SMS मेडिकल कॉलेज के प्रथम वर्ष की स्मृतियाँ ,हम ग्रामीण परिवेश से आए हिंदी भाषियों के लिए कुछ ज्यादा खट्टे-मीठे अनुभव लिए होती हैं। एक ऐसे एनाटमी के पूजनीय सर, जिनका नाम मैं निजता के हनन के कारण उल्लेख तो नहीं करूंगा, लेकिन उनका खौफ और आतंक जिस प्रकार से हम हिंदी भाषियों के मन में था, वो देखने लायक था। और ये बात बहुत कुछ रैगिंग पीरियड में हमारे सीनियर, जो हम हिंदी भाषियों के लिए एक प्रकार से क्रूसेडर थे, उन्होंने उनके हाव-भाव, भंगिमाएं, उनकी पसंद और नापसंद की सारी लिस्ट हमें बता कर हमे उनसे सतर्क रहने की सलाह दे दी थी ।सबसे पहले हमें उनका हुलिया बताया गया, ताकि हम एनाटमी के सभी लेक्चरर में उन्हें ढूंढ सकें। रैगिंग पीरियड के दौरान वैसे भी नजरें बहुत कुछ शर्ट के तीसरे बटन पर फिक्स हो गई थीं तो कभी-कभार नज़र उठा के एनाटमी पढ़ाने वाले टीचर की शक्ल देखकर सीनियर द्वारा बताए गए लक्षणों से मेल कर लेते थे। इसी बीच में रोज मेडिकल कॉलेज में एक मारुति गाड़ी ठीक कॉलेज के शुरू होने के समय ठहरती थी, उसमें से एक सूट-बूट में टाई लगाए हुए एक बहुत ही स्मार्ट रूप के धनी व्यक्ति उतरते, गाड़ी पार्क में लगाते और कॉलेज में घुस जाते। हमने शुरू-शुरू में सीनियर को बताए लक्षणों से मिलान करते हुए घोषित कर दिया की ये ही है वो एनाटोमी के सबसे खौफनाक लेक्चरर , हम उन्हें रोज जैसे ही वो गाड़ी से उतरते उन्हें नमस्कार करते, आदाब करते। ऐसा सिलसिला 10 दिन तक चलता रहा। लेकिन एक बात का मलाल था की हमारे द्वारा चिन्हित ये श्रीमान कभी हमारी क्लास में लेक्चर लेने नहीं आये. खैर ११ वे दिन वो वैसे ही सूट-बूट टाई धारण कर आये,गाड़ी से उतरे हमने उन्हें नमस्कार, अभिवादन किया और हम रोज की तरह आज भी बेसब्री से इन सर का एल टी में एक लेक्चर देने की प्रतीक्षा में खड़े रहे ,हम जैसे ही एलटी की तरफ बढ़े तो देखा कि वो एलटी के बाहर वो ही व्यक्ति लेकिन उनका सूट बूट टाई नदारद और अपना भेष बदले हुए एक पुरानी सी ड्रेस, मैली कुचैली सी पहने झाड़ू लगा रहे थे। देखकर हम चौंके। ये कतई सपने में भी हमारी छोटी बुद्धि से गुमान नहीं हो सका कि ऐसे महान व्यक्तित्व जिनके बारे में सीनियर बखान करते नहीं थकते वो ऐसा कृत्य करेंगे । सीनियर को हमने अपने भ्रम की व्यथा सुनाई, सीनियर जोर जोर से हंसने लगे, बोला अरे वो तो स्वीपर है कॉलेज का।ओह! लानत हो हमारी इस बुद्धी को एक लेक्चर और स्वीपर में फर्क नहीं कर सकी खैर हम जैसे तैसे वापस अपने आपको संभाले एलटी में घुसे, और वैसे ही एक कर्कश सी आवाज़ पूरी लेक्चर हॉल में गूँज गयी “आप में से ग्रे’ज़ एनाटमी किस किस के पास है?” हमारे बैच के अग्रिम पंक्ति में बैठी कुछ लड़कियों ने गर्व से अपना हाथ लम्बा करते हुए लगभग एलटी की छत से लगाते हुए बताया कि हमारे पास है। हम समझ गए, जैसा