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मै और मेरा मधुमेह रोग -मेरे संस्मरणों से
प्रातःकाल की सैर का एक राउंड शीघ्रता से पूर्ण कर, घर में प्रवेश किया ही था कि श्रीमती जी ने मेथी की एक मुट्ठी भर फांक को हाथ में थमाते हुए, साथ में एक गिलास जल देकर इसे निगलने का आदेश दिया। में इस नुस्खे को हाथ की मुठी में बांधे हुए मन ही मन विचार मग्न हो गया -यह मधुमेह, कैसी विडंबना है, न जाने कितने मेरे परिचित और रिश्तेदारों को मेरे ऊपर अपने-अपने प्रयोग आजमाने का मौका दे रही है ,सच पूछो तो मुझे गिनी पिग बना के रख दिया है । श्रीमती जी का चिंता करना स्वाभाविक है और शादी, समारोह, उत्सव, पार्टी आदि में मेरे मधुमेह की विस्तृत चिंतामग्न चर्चा ,वार्तालाप का प्रमुख विषय बन जाती है।उस वार्तालाप में में भी अपनी शक्ल संसार के सबसे दुखी पीड़ित प्राणी की बनाकर,(वैसे इसके लिए अलग से मशक्कत करनी नहीं पड़ती ,शादी शुदा हु न !) उनके गहन चर्चा मंथन से निकले नुस्खे ,निर्णय औए सुझाव को सुनने के लिए बेताब सा खड़ा रहता हु,ऐसे ही जैसे कोर्ट में बहस के बाद मुजरिम जज के फैसले को सुनने के लिये खड़ा होता है |
वैसे, मेरे जैसे जीव के लिए, जिनका पूरा जीवन मिठास के इर्द-गिर्द घूमता रहा है, मानो मक्खियों का मधुपर्क पर मंडराना, इस बीमारी की मुझ जीव को देन , भगवान का एक प्रकार का दंड ही है। बचपन की स्मृति ताजा है –घर की पुश्तैनी मिठाई की दुकान हुआ करती थी, जितना कलाकंद दुकान में विक्रय होता, उसका आधा तो हम भाई-बहन चट कर जाते थे। मिठाई की दुकान में ग्राहकों को मिठाई तोलने की प्रतिस्पर्धा हम भाई-बहनों में रहती थी, क्योंकि मिठाई तोलने के अलावा, दो-चार कतली मिठाई ‘गुप्त’ रूप से खाने का भी अवसर मिलता था। मिठाई गुपचुप खाने की कला में इतने पारंगत हो गए थे की , ग्राहक को मिठाई तोलने के बाद दुकान बंद करने के समय के अंतराल में दो-चार कतली आसानी से ‘अदृश्य’ कर देते थे।जी हाँ हमारी मिठाई की दूकान घर में ही इनबिल्ट थी और ग्राहक जिन्हें मिठाई लेनी होती ,घर के दरवाजे पर ही दस्तक देते थे| दूकान रेलवे फाटक की तरह हमेशा बंद ही रहती थी ,खुलती तभी थी जब कोई ग्राहक आ जाए | मिठास का शौक बाद में भी बना रहा, क्योंकि जब गाँव से बाहर शहर में पढने के लिए गए वहा भी परिवार से माँ हमेशा कुछ न कुछ मीठा बनाकर हमारे साथ रखती थीं।अब जबसे मधुमेह का आगमन हुआ है, ऐसा प्रतीत होता है मानो हमारी जिह्वा पर मिष्टान्न के प्रति समर्पित स्वाद-ग्रंथियाँ और अधिक सघन हो गई हैं, सर्वत्र विस्तारित हो गई हैं। कदाचित् मधुरता की ऐसी तीव्र लालसा होती है कि समस्त चिकित्सकीय ज्ञान, मधुमेह के संदर्भ में, निरर्थक प्रतीत होता है। गृहस्थ जीवन में तो कहा जाता है कि पति-पत्नी में विश्वास सर्वोपरि होता है, किन्तु न जाने क्यों मुझे श्रीमतीजी पर विश्वास नहीं होता कि यदि वे मुझे चुपके से रसोई में जाकर मिठाई के डिब्बे खंगाल कर मिठाई खाते हुए देखेंगी, तो क्या वास्तव में वे खुश होंगी या नहीं?
