कंसल्टेंसी का व्यवसाय बड़े जोरों पर है। कोई फाइनेंशियल कंसल्टेंट, कोई टैक्स कंसल्टेंट और न जाने तरह तरह के कंसलटेंट मसलन लीगल कंसल्टेंट, स्टॉक मार्केट, कंपनी कंसल्टेंट,ज्योतिष कंसलटेंट, और न जाने क्या-क्या। व्यवसाय के नये अवसर खुल गए हैं। लेकिन सोच कर लगता है कि इस देश में जहाँ सलाह ही एक ऐसी चीज़ है जो खैरात में मिल जाती है, हर गली, हर मोहल्ले, हर नुक्कड़ पर मिल जाती है, चाहे वो चाय की थडी ,पान की दूकान ,नाइ का सलून, सत्संग का पंडाल, शादी की दावत हर जगह जहा सलाह मुफ्त में बांटी जा रही है वहां कोई भला उसका भी कोई व्यवसाय कर सकता है? सलाह लेने के भी कोई कोई पैसे दे सकता है? बात हजम नहीं होती !
ये भारत देश है जहाँ आपको हर महकमे के सलाह एक्सपर्ट गली-गली में घूमते-फिरते मिल जाएंगे, उन्हें बस पता होना चाहिए कि आपको किस विषय पर सलाह देनी है। पलक झपकते ही उस विषय के एक्सपर्ट का अवतार उनकी आत्मा से झलकने लगता है। कोई माँ का लाल एक्सपर्ट अपने डिग्री और अनुभव का पिटारा उनके सामने खोलने की जुर्रत नहीं कर सकता। उनका एक ही तकीया कलाम होता है, “भैया, ये डिग्री की बात नहीं, अनुभव की बात है। जिंदगी में अनुभव जिनको है, उनकी सलाह मानो।” और अपनी सलाह की वैलिडिटी और लम्बी चलने की गारंटी बतौर ये कहना नहीं भूलते, “भैया, हमने खुद बड़े धोखे खाए हैं, खूब ठोकरें खाई हैं, तब जाकर ये अनुभव आया है। तभी हमने कसम खा ली, कम से कम किसी और को तो ये गलतियाँ दोहराने नहीं देंगे।”
इन समाज सुधारकों के आगे आप ऐसे धराशायी हो जाएंगे जैसे भारतीय रुपया डॉलर के सामने हो जाता है।आप घर में हो ,दफ्तर में हो ,बस ट्रेन या रास्ते में, इन्हें पता नहीं कहाँ से भनक लग जाती है की आपको कोई समस्या है,और फिर क्या, ये अपनी जेब में से उन समस्याओं के ऐसे ऐसे हल निकालते है की आखिर में आप समस्या भूल ही जाते है. इन्हें और कुछ नहीं चाहिए बस आप इनकी सलाह सुन लीजिये और दो शब्द धन्यवाद के ,अगर घर पर आये हैं तो एक कप चाय,ज्यादा इनकी डिमांड नहीं ! और हाँ दुबारा ये पूछने की जहमत भी नहीं उठाते की उनकी सलाह से कोई फायदा हुआ या नहीं ,उलटा अगर आप इन्हें पकड़ के इनकी सलाह के तुक्के के नहीं चलने की शिकायत करना भी चाहेंगे तो ये कन्नी काट जायेंगे ,फिर दुबारा आपको तब ही दिखेंगे जब आपको किसी और समस्या ने घेर लिया हो. इस प्रकार इनकी “लग जाए तो तीर नहीं तो तुक्का तो है ही” वाला प्रयोग अनवरत चलता रहता है.
हमारे डाक्टरी पेशे में में भी ऐसे सलाहगीरों की कमी नहीं है। वैसे हड्डी संबंधी मरीजों को तो वैसे ही अपनी समस्या छुपाने का मौका भी नहीं मिलता,हाथ पैर में लगा प्लास्टर सारी दास्ताँ बयां कर देता है ,बस फिर क्या इन लोगों की सलाह शुरू !
