आज की मेरी कविता “ज्यो जल ” धन के सही उपयोग के बारे में बताती है.
” ज्यों जल”(कुण्डली 6चरन।)
ज्यों जल बाढ़े नाव में,घर में वाढे दाम ,
भर भर अंजलि निकालिये,यह सज्जन को काम,
यह सज्जन को काम,नाव जल कम नहिं होगा,
पैसा भी उस भांति,नित्य घर में बाढेगा,
,
“प्रेमी”कल युग माहि,बात मन राखो हर पल,
दोऊ हाथ उलीच,नाव में वाढे ज्यों जल
कविता का भावार्थ
नाव में बढ़ा जल और घर में बढे धन दौलत की एक ही दशा होती है. जैसे नाव में बढ़ा जल अगर अंजलि भर भर बहार को निकला नहीं गया तो वह नाव को डूबा देगा उसी प्रकार घर में बढे धन को अगर सदुपयोग नहीं किया तो बह विनाश की और ले जाता है ||
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