हे! छाती पर मूंग दलने वाली हिरद्येशा प्राणप्रिये , पड़ोस के शर्मा जी को ही देख लो, कैसे गर्मी और सर्दी की छुट्टियां आते ही उनकी बीवी उन्हें छोड़कर मायके चली जाती है। उनके चेहरे की प्रसन्नता देख कर मुझे कुढ़न होती है। सुबह मेरा मॉर्निंग वॉक जाना दुर्लभ हो गया है। पड़ोसी ताने मारते हैं कि बीवी मायके नहीं जा रही है। मेरे चरित्र पर सवाल उठता है। कल पड़ोस की वर्मा जी की मिसेज बड़ी तिरछी निगाहों से देख रही थी, जैसे कह रही हो -मैंने कोई कांड कर दिया है ,इसलिए इनकी बीवी मायके नहीं जा रही है।
एक पति की व्यथा कथा सुनाने जा रहा हूं। यूं तो उसकी घर में कोई सुनने वाला नहीं है, इसलिए साइलेंट मोड में वह खुद ही सुना कर खुद ही सुन रहा है। लेकिन न जाने कैसे उसकी मुख वाणी लीक होकर मेरे पास पहुंच गई है। तो बिना कोई लाग-लपेट के उसकी व्यथा कथा को जस का तस ‘ सुना रहा हूं। मैं पति और पत्नी के बीच में “वो” की तरह नहीं आना चाहता, इसलिए दोनों का नाम गुप्त रखा है.
हे! ग्रह स्वामिनी प्रिये – जब से हमारी शादी हुई है, एक इच्छा मेरे अन्दर दबी पडी है , मेरी ज़ुबान में इतनी हिम्मत नहीं है कि अपनी बंद ज़ुबान को खोल कर इसे तुम्हारे सामने कहूं।लेकिन आज कुछ हिम्मत करके बुदबुदाने की जुर्रत कर रहा हूँ
हे चिरश्रन्गारिणी प्राण प्रिये ,देखो, गर्मी अपने प्रचंड स्वरूप में आ चुकी है. कूलर और ए.सी. सभी ने हाथ खड़े कर दिए हैं. तुम्हारे तपते बदन को ठंडा करने की हिम्मत इनकी अब रही नहीं है । जैसा कि तुमने कहा था तुम्हारे मायके में तो विश्व का सर्वोत्तम ए.सी. और कूलर लगा हुआ है, तो क्यों ना वहां जाकर अपने इस तपते बदन को ठंडक दो? मुझसे तुम्हारी यह तपन देखी नहीं जाती। प्रिय, तुम मायके कब जाओगी?
हे! रसोई की रानी, , शौपिंग की शहजादी पाणीप्रणयनी – सालों दर साल केलिन्डर बदलते रहे, केलिन्डर के फडफडाते पन्ने चीख चीख कर तुम्हे ग्रीष्मावकाश के स्वर्णिम अवसर की याद दिलाते रहे, लेकिन तुमने इन कैलेंडरों का उपयोग सिर्फ दूध वाले भैया के हिसाब और सोलह सोमवार की तारीखों को मार्क करने के लिए किया, कभी इन कैलेंडरों में मायके जाने वाले दिनों को मार्क नहीं किया.इन गर्मियों में तुम्हारा रसोई में काम करना,पसीने से तर हाथों से शब्जी को बिना नमक के ही स्वाद अनुसार नमकीन बनाना, मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता.मायके जाकर कब तुम दिन रात बिस्तर पर पड़े हुए अपनी भावी और माँ को “बचपन के दिन लौट आये” की याद दिलाओगे.’तुम मायके कब जाओगे प्रिये ?’
हे !प्रथम पूजनीय रमणी -देखो सरकारी स्कूल में बच्चों को भी राहत देते हुए छुट्टियां कर दी गई हैं.सरकारी स्कूल के टीचर भी अपने बच्चों को नानी के घर और अपनी पत्नी को मायके भेज चुके है.खुद सरकार की ;गर्मी से बचाव’ की योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए चप्पलें घसीट रहे है. अब निजी स्चूलों की तो मजबूरी है,साल भर की अडवांस जमा की हुई फीस ,अब कोई सरफिरा गार्जियन वापस नहीं ले ले. इसलिए एक्स्ट्रा क्लासेज के नाम पर छुपते छुपाते बचों बुला रहे हैं.हमारे चुन्नू मुन्नू भी सालों से नानी के घर जाकर अपनी छुट्टियां बिताना चाहते हैं। वहां पर वाई-फाई का फुल पैक वाला कनेक्शन लगा हुआ है,वहां वो जमकर रील बना सकते हैं , पब्जी खेले सकते हैं. यहां तो वैसे भी कंपनी वाले डेटा फूंक-फूंक कर दे रहे हैं। ऐसे में बच्चों की खातिर ही सही, इस बार तो कम से कम मान जाओ प्रिय, स्वामिनी, ‘तुम मायके जाओ न प्रिये?’
