किराए के लिए उन्हें फोन करता हूँ तो पता लगता है, वो बहुत दुखी हो गए हैं, उनकी सात पुश्तों में भी कभी किसी ने ऐसे टटभुजिये मकान में शरण नहीं ली , मकान उनकी नजर में पनौती है ,कह रहे थे इस माकन में घुसते ही उनकी बेटी बीमार हो गयी ,डेड लाख रु लग गए है । कभी नल टूट जाता है, कभी किबाड़, मॉड्यूलर किचन के दराज ढीले हो गए, फ्रिज की लाइट चली गयी , टंकी लीक कर रही है। एक बार अपना टेलेंट दिखाते हुए पड़ोसी से झगड़ा कर लिया, आपस में रिपोर्ट लिखवा दी, पीड़ित पार्टी के रूप में मेरा नाम लिखवा दिया, बड़ी मुश्किल से थाने में मामले को सुलझाया।
सच पूछें तो आज के जमाने में सबसे कठिन काम है मकान मालिक बनना। शादी में 36 गुण नहीं मिलें तो चल जाए, पर मकान मालिक और किरायेदार में हमेशा 36 का आंकड़ा रहता है। कहते हैं ना कि आपके किए का फल इसी जन्म में मिलता है। इसी कारण से “क्योंकि सास भी कभी बहू थी” की तर्ज पर जो मकान मालिक है, वो कभी किरायेदार भी रहे होंगे। जिस प्रकार से आपने किरायेदार रहते अपने मकान मालिक की नाक में दम कर दिया था, उसी का बदला भगवान आपको इसी जन्म में मकान मालिक बनवाकर लेता है।
पता नहीं कब हमारे भाग्य में शुक्र ग्रह अतिक्रमण करके मेष राशि की कुंडली में बैठा कि हमें एक भी एक विला बनाने का शौक चढ़ा। शौक को चढाने में कुछ मेरे यार भी थे जो “चढ़ जा बेटा सूली पे तेरा भला करेंगे राम “ की तर्ज पर अपना पूरा योगदान दे रहे थे. अगर आपको किसी को बर्बाद करके अपनी जल कूकडे वाली जलन मिटानी है तो उसे या तो राजनीती में आने की सलाह दे दो या,माकन किराये पर देने की ! मकान मालिक की पदवी पाने की खुजली ऐसी थी कि आनन-फानन में मकान बनाने का ठेका हमने अपने ही एक परिचित को दे डाला। हमने भी रिश्तेदारी की मर्यादाओं को निभाते हुए उनके रहमो करम पर पूरा निर्माण छोड़ दिया ,कोई लिखा पढी नहीं,कोई टर्म्स एंड कंडीसन नहीं,बाजार की निर्माण दर भी मालूम नहीं की | उन्होंने भी इस रिश्तेदारी की आड़ का भरपूर लाभ उठाया। मेरे मकान बनाने के एवज में उन्होंने अपने 5 साल की रोटी पानी का जुगाड़ कर लिया। इधर हमारा मकान अभी नींव के ऊपर थोड़ा सा दिखने लगा, तब तक उनका खुद का मकान बनकर नांगल के के लिए तैयार हो गया। हमें तो पता तब चला जब उनके मकान के उनांगल का निमंत्रण मिला।
हम उनसे विनती करते रहे कि भाई, छत हमारे मकान में भी डलवा दो, लेकिन वो अपनी व्यस्तता की दुहाई देते रहे और जब पानी सर से ऊपर गुजर गया एक दिन ताव में आकर एक दिन हमारे ऊपर पिल पड़े -उन्होंने हमारे रिश्तों के धर्म को न निभाने और उन्हें उनकी निजी व्यस्तता में खलल डालने के दंडस्वरूप मकान निर्माण को बीच मझधार में छोड़कर अंतर्ध्यान हो गए। हारकर हमने कोई दूसरा ठेकेदार का जुगाड़ करके जैसे-तैसे मकान को पूरा किया। मकान रंग-रोगन करवाकर जल्दी से थोड़ा सा पूजा-पाठ करवाया। हमें जल्दी थी मकान मालिक का तमगा लगवाने की।