सीनियर ने बताया, जो एलटी की पहली क्लास में ही ग्रे’ज़ के ज्ञान के बारे में बात करे समझ लेना वो हमारे द्वारा वर्णित सर से आपका सामना हुआ है। हम हिंदी भाषी एल टी में पीछे की पंक्तियों को घेरे के बैठे थे, चौरसिया हम हिंदी भाषियों के लिए एक तरह से जीवन रक्षक, महा मृत्युंजय जाप का महाकाव्य थी जो इस एनाटमी के भवसागर को पार लगा सकती थी, उसे जल्दी से बंद कर के अपने बैग में छुपा लिया, कहीं सर की निगाह ना पड़ जाए। उसके बाद कौन कौन हिंदी मीडियम से है पूछा गया, सारे हिंदी मीडियम भाषी जो पीछे की बेंचों पर रिजर्व बैठे हुए थे सब एक साथ उठ खड़े हुए, पता नहीं क्यों ऐसा नहीं था की वहां हिंदी भाषियों के लिए पीछे की सीट रिजर्व की हुई थी लेकिन एक अघोषित समझौते के तहत ये सब पीछे ही बैठते थे। उस दिन हमने लाइब्रेरी में जाकर इस ग्रे’ज़ के दर्शन किए, मन तो किया इस पर कुछ चंदन कालाय वस्त्र चढ़ाकर इसकी पूजा भी कर ले शायद इस महाकाव्य का कुछ ज्ञान स्वतः ही हमारे मस्तिष्क में स्थानांतरित हो जाए और हम इन सर की कुपित दृष्टि के कोप भाजन से बच जाएं। खैर, सर का हिंदी भाषियों को जमकर अंग्रेजी भाषा के नए-नए शब्दों से कोसने का क्रम अनवरत चलता रहा। जैसे आजकल राजनीतिक के महान कामदेव शशि थरूर जी की अनूठी एलोक्वेंट इंग्लिश भाषा की चर्चा देश भर में होती है, उसी प्रकार इन सर के शब्द और फिर उसके प्रयायवाची शब्दों की झड़ी क्लास की अग्रिम पंक्ति को मंत्रमुग्ध कर देती। सर जब बोलते थे तो अंग्रेजी के सागर में इस प्रकार से गोता लगाते उनकी आँखें आधी खुली आधी बंद,और एक तम्नामयता और मंत्रमुग्ध भाव से उनके मुखारविंद से अंग्रेजी भाषा के शब्द निकलते जैसे की कोई महान शिव भक्त अपनी ध्यान की चरम मुद्रा में पहुँच कर सीधे भगवान् शिव से संवाद कर रहा हो,क्लास में एनाटमी का लेक्चर कम और इंग्लिश, लिटरेचर, शेक्सपीयर की कविताएँ, ड्रामा, शब्दों अक्षरों के अनसुलझे रहस्यों की गुत्थियाँ सुलझाने का मंच बन जाता। इसी बीच में हम पीएमटी के तलछट, ढोल गंवार आदि शब्दों के अंग्रेजी रूपांतरण शब्दों से नवाजे जाते रहे, जिन शब्दों का मतलब हमें कतई नहीं पता लेकिन जिस प्रकार से आगे बैठे हुए अंग्रेजी शेक्सपीयर की जनरेशन खी-खी करके हँसा करती थी उस से साफ जाहिर हो जाता था कि चर्चा हमारे विषयों में ही हो रही है। खैर, हम पूरे मनोयोग से अपने आपको एनाटमी के गूढ़ रहस्यों को चौरसिया रानी की मदद से ही सुलझाते में व्यस्त रहे और इसी के बलबूते हर सप्ताह लगने वाले वीकली टेस्ट, वाइवा, सेमेस्टर आदि में ढक्कन लगने से बचे रहे। “ढक्कन लगने” का अर्थ नॉन-मेडिकल वाले शायद नहीं समझेंगे; किसी भी टेस्ट में फेल हो जाने को इस वाक्यांश से नवाजा जाता था।