सबसे ज्यादा सुकून तब मिलता है जब कोई गेस्ट घर पर आता है ,उस समय चाय के साथ सर्व की गयी मिठाइयों से में , श्रीमती जी की नजरो से बचते हुए एक दो पीस मेहमान को ऑफर करने के साथ खुद भी खा ही लेता हु ,वास्तब में ये एक डेमो होता है मेहमान को बताने का की अमुक मिठाई कैसे खानी है ,दूसरा आप सभी जानते है पुराने ज़माने में मेहमानों को परोसे जाना वाला खाना पहले मेजबान खाता था,मेहमानों को ये सुनिश्चित कराने के लिए की इसमें कोई जहर नहीं है | में तो कई बार इंतज़ार कर रहा हु ,हमारे हर्बल किंग रामदेव जी का की वो कोई ऐसी हर्बल मिठाई लेकर आये जिसे न केवल मधुमेह वाले मरीज खा सके बल्कि उसके खाने से मधुमेह दूर हो जाए |
अकस्मात् किसी समारोह में जाने पर, मिठाई को अन्य थालियों में परोसते देख, मैं श्रीमतीजी की ओर एक मौन स्वीकृति की आशा में देखता हूँ। | श्रीमतीजी भी एक चेतावनी देती हैं कि बस आज ले लो, फिर एक महीने तक मत कहना। हम इस अघोषित समझौते को बेमन से स्वीकार कर लेते हैं और अगली बार फिर अपनी मासूम सी शक्ल बनाकर श्रीमतीजी के सामने अपनी इच्छाओं का आग्रह करते हैं। मधुमेह एक ऐसी बीमारी है जिस पर सबसे अधिक अनुसंधान स्थानीय प्रयोगशालाओं में पीड़ित पर होते हैं। कोई लकड़ी की छाल बताता है, कोई भूसा सुझाता है, कोई चूर्ण की गोलियाँ, वह भी दावे के साथ कि बस डॉक् साहब को तीन दिन खिला देना मधुमेह जड़ से खत्म हो जायेगी । हमारे ये तो महीने भर से ले रहे है और इनकी सुगर तो तीन दिन में ही कण्ट्रोल हो गयी थी भावी जी ! कई बार में पूछ लेता हु , इसके बाद परीक्षण कराया क्या? बोले, परीक्षण नहीं कराया, वो तो ऐसे ही पता लग जाता है भाईसाहब, मधुमेह इनको होती हैं तब ना सिर चकराता है, चिड़चिड़े हो जाते हैं। मधुमेह के ऐसे ऐसे मनगढ़ंत लक्षण बताते हैं जो आपको कहीं मेडिकल पुस्तक में नहीं मिलेंगे। और सभी अपने-अपने सुविधानुसार लक्षणों को परिभाषित कर एक आत्म-संतुष्टि में जी रहे होते हैं। जब बड़ी मुश्किल से डॉक्टर के कहने पर परीक्षण कराया जाता है तब पता चलता है शर्करा 400 के पार। देसी दवाइयों के चक्कर में अंग्रेजी दवाई कब की छोड़ चुके होते हैं। फिर भी नुस्खेदारों के पास जवाब होता है, परहेज नहीं किया जी, वरना नुस्खा तो रामबाण है ।मुझे लगता है जितना भगवान् राम के बानों का प्रयोग राक्षस रावन को मारने में नहीं हुआ होगा उतना इसका प्रयोग इन देसी नुस्खों की वैद्ता साबित करने में होता है | खैर, एक बार तो गजब हो गया। श्रीमतीजी सुबह सुबह पानी लेकर आईं, पानी थोड़ा ऐसा लग रहा था जैसे गाँव में घास-फूस की छत जिसे छान कहते हैं उस पर बरसात का पानी जब टिक जाता है ,दूसरे दिन जब चूने लगेगा , बिलकुल ऐसा ही लग रहा था रंग रूप में । मुझे थोड़ा संदेह हुआ, मैंने पूछा ये किसका पानी है? श्रीमती जी थोड़ा सकपकाई बोले, आप तो पी जाओ बस। मैंने कहा पी तो मैं जहर भी लूंगा, अगर तुम पिलाओगे पर बता तो दो। फिर रहस्योद्घाटन किया कि वह भूसे का ही पानी था, कहीं से भूसा लाकर उसे पूरी रात भिगोया, सुबह पानी निथार कर पिलाया गया। तीन दिन तक चला ये प्रकरण, लेकिन वही ढाक के तीन पात। अब सिर्फ मधुमेह नियंत्रण आहार से हो जाए तो ठीक, सुबह सुबह घूमने जाना, वह भी सर्दी में बाप रे बाप। लेकिन मजबूरी का नाम महात्मा गांधी।
ये सभी विचार करते हुए ध्यान मग्न मुद्रा में था ही कि श्रीमतीजी की आवाज से तंद्रा भंग हुई जब उन्होंने कहा, “अरे, कब से मेथी को हाथ में लिए पड़े हो, ले क्यों नहीं लेते?” मैंने तुरंत फांक लगाई, यहाँ भी श्रीमतीजी अब खुद मेथी मुट्ठी में भर कर मुझे देने लगीं थीं क्योंकि पहले जब इसका जिम्मा मैंने लिया था तो थोड़ी सी बेईमानी कर के बस कुछ दाने मुंह में रख कर पानी पी लेता था जिसे श्रीमतीजी ने पकड़ लिया था। बस भगवान से एक ही प्रार्थना है, कृपया दो चीजों का अस्तित्व एक साथ न रखें, या तो संसार से मीठा विदा हो जाए या मधुमेह।