बस फिर क्या था, हमने जितने भी हमारे घोड़े थे, वो किरायेदारों को पकड़ने के लिए दौड़ा दिए । सच में ऐसा लग रहा था जैसे बेटी वाला अपनी बेटी के रिश्ते के लिए लड़की दिखा रहा हो। जब भी कोई किरायेदार मकान देखने आता, उससे पहले मकान का झाड़ू-पोंछा करवाते, वॉशरूम की सफाई करवाते, नल-बिजली ठीक करवाते कि कहीं कोई कमी न दिख जाए और किरायेदार मकान रिजेक्ट कर दे।
खैर, जैसे-तैसे एक परिवार को मकान पसंद आ भी गया, हमारी बांछें शरीर में जहां भी थीं, सब एकदम खिल गईं। हम इससे पहले भी कईयों को मकान दिखा चुके थे ,जो भी एटीट्यूड एक मकान मालिक दिखाता है, सब दिखाने की कोशिश की, लेकिन सब ठुस्स साबित हुआ। एडवांस की डिमांड, 1 महीने की सिक्योरिटी मांगने की राशि,ये सब हमारे मुँगेरिलाल के हसीन सपने हो गए। धीरे-धीरे हम अपने मकान मालिक के चोगे को उतारकर लगभग भिक्षुक की भांति आ गए थे । लगभग गिड़गिड़ाते हुए इस अंतिम परिवार से बोले कि आप मना नहीं करना, मेरा मकान पिछले 4 महीने से रिजेक्शन पर रिजेक्शन झेलकर जलील हो चुका है, लगता है कहीं डिप्रेशन में खुदकुशी न कर ले। कृपा करके इसके अंदर अपने चरण रखकर इसे पवित्र कर दें। उन्होंने भी हमारी दशा पर तरस खाकर, किराए की रकम को आधी करके, कुछ शर्तें रख दीं। एसी फिट करवाना, एक फ्रिज रखवाना, खिड़कियों पर पर्दे लगवाना, बेड लगवाना आदि !
हमने उनसे किराया एडवांस देने की बात की, उस पर उन्होंने आँखें तरेर दीं, “क्या जी, आप मकान मालिक हैं, ये सुविधाएं तो आपको देनी होंगी, तभी हम अंदर प्रवेश करेंगे।” हमने वैसा ही किया, सारी सुविधाओं से सुसज्जित करके उनका इंतजार करते रहे। 10 दिन बीत गए, एक दिन उन्होंने फोन उठाकर कहा कि उन्होंने ऑफिस के पास ही एक दूसरा मकान ले लिया है। हमारी तलाश फिर से शुरू हो गई। इस बार एक दूसरी फैमिली आई है, मेरे आंचलिक क्षेत्र से ही है , मेरे गांव के पास पड़ोसी तो जानकारी निकल आई। उन्होंने जानकारी की एवज में अपनी शर्तों पर मकान लेना स्वीकार किया है।
हम निश्चित हो गए, चलो जान-पहचान के हैं, थोड़ा मकान का ख्याल रखेंगे। किराए के लिए उन्हें फोन करता हूँ तो पता लगता है, वो बहुत दुखी हो गए हैं, उनकी सात पुश्तों में भी कभी किसी ने ऐसे टटभुजिये मकान में शरण नहीं ली , मकान उनकी नजर में पनौती है ,कह रहे थे इस माकन में घुसते ही उनकी बेटी बीमार हो गयी ,डेड लाख रु लग गए है । कभी नल टूट जाता है, कभी किबाड़, मॉड्यूलर किचन के दराज ढीले हो गए, फ्रिज की लाइट चली गयी , टंकी लीक कर