों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए और इसे संविधान में एक अनुच्छेद के रूप में जोड़कर सर्वजनिक मान्यता प्रदान की जानी चाहिए। जिन्हें एक्टिविस्ट होने का कीड़ा काटा है, उन्हें दंड दिया जाना चाहिए। मेरा तो बस एक ही आह्वान है: संसार के सभी आलसियों, सोते रहो, अपने आलस्य की ताकत को पहचानो। इस कल्पना संसार के ‘फील गुड’ में अपनी आत्मा को भिगोकर तृप्त भाव से बस पड़े रहो। आलस्य को इस तरह आत्मसात करो कि वह न केवल आपके व्यक्तिगत जीवन को सुखद बनाए, बल्कि समाज और राष्ट्र के विकास में भी अपनी अहम भूमिका निभाए।
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