हे! छाती पर मूंग दलने वाली हिरद्येशा प्राणप्रिये , पड़ोस के शर्मा जी को ही देख लो, कैसे गर्मी और सर्दी की छुट्टियां आते ही उनकी बीवी उन्हें छोड़कर मायके चली जाती है। उनके चेहरे की प्रसन्नता देख कर मुझे कुढ़न होती है। सुबह मेरा मॉर्निंग वॉक जाना दुर्लभ हो गया है। पड़ोसी ताने मारते हैं कि बीवी मायके नहीं जा रही है। मेरे चरित्र पर सवाल उठता है। कल पड़ोस की वर्मा जी की मिसेज बड़ी तिरछी निगाहों से देख रही थी, जैसे कह रही हो -मैंने कोई कांड कर दिया है ,इसलिए इनकी बीवी मायके नहीं जा रही है।
तुम्हे तो पता है न प्राणेश्वरी बल्लभा , कांड तो मैंने जिंदगी में बस एक ही बार किया, वह भी प्रचंड कांड जब तुमसे शादी हुई प्रिये। उसके बाद इस सांड़ में इतनी हिम्मत नहीं बची कि कोई दूसरा कांड कर सकूं। लोग तुम्हारे बारे में भी कहते हैं कि तुम कितनी निर्मोही हो, पति को खुला नहीं छोड़तीं, खूंटे से बांधे रखती हो। मुझे मालूम है तुम ऐसी नहीं हो, तुम्हारे प्यार का तरीका ही कुछ ऐसा है। तुम्हारी जिंदगी में ‘मैं ही मैं हूं’ दूसरा कोई नहीं ‘, और इसलिए तुम मुझे सेकंड के सौवें हिस्से के लिए भी अपने से अलग नहीं देख सकतीं। लेकिन दुनिया को ये कौन बताए? इसलिए इस दुनिया की खातिर ही सही, अपने मोहपाश के बंधन को थोड़ा ढीला करो, तुम मायके जाओ प्रिये।‘
हे! प्रातवन्दनीय कुल स्वामिनी भार्या – जब से शादी हुई है, प्रिय दस सालों में तुम एक बार भी एक दिन से ज्यादा मायके नहीं टिकीं । मुझे मालूम है तुम्हारे भाई-भाभी से तुम्हारी बिलकुल नहीं बनती है , लेकिन वे भी तो जब चाहें यहाँ डेरा डालने आ जाते हैं। तुम्हारे भतीजे जो तूफानी बबाल हैं , घर में आते ही बवंडर मचा देते हैं। बदले में तुम भी अब हमारे चक्रवाती भूकम्पों के साथ उनके घर में डेरा जमाकर उन्हें बता सकते हो की कि बवंडर मचाने में हमारे बच्चे भी कम नहीं हैं। इस प्रतिशोध की ज्वाला को ठंडा करो प्रिय, ‘तुम मायके जाओ।‘
हे जगत जननी पुरंधी प्रियतमा – तुम क्या समझती हो, तुम्हारे मायके जाने से मुझे खुशी मिलेगी? मैं कितना मिस करूंगा तुम्हे ही नहीं तुम्हारी सारी सहेलियों को, जिनके साथ तुम कितनी ही किट्टी पार्टी ,गपशप पार्टियों में उलझी रहती हो। बैठक में तुम सबके चुगली पुराण के अखंड पठन से माहौल गुंजायमान रहता है, बच्चों की चिल्लपों से घर ,घर जैसा लगता है। सभी को मिस करूंगा, लेकिन तुम्हारी खुशी में मेरी खुशी निहित है प्रिय। ‘बस तुम मायके जाओ।‘
हे! ग्रह मंत्रालय की कुर्सी पर आसज्जित सहधर्मचारिणी – तुम हर बार मेरे प्रार्थना पत्र को हंस कर टाल देती हो ,और कचरे में डाल देती हो। इस बार कुछ ले देकर भी मेरा प्रार्थना पत्र स्वीकार करो प्रिये। देखो, कितने दिनों से तुम डायमंड की अंगूठी की मांग कर रही थीं, मन मेरा भी है तुम्हे देने का । इस बार में इंक्रीमेंट का इंतजार कर रहा हूँ। बॉस खडूस जो पांच साल से लटका रहा था, इस बार उसकी सेक्रेटरी के साथ चक्कर का एक छोटा सा क्लिप बनाया है प्रिये। उसे दिखा दिया है, थोड़ी सी आशा जागी है कि शायद इंक्रीमेंट मिल जाए। तुम्हें डायमंड रिंग बनवा दूंगा प्रिये। ‘बस तुम मायके जाओ ‘।