रही है। एक बार अपना टेलेंट दिखाते हुए पड़ोसी से झगड़ा कर लिया, आपस में रिपोर्ट लिखवा दी, पीड़ित पार्टी के रूप में मेरा नाम लिखवा दिया, बड़ी मुश्किल से थाने में मामले को सुलझाया। वैसे हम मकान देखने जाते ही नहीं, क्यों की हमे दुर्दशा देखी नहीं जाती, खून के आंसू रोते रहेंगे तो कही हमें एनीमिया का शिकार होना पड़े. हमारे जान पहचान के हैं न उनके संस्कार भी वही है जो हमारे है, जैसे बेटी के घर का खाना तो दूर पानी भी पीना मंजूर नहीं, इस कारन वो हमें कभी पानी नाश्ते की पूछने की जरूरत नहीं समझते, क्यों की मकान तो हमने उनको कन्यादान स्वरुप भेंट कर ही दीया है,अब हम कौन होते है बीच में बोलने वाले. वो जैसे माकन को रखेंगे वैसे ही रखेंगे ! एक बात हम आपको बता दें,ये मकान मालिक और किराये दार की पदवी है न स्थायी नहीं होती ,जैसे ही आप मकान किराए पर देते हैं , पदवी की अदला बदली हो जाती है. एक बार गलती से मकान मे घुस गए ते, और वो खुद काम पर गए थे,पीछे से उनकी गृह स्वामिनी और बच्चे थे, उनके कुछ रिश्तेसार भी आए हुए थे पूरे मकान को धर्मशाला का सुन्दर रूप दिया हुआ था , एक्स्ट्रा पलंग लगा रखे थे ,जिनके लोहे के पायों को घसीट घसीट कर फर्श पर चित्रकारी कर दी गगयी थी . उनके बचों ने ड्राइंग क्लास का पूरा होम वर्क दीवारों पर उकेर रखा था . वाशरूम को एडवेंचर पार्क बना दिया अथा , मेरा मतलव चिकना और फिसलन भरा बना कर.
एक बार जब उनका किराये के दिव्यदर्शन हमरे बैंक अकाउंट में पूरे महीने नहीं हुए तो हम गुमशुदगी की तहकीकात के एवज में माकन पर गए, तो देखा एक दूसरी फॅमिली पूरे मकान में जमी हुई थी, पता लगा की खुद का परिवार गाव में एक महीने के लिए कोई पारिवारिक शादी फंक्शन में गया हुआ है,और खुद माकन मालिक की पदवी धारण ककर के किसी और को माकन किराये पर उठा दिया था.
बस फिर तो हम पूरी तरह घिघिया गए, भगवान् से प्रार्थना करने लगे की भगवान् फिर कभी हमें माकन मालिक नहीं बनाए , बस किसी तरह इस संकट से हमें उबार दो ! हमने मकान मालिक नहीं मेरा मतलव किरायेदार से हमें इस बंधन से मुक्त करने की गुहार लगाई. उन्होंने अग्रीमेंट का हवाला देते हुए हमें हड़का दिया, “अभी एक महिना बाकी है अग्रीमेंट को पूरा होने में उस से पहले मकान खाली नहीं करवा सकते आप ,नहीं तो कोर्ट में जायेंगे !”
10 महीने हो गए हैं, एग्रीमेंट को पूरा होने में एक महीना और बाकी है, थोड़ी सी धक् धक् हो रही है कि कहीं मकान पर कब्जा न कर लें, गुंडे बुलाकर मुझे धमकी न दे दें। मकान की हालत देखी नहीं जाती, बिलकुल ऐसे ही जैसे बेटी ससुराल में विदा कर दी हो, मकान भी पराए घर का धन हो गया है । बस उसकी सूरत-ए-हाल देखकर रोने के सिवा कोई और काम नहीं है।