यह कविता जिसका शीर्षक है” काम क्रोध मद लोभ ” आज के मनुष्य की इन चार विनाशकारी प्रब्रतियो में लिप्त होने की व्यथा व्यक्त करती है ” कैसे मानुष इन दुर्व्रतियो में अध्हें होकर अपना समूल नष्ट करने पर तुला हुआ है
“काम क्रोध मद लोभ”
8चरन,
काम क्रोध मद लोभ सब,देते कष्ट अपार,
फिर भी इस में ही फंसा,ये सारा संसार,
फंसा हुआ संसार ,जगत की मोह माया में ,
काम क्रोध मद लोभ,रहे जाकी छाया में ,
जानत हैं सव लोग,क्रोध मद लोभ न कीजे,
,लालच विन गम गाय, काम धीरज से लीजे,
“प्रेमी”दुनियां देख, कर मन में आता क्षोभ,
,यह जगत दु:ख का कारण,काम क्रोध अर लोभ ।
रचियता-महादेव प्रेमी
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