हे कांता,उढा- दिनभर झाड़ू-पोछा करते-करते मैं इन चीजों का अभ्यस्त हो गया हूं प्रिये। कामवाली बाई को वैसे भी तुमने चौथी बार भगाया है। हर बार किस्मत में हमें ये कामचोर और पति-बिगाडू बाई ही मिलती है। यूं तो बाई सेलेक्शन में मेरा इंटरफेरेंस नहीं होता है , लेकिन में तुम्हारा दर्द समझता हूं प्रिये । तुम्हें हर बाई में सौतन के लक्षण पता नहीं कहां से मिल जाते हैं। मैं स्त्री के मन का भाव समझता हूं प्रिये। तुम चिंता नहीं करो, कोई भी बाई इस घर में फटकेगी नहीं। सारा काम मैं खुद ही करूंगा, ‘बस तुम मायके चली जाओ प्रिय।‘
हे! वाशिता विलासिनिं -तुम्हारे मोबाइल में मैंने सीसीटीवी ऐप डाल ही दिया है। रात-दिन वैसे भी तुमने मेरी हरकतों को सर्विलांस पर डाल रखा है। कोशिश तो तुमने ऑफिस में भी पर्सनल सीसीटीवी लगाने की की थी, लेकिन बॉस ने तुम्हें वहां के यूजर आईडी पासवर्ड नहीं दिए। लेकिन मुझे पता है बॉस ने क्यूँ नहीं दिए ,बॉस की खुद की हरकतों से उनकी श्रीमती जी वाकिफ थी । बॉस की हरकत पकड़ में आई तो बॉस को सेक्रेटरी बदलनी पड़ी साथ ही सीसीटीवी पासवर्ड भी। लेकिन इससे पहले कि भाभी को ये पता लगे कि खराब सीसीटीवी नहीं पासवर्ड बदला है, मैंने बॉस की हरकत पकड़ ली है। प्रिय, ये सब मैं तुम्हारी खातिर कर रहा हूं। बस ‘बस तुम मायके चली जाओ प्रिय।‘
हे! योशना सहचरी -मेरे दोस्त फोन पर मुझे चिढ़ाते हैं, बीबी के चले जाने की खुशी में अपने घर पार्टी पर बुलाते हैं। वे मुझ पर हंसते हैं। मैं तानों से तंग आ चुका हूं। उनके पत्नी -विहीन घर में जश्न में शामिल होते-होते मुझे भी कुछ मुंगेरी लाल के से हसीन सपने आने लगे हैं ! में भी दोस्तों को सरप्राइज देना चाहता हूं। में भी इस घर को कुछ दिनों के लिए पत्नी-विहीन कर के जश्न मनाना चाहता हूं। मुझे ये मौका दोगी न प्रिय? ‘बस तुम मायके चली जाओ प्रिय।‘
हे !दयिता,त्रिनिता -आज एक बात का और खुलासा करता हु, मैंने मेरे दोस्त के बताये नुस्खे के आधार पर कई बार तुम से लड़ाई की , खासकर गर्मियों की छुट्टियां शुरू होते ही, लेकिन तुम ने चाहे मेरे से बात नहीं की हो ,खाना नहीं खाया हो, मुझे और घरवालों को कोसा हो लेकिन कभी रूठ कर मायके जाने की बात नहीं की. मेरे हर मंसूबे पर पानी फेर देने वाली हे हठधर्मिणी प्राण प्रिये कभी तो रहम करो-‘तुम मायके तो जाओ !’
हे! शरीक ए हयात प्रिये , इस महंगाई के जमाने में घर चलाना कितना मुश्किल हो रहा है। गर्मी की छुट्टियों में बिजली का बिल सुरसा की तरह मुंह फाड़ रहा है। नल में पानी नहीं आ रहा है ,और टैंकर वाला उलटे-सीधे रकम वसूल रहा है। ऐसे में घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है। तुम मायके जाओगी तो दो महीने के लिए तो कम से कम खर्चे की रेल पटरी पर आ जाएगी। तुम मायके तो जाओ प्रिये !’
हे !अहलिया जीवन संगिनी -तुम्हें मालूम है, मैं कभी कोई रोक-टोक नहीं करता। तुम जहां जाती हो, जो करती हो, सबमें मेरी रजामंदी है। तुम्हारे मायके के गुणगान सुनकर मुझे भी लगता है कि तुम साल में जितनी बार चाहो उतनी बार मायके जाकर अपने आपको रिफिल करो। एक नई ऊर्जा के साथ, कुछ नए जुमले, ताने, व्यंग्य बाणों को भाभी से सीख कर आओ। पुराने व्यंग्य बाणों का मेरी मोटी खाल पर कुछ असर ही नहीं हो रहा है। मैं अभी पूरी तरह सुधरा नहीं हूं, जैसा कि तुम अपनी सहेलियों से हर बार शिकायत करती हो।प्रिये तुम्हारी भावी ने देखो दो साल में ही तुम्हारे भाई को बदल के रख दिया. में भी बदलना चाहता हु,तुम्हारे मुताबिक़ इस दुनिया का अनूठा पति ,दुसरे ग्रह से टपका हुआ एलिएन ! ताकि तुम भी अपनी सहेलियों से कह सको “अब ये पहले जैसे नहीं रहे “ बदल गए हैं. बस नए पैंतरे और तरीके सीखने की जरूरत है . तुम मायके तो जाओ प्रिये !’