गाँवो में दिखता शीर्षक कविता गाँव के परिद्रश्य को दर्शाती ,आज भी गाँवो को शहरो से श्रेष्ठ होने का आभास कराती है.
“गांवों में दिखता”
(कुण्डली 8 चरण)
गांवों में दिखता मुझे,सच्चा हिन्दुस्तान,
ज़हां फसल लहरात हैं,गेहूं मक्का धान,
गेहूं मक्का धान,आदि खलिहानन मिलते,
गाय बैल वो भैंस,बछेडे घर में फिरते,
दूध छाछ माखन तु,कहीं पर दहि विलोते,
बच्चे खेलें खेल,कहीं पर नन्हे रोते,
“प्रेमी” सरसों तिली आदि कोलू में पिलता,
ये सच्चा आनंद,आज गाँवों में हि दिखता।
रचियता -महादेव प्रेमी
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