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मुझे भी इतिहास बनाना है -हास्य व्यंग रचना

"A cartoon depicting an Indian rural Hindu teacher sleeping on a chair facing the classroom students. The teacher, referred to as 'Marsahab,' is dressed in traditional rural attire. A student is reading aloud from a history book while other students recite in chorus. The background includes typical classroom elements like a blackboard, maps, and desks."

“या यूँ कहें की शायद बचपन में ही किसी प्रेरक वक्ता ने मुझे ज्ञान की घुट्टी पिला दी थी ,की इतिहास पढ़ना नहीं है बेटा,इतिहास बनाना है ,इतिहास गढ़ना है ! बस तभी से इतिहास बनाए में लगा हूँ ,इस से पहले की खुद इतिहास हो जाऊँ!”

इतिहास, वह विषय जो समय की धूल में अपनी गौरवगाथाएँ समेटे रहता है, पर पता नहीं क्यों , कभी इतिहास ने मुझे इस पर गर्व करने का मौका नहीं दिया । मैं यहाँ अपने निजी इतिहास की बात कर रहा हूँ, आप शायद इसे गलत समझ रहे होंगे। मेरे देश का इतिहास तो वास्तव में स्वर्णिम अक्षरों में मेरे हृदय पटल पर विराजमान है। यहाँ समस्या यह है कि भले ही देश और विश्व का इतिहास मेरे हृदय पटल पर अंकित हो, मुझे इस पर गर्व भी होता है, जब भी देश के इतिहास का नाम सुनता हूँ मेरे रोम-रोम में बसे हुए रोंगटे भी खड़े हो जाते हैं, लेकिन यह इतिहास हमेशा मेरे हिरदय पटल पर ही रहा ,कभी मेरे मस्तिष्क पटल पर नहीं घुस पाया।

या यूँ कहें की शायद बचपन में ही किसी प्रेरक वक्ता ने मुझे ज्ञान की घुट्टी पिला दी थी ,की इतिहास पढ़ना नहीं है बेटा,इतिहास बनाना है ,इतिहास गढ़ना है ! बस तभी से इतिहास बनाए में लगा हूँ ,इस से पहले की खुद इतिहास हो जाऊँ!

स्कूल के समय से ही, जब इतिहास की पुस्तक मेरे बैग में घुसी, वह मेरी पत्नी के अलमारी में पड़े साड़ियों की तरह कभी-कभार ही बाहर निकली। और जब भी बाहर निकली, मैं इसके पहले पन्ने को देखकर ही इतना मंत्रमुग्ध हो जाता कि नज़रें वहीं अटक जातीं, दूसरा पन्ना पलटने का मौका ही नहीं मिलता। हमारे इतिहास के मास्टर, जिन्हें हम मार साहब भी कहते थे क्योंकि वो मारते बहुत थे, इतिहास को रटाने में कसर नहीं छोड़ते। खुद चूंकि पास के एक गाँव से ही आते थे, उनके बहुत बड़े खेत थे। खेत में रबी और खरीफ दोनों ही फसलों की पैदावार होती, कुआं भी था, कुएं में इंजन भी था। घरवाले उनकी मास्टरी की टुची सी नौकरी से ज्यादा प्रभावित नहीं थे और पूरी रात उन्हें उनके पुश्तैनी काम-धंदे यानी की खेतों में कूड मोड़ने के काम में लगाए रखते (कूड मोड़ने का मतलाब खेतों में पानी देना ,जहा क्यारियों में पानी के बहाव को बदल कर हर क्यारी में पानी पहुँचना होता है ). । बेचारे मार साहब कूड-मोड़ते, मोड़ते अपने खुद का इतिहास ताक पर रख देते, और दिन में स्कूल आते वक्त उनीणदे से क्लास में घुसते। बच्चों को इतिहास के किसी मुगल खानदान के बिगड़ैल नबाब का चैप्टर खोलने के लिए कहते, एक बच्चे को किताब के साथ खड़ा कर देते जिसकी आवाज़ गाँव में होने वाले कीर्तनों में गा-गाकर काफी ऊँची हो गई थी। उसे इतिहास दोहराने के लिए कहा जाता और सारे बच्चे कोरस में उस इतिहास को दोहराते। इस तरह किसी न किसी मुगलाई नबाब की कब्र रोज खोदी जाती। और मार्साहब खुद कुर्सी में धम्म से बैठकर नींद के आगोश में डूब जाते. इतिहास के चल रहे पाठ में बीच बीच में अपनी खाराटों से हुंकार भरते रहते ताकि बच्चों को पता रहे की मारसाहब अभी क्लास में ही है ,दिवंगत नहीं हुए हैं .

A cartoon showing a student looking frustrated while trying to avoid studying a history book peeking out from his bag with a grumpy face. The student is distracted by a computer displaying various enticing ads and offers. The setting is a cluttered room with a bed, study table, and posters on the wall.

