आज की मेरी कविता लाठी को समर्पित. जी हा लाठी, हमारे देश के पुरातन काल का सबसे ज्यादा प्रचलित हथियार है जो बहुद्देशीय है और हमारी संस्कृति का एक अभिन्न अंग है. आइये जानिये कैसे लाठी का एक महत्वपूर्ण योगदान हमारी दीनिक जीवन चर्या में है इस कविता के माध्यम से
“लाठी”
लाठी हथियन देखकर,खड़े रहैं सब दूर,
पास न कोई आत है,कैसा भी हो क्रूर,
कैसा भी हो क्रूर,देख दुष्मन डर जावै,
ठग्ग लुटेरे चोर,आदि नहिं नियरे आवै,
कुत्ता बन्दर पशू,आदि सब भागे जावै,
खेल कूद व्यायाम,सभी लाठी संग लावै,
अंतिम राह दिखाय, मुर्दयन की बन काठी,
“प्रेमी”अंधे चलै,साथ तेरे ही लाठी।
रचियता- महादेव प्रेमी
दोस्तों आपको हमारी कविताएं कैसी लग रही है , कृपया नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में अपने विचारों से अवगत काराए. और हा अगर आप रूचि रखते है पहेलिय पढने में या पहेलिय बुझाने में तो मेरे द्वारा संकलित पहलेइयो का एक अपार भण्डार” बुझोबल” जरूर पढ़े. आज ही अपनी कॉपी ऑनलाइन आर्डर करके मंगवा सकते है ‘
आप नीचे दिए गए लिंक को खोले और किताब की पूरी जानकारी प्राप्त करे