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दोस्त और दोस्त की बीबी की तकरार -हास्य व्यंग रचना

सुबह की सैर पर, जब मैं अपने कानों में ठूंसे हुए ईयरफोन पर बॉलीवुड के तथाकथित कानफोडू संगीत के साथ अपने कदमों को ताल में बांधे चल रहा था, तभी मेरा एक दोस्त, जो मेरी एक संस्था का सदस्य भी है, हमेशा की तरह सुबह की सैर पर बीच रास्ते में मिल ही गया। एक औपचारिक अभिवादन के बाद, उसने एक रहस्योद्घाटन किया, “अरे, तुम्हें पता है तुम्हारे खास दोस्त रोमेश के साथ क्या हुआ?” रोमेश, मेरा खास दोस्त, और हम दोनों की दोस्ती की खबर पूरे शहर में आग की तरह फैली हुई थी, साथ ही कुछ लोगों के दिलों में ईर्ष्या की आग भी प्रज्ज्वलित कर रही थी। उसके मुंह से दोस्त के नाम के साथ चटखारे लेकर जो वार्ता की जा रही थी , सुनते हुए मुझे थोड़ी थोड़ी बू उस इर्ष्या की ही आ रही थी। लेकिन एक ऐसा रहस्य जो सिर्फ उसे मालूम था और उसकी भनक मेरे दोस्त ने मुझे नहीं दी, थोड़ा मैं भी लज्जित सा महसूस कर रहा था।

खैर, जल्दबाजी में उसका रहस्योद्घाटन सुना, पता चला कि रोमेश की पत्नी और रोमेश के बीच झगड़ा हुआ और झगड़ा इतना बढ़ गया कि चार दिन से रोमेश को छोड़कर मायके चली गई है। मैं एक शिकायत भरे लहजे में आ गया था लेकिन फिलहाल तो नारदमुनि का रोल निभा रहे उस परिचित को विदा करके वापसी में सोच रहा था, “यार रोमेश ने बताया ही नहीं, चार दिन हो गए भावी रूठ गई, मायके भी चली गई।” सच पूछो तो थोड़ी बहुत जलन भी हो रही थी,की ये सोभाग्य मेरी जिंदगी में क्यों नहीं आता है | हर बार हम दोनों के परिवार में मियां-बीवी के बाय डिफॉल्ट झगड़े जो कि गृहस्थी के इंजन में एक प्रकार से ग्रीसिंग का काम करते हैं, मध्यस्थता के आदान प्रदान से सुलझ जाते हैं। मध्यस्थता में करना कुछ नहीं होता, मुझे और रोमेश को बस बिना किसी बात की जड़ को खोदे उए कि झगड़े की वजह क्या है, बस एक शब्द रामबाण सा ,ब्रह्मास्त्र सा ‘सॉरी’ बोलना होता । एक बात कहूँ अंग्रेज भले ही देश छोड़ कर चले गए , लेकिन लगता है अंग्रेजों ने यहाँ दो चीजें सबसे महत्वपूर्ण विरसत के रूप में छोड़ी है, उनमें से एक चाय है और दूसरा ‘सॉरी’।

व्यंग्यात्मक लहजा में हास्य दृष्टांत: दोस्ती के नए मोड़

खैर, थोड़ा बड़बड़ाते हुए मैं सीधा घर न जाकर रोमेश के घर गया। अपनी शिकायतों के अम्बार को उडेलने ही वाला था तो देखा रोमेश आराम से कुर्सी पर धंसा हुआ, हेडफोन कानों में लगाए कोई अंग्रेजी धुन लैपटॉप पर लगाए ,मस्ती में बेखबर सा ,कुर्सी पर ही अपनी टांगों को बार बार उठाकर डिस्को डांस की विभिन्न मुद्राएँ कर रहा था। मेरे आते ही सकपका गया, तुरंत हेडफोन नीचे उतारा। मुझे बिठाया, बोला, “यार क्या करूँ, मुकेश भाभी चली गई, पता है चार दिन हो गए।” मैंने कहा, “कैसे क्या हुआ, इतनी बार झगड़ा हुआ पहले भी, इस बार मुझे क्यूँ नहीं बुलाया, फोन पे बात करा देता।” बोला, “यार मौका ही न मिला, वो मई भड़की हुई आग में पानी डालता उस से पहले ही जलती आग में अपना सामान बांधकर निकल गई।” खैर, मैं उसे सांत्वना देते हुए बोला, “कोई बात नहीं, मैं बात कर लूँगा।” उसने कहा, “नहीं यार, वो नहीं मानेगी, मैं रोज बात कर रहा हूँ, न सिर्फ मैसेज पर ही उसे रोज ‘मिस यू’ का संदेश भी दे रहा हूँ, उसका जवाब नहीं आ रहा।” मैंने कहा, “फोन किया क्या?” बोले, “नहीं, फोन नहीं किया, शायद वो उठाए नहीं।” मुझे कहीं लगा शायद मैं जितना सोच रहा हूँ उतनी स्थिति भयावह नहीं है, रोमेश छुपाने की कोशिश कर रहा था लेकिन अंदर से कुछ खुश सा नजर आ रहा था।

