अवैध प्रसव
डॉ. श्रीगोपाल काबरा
हमारे चिकित्सालय के नए अधीक्षक, नौसैना में सर्जन कोमोडर के पद से रिटायर हुए थे। अस्पताल में हाल ही में एक महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया जिसके लिए किसी ने ‘शिकायत’ की कि वह महिला अविवाहित है और सन्तान ‘अवैध’ है। “क्या किया जाए ?” यही चर्चा का विषय था, जब उन्होंने अपना अनुभव हमें बताया।
सर्जन कोमोडोर तब एक सैनिक अस्पताल के कमाण्डिंग ऑफ़िसर थे। अस्पताल के सर्वेसर्वा। सभी चिकित्सक और चिकित्साकर्मी उनके अधीनस्थ कार्यरत थे। निर्णय लेने का पूरा उत्तरदायित्व, अधिकार और स्वतन्त्रता उन्हें थी। अस्पताल वैसे तो केवल सुरक्षाकर्मियों के लिए ही था लेकिन इसके इतर भी उचित परिस्थिति में निर्णय का अधिकार, बतौर कमाण्डिंग आफ़िसर, उनको था। उनके एक नौसैनिक ने अर्ज़ी लगाई; वह अपनी लड़की, जो गाँव से आई हुई थी, का प्रसव अस्पताल में करवाना चाहता था। नियमानुसार सैनिकों की विवाहित लड़कियाँ सैनिक अस्पताल में चिकित्सा के लिए अधिकृत नहीं थी। लेकिन छावनी में रहने वाला सैनिक अपनी बच्ची का प्रसव बाहर किसी अस्पताल में करवाए यह न वांछनीय था न व्यावहारिक, विशेषकर जब यह सुविधा बड़ी आसानी से दी जा सकती थी। उन्होंने सहज स्वीकृति दे दी।
दुविधा तब शुरू हुई जब किसी ने आकर उन्हें बताया कि वह लड़की अविवाहित है। सैनिक ने रिकार्ड में ग़लतबयानी की है। उन्होंने इसे महत्त्व नहीं दिया। कारण, मरीज़ के विवाहिता होने का कोई प्रमाण नहीं लिया जाता। जो रिकार्ड में सूचना दी गई उसे सच माना जाता है। फिर प्रसव हो चुका था, उसे अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई थी। हाँ अभी भी वह सैनिक के घर छावनी में ही थी। साथ ही एक अजीब पक्ष यह भी था कि अगर लड़की अविवाहित है तो वह वहाँ चिकित्सा सुविधा की अधिकारी है। किसी को क्या उज्ऱ हो सकता है। वह नौसैनिक का निजी मामला है। वे इसमें व्यर्थ ही क्यों दख़ल दें।
लेकिन दो दिन बाद जब कमाण्डर-इन-चीफ़ की पत्नी का फ़ोन आया तो केस ने जटिल रूप ले लिया। छावनी के सैनिकों की पत्नियों का एक वेलफ़ेयर एसोसिएशन था जिसकी प्रमुख वे थीं। महिला असोसिएशन के पदाधिकारियों की बैठक चल रही थी। अफ़सरों की पत्नियाँ पदाधिकारी थीं। कमाण्डर-इन-चीफ़ की पत्नी ने स्वयम् फ़ोन कर उन्हें आने कानिवेदनकिया। छावनी में उनका आग्रह कमाण्डर के हुक़्म के बराबर होता है। सर्जन कोमोडर तुरन्त गए। उनसे पूछा गया, क्या उन्हें मालुम है कि जिस लड़की का प्रसव हाल ही में उनकी स्वीकृति से सैनिक अस्पताल में हुआ, वह अविवाहित है? हाँ, उन्हें सूचना मिली थी। फिर उन्होंने कुछ किया क्यों नहीं?
क्या करते? क्या करते, माने? आपके एक सैनिक की लड़की के साथ ज़्यादती की गई, उसका बलात्कार हुआ और आपको मालुम होने पर भी आप कहते हैं, ‘क्या करते‘। ऐसे ही तो दुष्टों को बढ़ावा मिलता है। यह गम्भीर ऑंवलध है, और ऑंवलध करने वाला भी आपका ही सैनिक है।
बेचारे ग़रीब की लड़की। लेकिन हमने यह तय किया है कि ग़रीब को न्याय दिला कर ही रहेंगे। दूसरी महिलाएँ भी बढ़चढ़ कर बोल रही थीं। ‘हुक़्म’ दिया गया कि वे उस सैनिक के खिलाफ़ तुरन्त कार्यवाही करें और उस लड़की और उसके माँ-बाप को न्याय दिलाएँ।
उन पदाधिकारी महिलाओं में सर्जन कोमोडोर की पत्नी भी थीं। बताया, वे अन्य पदाधिकारी महिलाओं के साथ उस लड़की के घर गई थीं। जब वे पहुँची तो वह अपनी बच्ची को आँचल से ढँके स्तनपान करा रही थी, और कराती रही। उससे पूछा तो उसने कोई जवाब नहीं दिया। भईाीत आँखों से टुकुर-टुकुर देखती रही या आँखें नीचे किए बच्ची को आँचल में छिपाए रही।ढकती रही। कुछ बोली नहीं, किसी प्रश्न का जवाब नहीं दिया। लड़की की माँ ने भी कुछ नहीं कहा, अजीब हरकत करती रही, सबके पाँव छूकर माफ़ी माँगती रही। बाप से पूछा, ‘क्या उसे मालुम है यह किसने किया‘ तो उसने हामी भरी। उसने बताया कि तब वह सैनिक इनके क्वार्टर में साझे में रहता था। छावनी में क्वार्टरों की कमी होने से दो लोगों को साझे में अलॉट होते थे। वह सैनिक भी विवाहित था पर उसकी पत्नी पीहर गई हुई थी। लड़की गाँव से छुट्टियों में आई हुई थी। फिर गाँव चली गई। अर्से बाद गर्भ का मालुम हुआ।
“जब मालुम हुआ तब तुमने इसकी सफ़ाई क्यों नहीं करवाई? नाजायज़ गर्भ…….”
