कहा जाता है समय और परिस्थिति सदैव पक्ष में हो ज़रूरी नहीं!हमारा नज़रिया जैसा होता है व्यवहार भी उसी तरह का होने लगता है | अंततः ये हमारे द्वारा किये जाने वाले सृजन को प्रभावित कर ही लेता है | लेखक ले कर आये है परिस्थितियों के अपने नजरिये को कविता के माध्यम से
‘ परिस्तिथी ‘
हंसते हुए चेहरे का मतलव,
ये नहीं कि,
उनकी जिन्दगी में,
दुखों की धूप नहीं हो,
और दुखों को सहने की शक्ती भी न हो,
इनमें समयानुसार,
धैर्य पराकृम और साहस की,
प्रबलता है,
इसीलिये हर परिस्तिथी में,
अपने आप को सम्हालने,
की क्षमता है।