“जग में भारी ” आज के युग में मोबाइल की महत्ता को दर्शाती कविता है. कैसे मोबाइल आज एक आवश्यक निजी साथी बन गया है. कविता कुंदिली विधा में रची गयी है जिसके ८ चरण है
“जग में भारी” (कुण्डली 8चरण)
जग में भारी हो रहा,मोबाइल का भूत,
झगड़ा दंगे हो ज़हां,पक्का लेय सबूत,
पक्का लेय सवूत,और बचना मुश्किल है,
सव तरियां से आज,कि मोबाइल मुमकिन है,
लेन देन अरु खोज,खवर जितनी होती हैं,
देश विदेशी वात,भि अब इस से होती हैं,
“प्रेमी”जग की योज,नाएं जितनी भी सारी,
मोबाइल का काम, हो रहा जग में भारी।
रचियता -महादेव” प्रेमी “
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