लड़की की माँ ने बच्ची को ले लिया। उनके पाँव में रख कहने लगी, “इसको माफ़ी दे दो, इसकी जान बख़्श दो, इसे मैं पाल लूँगी।”
“अरे! अरे! यह तुम क्या कर रही हो ? हम बच्ची को थोड़े ही कुछ कर रहे हैं। हम तो इसी के पालन पोषण –”
“आपकी बड़ी कृपा है। आपका ही अन्न खा रहे हैं। आपका ही आसरा है। आप हमें माफ़ी दे दो, हमें जाने दो।”
लड़की ने बच्ची को माँ की गोद से लिया और अन्दर चली गई। अन्दर से बच्ची के रोने की और सिसकियों की आवाज़ आ रही थी।
एक महिला, “अजीब हैं ए लोग। कुछ समझते ही नहीं।”
दूसरी महिला, सैनिक और उसकी पत्नी से, “उसी समय हमारे पास आ जाते। हम गिरवा देते। आज यह झंझट ही नहीं होता।”
“माफ़ करें मेमसाब, उस मासूम का क्या कसूर, हमसे यह पाप नहीं किया गया।”
“लेकिन भुगतेगी तो अब यह लड़की न। हम उसे न्याय दिलाएँगे। उस दुष्ट से पालन-पोषण के लिए मुआवज़ा दिलाएँगे।”
“मेमसाब, आप माई-बाप हैं, उसके पास कुछ नहीं है, हमसे भी ग़रीब हैं, उसके बूढ़े माँ-बाप भूखे मर जाएंगे।”
एक महिला ने लड़की की उम्र पूछी, उन्नीस वर्ष। एक महिला पदाधिकारी ने कहा, लगती नहीं, झूठ बोल रही है। 16-17 की है। बलात्कार का केस होना चाहिए।
एक महिला, “हम उसे सज़ा दिलवाएँगे, जेल भिजवाएँगे। उसे सज़ा तो मिलनी ही चाहिए।”
सैनिक की पत्नी, “आपके पाँव पड़ती हूँ मेमसाब, ऐसा कुछ न करें। उसके बच्चे भूखे मर जाएंगे। ग़रीब की हाय लगेगी।”
दूसरे दिन सर्जन कोमोडोर ने लड़की के बाप को बुलाया। उससे लिख कर शिकायत देने को कहा। उसने माफ़ी माँगते हुए कुछ भी लिख कर देने से या शिकायत करने से मना कर दिया। लड़की कुछ लिख कर देना तो दूर, कुछ बोलने या कहने को ही तैयार नहीं थी।
दूसरे सैनिक को बुलाया। गरदन झुकाए सावधान की मुद्रा में खड़ा रहा। ‘सर!’, ‘सर जी!’, ‘जी सर!’ के अलावा कुछ नहीं बोला। कोई अपवाद नहीं किया। सब क़बूल कर लिया, समर्पण कर दिया।
मैंने सर्जन कोमोडोर से पूछा, ‘‘आपने क्या कार्यवाही की?’’
“किस आधार पर कार्यवाही करता? उन महिलाओं के कहने से ज़बरदस्ती ………।”
मेरे साथ के एक डॉक्टर बीच में ही बोल पड़े, “इन पढ़ी-लिखी आधुनिक महिलाओं का भी अजीब पाखण्ड है। दोगली नैतिकता। इनकी ख़ुद की लड़कियों में विवाह के पहले यौन सम्बन्ध आम है; यौन स्वतन्त्रता का प्रतीक, व्यक्तिगत अधिकार, लिव इन रिलेशनशिप, एकल माँ। पर दूसरे के मामले में ऐसा बखेड़ा करेंगी, ऐसा तालिबानी रुख अपनाएँगी कि बेचारे फिर सामान्य जीवन जी ही न सकें। ख़ुद की बेटी हो तो कुन्ती, ग़रीब की बेटी हो तो कुलटा। क्या अनपढ़ ग़रीब को अपने हिसाब से जीने का अधिकार नहीं है? अवैध सम्बन्ध, अवैध गर्भ, अवैध सन्तान या नैतिकता? नाजायज़ क्या है वह या यह?”
सर्जन कोमोडोर, “आप ठीक कहते हैं। बड़ी मुश्किल में पड गए।”
“फिर क्या हुआ? क्या किया आपने?”
“मैने कुछ नहीं किया”, और हँसते हुए, “मैने कोई निर्णय नहीं लिया। आख़िर में हुआ यह कि वे सब अपने गाँव चले गए। बाद में मालुम हुआ कि बच्ची को उसकी मौसी ने गोद ले लिया, उनके कोई सन्तान नहीं थी। मौसी ने ही लड़की की शादी भी करवाई।”
डॉ. श्रीगोपाल काबरा
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