इतिहास की किताब से बचने का प्रयास – लेकिन ये विज्ञापन भी कम नहीं

अब भी, शादी के बाद भी, इतिहास पर ज्यादा कुछ घमंड नहीं किया। मैं तो इतिहास से इतना नाखुश हूँ कि ब्राउज़र में दिन भर का पढ़ा हुआ सारा इतिहास डिलीट कर देता हूँ। क्या करे, घर में बीवी-बच्चे हैं, उन्हें पता चले कि दिन भर में इस वेब जाल ने मुझे क्या-क्या परोसा है। पता नहीं, कृत्रिम बुद्धिमत्ता भी अपने तरीके से सोचने लगी है। इसे कैसे पता चल जाता है कि मुझे पड़ोस की आंटी पसंद आ गई। वो ऐसे ही बड़े लुभावने से आंटी जैसे सुपर ऑफर मेरे डेस्कटॉप पर उड़ेल देता है। उसे पता है मुझे लोन की जरूरत है तो उसके पास लुभावनी EMI के क्रेडिट कार्ड के ऑफर हैं। वो मुझे घुमाना भी चाहता है तो मुझे बंकोक थाई लैंड ऐसी जगह घुमाना चाहता है , जिसके नाम भी परिवार में पता लग जाए तो भूचाल आ जाये. अब दोस्तों के साथ बैठे बातचीत करें तो वो भी इन्ही जगहों का सुझाव देते है ,मन में उत्सुकता तो रहती है आखिर क्या है ये बबाल , ये दोस्त जो किसी न किसी प्रोडक्ट की एजेंसी लिए हुए है और कंपनिया भी जानती है कहाँ इनके ठरकीपण की आग बुझ सकती है इसलिए इन्हें ऐसी जगह ही ले जाया जाता है | एक बार ऐसे ही जब उनके नमक मिर्ची चटखारे लगा कर उनके विदेश भ्रमण की दास्तानें किसी मीटिंग में सुनायी गयी ,तो हमने एक दिन उत्सुकतावश इस धार्मिक कंट्री का नाम गूगल पर टाइप ही कर दिया तो फिर गूगल बाबा बहुत भावुक हो गया , और फिर महीनों तक मुझे बंकोक थाई लैंड के लुभावने ऑफर दिखाता रहा , गूगल बाबा सुनता किसी की नहीं है लेकिन सब को अपनी जरूर सुनाता है ,बिलकुल बीबी की तरह !

अब ये तब तकनीक के हजार्ड है झेलने ही पड़ेंगे | सब कुछ तो है ना, मुझे लुभाने के लिए। लगता है जैसे कंप्यूटर नहीं हुआ, मेरी दूसरी बीवी हो गई जो मेरे हर मूड का विशेष ख्याल रखती है। खैर, कंप्यूटर के इस अति उत्साहित सेवा भावी कार्य से मेरा परिवार तो शायद खुश नहीं होगा, इसलिए मैं उस इतिहास को मिटाना ही चाहता हूँ। स्कूल में तो इतिहास के पेपर को जैसे तैसे नकल प्रक्रिया से पार कर लेते। फर्रे, जो कि हमारे इतिहास की डूबती नैया को पार कराने के लिए छात्रों और शिक्षकों की मिलीभगत से एक सामुदायिक सहयोग की भावना से आदान-प्रदान होते रहती थे ।

वर्तमान समय में, हर कोई नया इतिहास रचने में लगा है । रिकॉर्ड तोड़ने में लगा है , विभिन्न संस्थाएँ ऐसे कामों में जुटी हैं, जो इतिहास में पहले कभी नहीं हुए। जैसे धार्मिक रेली में हर बार कलशों की संख्या उच्चतम स्तर पर, महा आरती में दीपकों की संख्या रिकॉर्ड स्तर पर , सरकार भी इतिहास बना रही है , घोटालों का इतिहास , घोटालों में डकारी गयी रकम का इतिहास , बलात्कारी, भ्रष्ट नेता, बिजनेसमैन अपने अपने स्तर पर ,अपनी कौशल और प्रतिभा के दायरे में की गयी कारस्तानियो की गंध फैलाकर इतिहास पर इतिहास बनाए जा रहे है. आदमी तो आदमी , धरती चाँद सितारे जल वायु सब इसी होड़ में लगे है, सूरज ने गर्मी के तेवर दिखने का नया इतिहास बनाया है , धरती ने भूकंप की तबाही के रिकॉर्ड तोड़े है, आकाश ने बाढ़ की तबाही के , जल ने अपने आपको इतना नीचे गिरा लिया है की पातळ लोक तक चला गया | कोई प्राचीन इतिहास से संतिष्ट नहीं हैं और इसे बदलने की कोशिश में लगे हुए हैं। यहां तक कि हमारे स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भी कई लोगों को पसंद नहीं आ रहा है, और वे इसमें परिवर्तन लाने की दिशा में सक्रिय हैं। पुस्तकों और पाठ्यक्रमों में इतिहास को अपने-अपने तरीके से लिखा जा रहा है, जिससे एक नई परंपरा की नींव रखी जा रही है। सब जगह इतिहास से छेड छाड़ ,मसलन इतिहास नहीं हुआ, मोहल्ले की सविता भावी हो गयी,हर कोई इसे छेड़ना चाहता है |

रचनाकार -डॉ मुकेश गर्ग

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