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गणेश वंदना-छंद रचना-डॉ मुकेश असीमित

Ganesh-vandna

गणेश वंदना

करहूँ  स्तुति तोरे, श्री गणपति, दीन दुखी के नाथ। 

दारुण  दूर करहुं, मंगलकारी, तुम हो दीनों के  साथ।। 

विघ्न विनाशक नाम तुम्हारा, शुभ करहुं हर बार। 

दीनदयालु, कृपा बरसाओ, जग में हो उजियार।। 

करबो वंदन पारवती  सुत की , मंगल मूर्ति विशाल। 

विघ्न विनाशक नाम तुम्हारो, सिध्दि दाता प्रतिपाल।। 

मूषक वाहन, मोदक भोगी, भाल चंद्र विराज । 

कर बद्ध हम विनय करत हैं, हरहु संकट, आज ।।

जय गजानन बिनवत हम सब, सुनहु अरज पुकार। 

तुमसे ही जग में शुभ मंगल , तुम्हरी जय जयकार ।। 

बुद्धि विवेक के दाता तुम हो, करहु कृपा अभिराम। 

जन-जन के सब संकट काटो, होवे मंगल काम।।

दीन दुखारी तुम ही उबारो, विनती है हमारी । 

तुम बिन काज सफल ना होवे, तुमसे जगत सुखारी ।। 

विघ्न हरो हे गणपति वंदित, सुनहु कृपा से बात। 

भव सागर  से पार लगाओ, तुम ही सुखद प्रभात।।

एकदन्त विघ्नहर्ता हो तुम, महिमा अपरंपार। 

रिद्धि-सिद्धि संग चलत सदा ही, तुम हो सबके प्यार।। 

गौरीपुत्र, गजानन वंदन, करहुं विनीत साभार । 

करुणामय, तुम रहो सहायक, सुमिरन बारम्बार ।।

`डॉ मुकेश असीमित

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