जब उसने कहा, “अरे छोड़ो यार, थोड़े दिन की बात और है, वो आ जाएगी हार कर, तुम चिंता न करो। अच्छा बताओ तुम्हारा कैसा चल रहा है?” मैंने कहा, “एज यूजुअल।” उसने कहा, “चलो तुम्हें पिज्जा खिलाता हूँ।” फ्रीज में से पिज्जा निकाल कर लाया , बोले चार दिन से पिज्जा, बर्गर, चाउमीन सब ट्राई कर चुका हूँ। खैर, जल्दी से पिज्जा निपटाकर मैंने उस से विदा ली तो विदा करते हुए उसने कहा, “यार, आ जा शाम को, क्या कर रहा है, घर पर आ जा न, कुछ और भी दोस्त आ रहे हैं, पार्टी रखी है।” घर वापसी में रास्ते में ही सोचने लगा, भाभी जी को फोन करता हूँ, बहुत परेशान है दोस्त यार, चार दिन से बेचारा पिज्जा खाकर काम चला रहा है। इतना दुखी कि अपने दुख को भुलाने के लिए आज उसे पार्टी रखनी पड़ रही है। मुझ से रहा नहीं गया, फोन घुमा दिया भाभी जी को। “भाभी जी, घर आ जाओ, रोमेश की हालत बहुत खराब है, वो रातों को सो नहीं पा रहा है, पिज्जा ऑर्डर देकर काम चला रहा है खाने का,” भाभी बोली, “भैया, उनका तो एक बार भी फोन नहीं आया न ही कोई मैसेज।” मैंने बात को संभालते हुए और कुछ ज्यादा इमोशन अपनी बातों में भरते हुए कहा, “अरे भाभी जी, डर रहा है, लेकिन उसकी हालत मुझ से देखी नहीं जा रही, बस आप आ जाओ।” भाभी ने कहा, “ठीक है भैया, आप कहते हो तो कल आ जाती हूँ।” मैंने कहा, “नहीं भाभी, आप आज ही आ जाओ शाम तक।” पता नहीं क्यूँ, मैं नहीं चाहता कि उसके दुख की परिणति इतनी हो जाए कि उसे भाभी के वियोग में अपने दोस्तों के साथ दारू पार्टी करने की नौबत आ जाए। खैर, भाभी मान गई शाम तक घर आने का वायदा लेकर ही फोन काटा। इस खुशी को बड़े गर्व से अपनी दोस्ती निभाने के अनूठे प्रमाण के तौर पर अपने दोस्त को परोसना चाहता था इसलिए घर पहुंचने से पहले दूसरा फोन दोस्त को घुमा दिया। “रोमेश, चिंता मत कर, भाभी को फोन कर दिया है, भाभी मान गई और वापस आ रही हैं।” रोमेश थोड़ा अप्रत्याशित लहजे में मेरी आशा के विपरीत थोड़ा दुखी स्वर में बोला, “अच्छा, कब?” मैंने कहा, “आज शाम को ही भाई ।” इसके बाद पता नहीं क्या हुआ, दोस्त का स्वर उखड़ने लगा। बहुत दिनों के बाद उसका चरमोत्कर्ष स्थिति में ही सुनाई देने वाला अभिवादन ‘साले’ से सभी वाक्य शुरू होने लगे धीरे धीरे स्पष्ट सी गालियों के साथ कुछ इस तरह सुनाई पड़ रहे थे, “तेरे से मेरी खुशी देखी नहीं जाती ना— तेरी वाइफ तो कभी जाती नहीं मायके, तुझे दूसरों की वाइफ अगर चार दिन के लिए चली जाए—वो भी नहीं पचती। कमीना है, कमीना ही रहेगा। अरे, पिज्जा बर्गर ऑनलाइन ऑर्डर किए हुए बरसों हो गए, मेरी पसंद का खाना खाना भी तुझे अच्छा नहीं लगा ना, अरे तू दारू नहीं पीता, कम से कम पार्टी में नाच तो लेता जो तुझ से बस एक काम आता है दूसरों की खुशिया छीनना , और पार्टी नहीं करनी थी अटेंड तो पार्टी मत करता, तुझे क्या जरूरत थी भाभी को फोन करके बुलाने की। भाई, इतना कहाँ से दुखी नजर आया तुझे मैं,,,,साले दुखी तो तू था मेरी खुशियाँ देख कर अब देखना जब तेरी वाइफ रूठेगी न दरवाजे पे खड़ा हो जाऊंगा कसम से बाहर ही नहीं निकलने दूँगा, देखना तू… बस ऐसे ही कुछ और वाक्य जिन्होंने मेरे कान लगभग सुनने से इनकार ही कर दिए। मैंने आखिर फोन काट ही दिया इस वाक्य के साथ – “कुछ भी हो यार, भलाई का तो जमाना ही नहीं रहा।”

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