एक बार हम सभी एनाटमी हॉल में बैठे थे, हम अपनी आदत और कुछ हिंदी भाषी होने की नियति के साथ पीछे की कुर्सियों पर धंसे हुए थे, नजरें नीची की हुई थी क्योंकि हमारे इस सत्र के बारे में सीनियर ने हमें पहले ही आगाह कर दिया था इसमें सर के द्वारा सेमेस्टर की कॉपियों का मूल्यांकन करने के बाद उन्हें सार्वजनिक रूप से घोषणा करने का कार्य होना है और इसका विशेष उद्देश्य हिंदी भाषियों छात्रों को इस के द्वारा अच्छी तरहा सार्वजनिक रूप से जलील करते हुए ये कहा जाता था कि तुम्हारे लिए ये कॉलेज बना ही नहीं है, तुम टाट पोल में पढ़ने वाले जाकर अपनी गाय भैंसे चराओ यहाँ क्या कर रहे हो। मैं निश्चिंत था क्योंकि मेरा नंबर ‘म’ के कारण काफी पीछे बुलने वाला था उस से पहले और मेरे हिंदीभाषियों के जलीलपन को झेलते झेलते शायद मेरे आने तक मुझे पीड़ा कम हो, लेकिन सर ने छूटते ही नाम बोला “मुकेश गर्ग”, सारी क्लास चौंक गई। नाम के साथ ही मेरी आंसर कॉपी भी हवा में लहराई जा रही थी, मुझे लगा शायद आज सर को मेरे आंसर बुक में चौरसिया की तगड़ी बू आ गई है और इसलिए आज मुझे ही सबसे पहले इस कुकृत्य के दंडस्वरूप खड़ा किया जा रहा होगा। सर ने मुझे पास में बुलाया, मेरी पीठ थपथपाई, बोल तो इंग्लिश में ही रहे थे जो कुछ पल्ले पड़ा वो ये कि शायद सर के मूल्यांकन में 30 में से 30 नंबर आए थे और सर ने बड़ा सा गोला बनाकर उस आंसर शीट को पूरी क्लास में घुमाया, लेकिन इस के साथ ही एक सवाल सर ने दाग ही दिया, “ग्रे’ज़ एनाटमी पढ़ते हो ना?” मैंने कहा “जी सर लाइब्रेरी में जाकर पढ़ता हूँ।” सर बड़े खुश हुए, मैं भी सर का भरोसा नहीं तोड़ना चाहता इस लिए झूठ बोलना पड़ा कि “आपने 30 में से 30 नंबर दिए हैं, वो कम से कम चौरसिया के पाठकों तो आप दे नहीं सकते।” सर ने वापस सभी क्लास को ग्रे’स एनाटॉमी के लाभों पर एक लंबा व्याख्यान जोड़ दिया। “देखा, ये क्या चौरसिया-चौरसिया। मुकेश से कुछ सीखो, लाइब्रेरी में ही सही, ग्रे’स पढ़ा करो।” उसके बाद सर का मैं परम शिष्य बन गया। सर की हाई-फाई इंग्लिश टॉक में बस ‘यस, नो सर’ करते हुए जैसे-तैसे अपने आप को सर से बचाता फिरता रहा।एक अपराधबोध सा मन में था की क्या होगा अगर एक दिन सर को पता लगेगा की जिस स्टूडेंट को ये ग्रे एनाटोमी का फोल्लोवेर समझ रहे थे वो भी चोरासिया का भक्त निकलेगा | एक बार लाइब्रेरी में बैठा, चौरसिया महाकाव्य के ही पन्ने पलट रहा था, ग्रेज एनाटॉमी बगल में उपेक्षित सी पड़ी थी । तभी ये सर आ गए, मुझे चौरसिया पढ़ते देख कर वो एकदम चौंक गए। पता नहीं क्यों, उस दिन शायद उन्हें पछतावा हो रहा था कि क्यों नहीं वो जान पाए , क्यों उनके साथ धोखाधड़ी हुई। ये भी धोखेबाज़ निकला। मेरे मूल्यांकन में ऐसी क्या गलती हो गई कि मैं जबरदस्ती इस चौरसिया के कुकरमुत्ते को 30 में से 30 दे बैठा। मैं भी अशहाय सा निराश सा कभी चौरसिया को खोलता कभी बंद करता, सर का वहाँ से चले जाने का इंतजार करता रहा।