ओपीडी में बाहर इनकी जमघट लगी रहती है। मरीजों के एक्स-रे उल्टा पकड़ करके उसका ऐसे मुआयना करेंगे जैसे किसी मर्डर मिस्ट्री को सीबीआई की टीम सुलझा रही हो , या तो डॉक्टर के बताये फ्रैक्चर को गलत साबित कर देंगे या डॉक्टर की नजर से रह गयी ऐसी जगह फ्रैक्चर बता देंगे कि मरीज को लगेगा, यार गलती से अस्पताल में आये। और वहीं पर उनके बताए नुस्खे इस्तेमाल करने लगते हैं। कोई उन्हें देसी पहलवान का पता बता देगा, कोई घर में तेल मालिश, कोई किसी जड़ी-बूटी का नाम। और तो और , कई बार बाहर वेटिंग रूम में ही किसी पहलवान को पकड़ लायेंगे,वो मरीज की हड्डी बिठाने लगेगा,और इसके आस पास दुसरे मरीज इकट्ठा होकर अपनी बारे का इंतज़ार करने लगते है | उनकी सलाह मानकर जब अपने टूटे हाथ-पैरों को गलत जुड़वाकर या टाइट पट्टियों से जोड़कर ये मरीज क्लिनिक पर आते हैं तो उनके मन में रत्ती भर भी सलाह देने वाले के प्रति क्रोध नहीं होता क्योंकि उसने कौन से पैसे लिये, सलाह मुफ्त में दी थी। और उन्हें लगता है कि गलती हमारी ही रही, हम ही उनके निर्देशों को ठीक से समझ नहीं पाए। मसलन, जड़ी-बूटी पानी की जगह ,गाय के दूध से लेनी थी, तेल सरसों की जगह जंगली बबूल का लेना था, आदि आदि।
चूँकि प्रैक्टिस को सालों हो गए है, इन पहलवानों को में अच्छी तरहा जानता हु ,खुद कई बार अपने परिवार में किसी की हड्डी टूटने पर मुझे ही दिखाते है |
एक बार तो हद हो गयी एक मेरे परिचित जो शहर के जाने माने रायचंद थे मेरे पास आये बोले, डॉक्टर साहब आपको एक आदमी का पता बता रहा हूँ , अपने शहर के पास के ही गाँव का है ,उसे एस एम् एस हॉस्पिटल में भी हड्डी जोड़ने के लिए बुलाते हैं ,आप उसे अपना सहायक बना लो ,आपकी प्रैक्टिस में चार चाँद लग जायेंगे, मैंने अपना चाँद स्वरुप माथा पकड़ लिया, पकड़ना तो उस परिचित का गला चाहता था लेकिन उसकी इस मुफ्त की सलाह के अहसान तले दब जो गया था |
कई बार तो हद हो जाती है, मरीज अगर एक से ज्यादा चैंबर में अंदर आ गए , तो मेरी मरीज से वार्तालाप के बीच ही एक मरीज दूसरे मरीज से उसकी बीमारी के बारे में पूछने लगता है और फिर कहेगा, “अरे, इसमें तो फलानी जगह चले जाओ, इनका डॉक्टर के पास कोई इलाज नहीं है।” मरीज बेचारा कन्फ्यूज्ड स्टेज में मेरी तरफ देखता है कि मैं उसे छोड़ दूँ। मैं भी दोनों को ही ओपीडी से बाहर कर देता हूँ कि पहले दोनों ही इस देसी नुस्खे को आजमा लो, फिर यहाँ दिखाने आना।
अजीब स्थिति है इस सलाह की खुजली की। मरीज खुद यहाँ दिखाने आया है और दूसरे मरीज को कह रहा है, “यार, तुम यहाँ क्यों फँस रहे हो, इसके लिए तो बस तीन दिन फलां जड़ी-बूटी घिस के लगा लो या उस देसी इलाजी के पास चले जाओ, या जंगली सूअर का घी लगा लो ,हो जाएगा ठीक।” कहने का मतलब ये सलाहगीर उर्फ़ रायचंद सिर्फ और सिर्फ दूसरों को सलाह देने के लिए हैं, खुद उस पर अमल नहीं करेंगे। ये मुफ्त की सलाह न जाने कितने लोगों की ज़िंदगियाँ बर्बाद कर चुकी है, लेकिन सभी इन सलाहगीरों के ओवर कॉन्फिडेंस की चमक में अंधे हैं।
शादी-ब्याह में हुए विवाद, पति-पत्नी के झगड़ों पर तो ये सलाह के साथ उच्च कोटि के दार्शनिक और प्रेरक वक्ता भी बन जाते हैं। चाहे इनके खुद के घर में पत्नी रूठकर एक महीने से मायके बैठी हो या बेटी का रिश्ता छह महीने बाद ही टूट गया हो, लेकिन दूसरों के मामले में अपनी नाक घुसाने का जो चरम सुख प्राप्त होता है, उसके लिए दिन भर भागे-भागे फिरते हैं कि कोई मिले जिसे पकड़ के सलाह परोसी जा सके। सलाहगीरों के लिए ये भी जरूरी नहीं की आप उनके परिचित रिश्तेदार हो या पड़ोसी हो, अगर उसे पता लग गया की आपको कोई समस्या है तो वो आपको राह चलते रोक लेगा, पकड़ के सलाह परोस देगा,
सलाहगीरों के पेट में हमेशा अपच रहती है, ये भी क्या करें, जब तक सलाह रूपी दस्त से दूसरे को भिगो न दें, इनका हाजमा ठीक नहीं होता। ये सलाहगीर अगर दिन भर कोई मुर्गा न मिले तो शाम को ऐसे मुँह लटकाए घर आते हैं कि बीवी भी समझ जाती है, क्योंकि घर में तो इनकी सलाह कोई सुनता नहीं, ये एक प्रकार से घोषित पागल प्राणी माने जाते हैं।
सलाह के मामले जमीन जायदाद, जौरू, जमीन में सबसे ज्यादा दिखते हैं। कई तो जन्मजात ही इसमें माहिर निकलते हैं, कई बाद में इस परमसुखी घुट्टी को पिला-पिलाकर परहित के परम सुख में लगे रहते हैं। कई बार इन्हें दूसरों की हँसती-खेलती परिवार की जिंदगी भाती नहीं है, इसलिए उसके घर के चक्कर लगाते रहते हैं कि कब कोई घर में विवाद हो और एक पक्ष को पकड़ के उसे ज्ञान की घुट्टी पिलाई जाये, ताकि गृहस्थी में आग लग जाए। फिर उस आग में जो हाथ सेंकने का मजा इन्हें मिलता है, वो मोक्ष प्राप्ति से कम नहीं होता।
आजकल तो रील, व्हाट्सएप शॉर्ट वीडियो की जमघट ने ऐसा इस धंधे को पनपाया है कि जहाँ पहले सलाह मौखिक रूप से दो व्यक्तियों के बीच आदान-प्रदान होती थी, वो अब एक ही समय देशभर में कईयों को ज्ञान पिलाया जा रहा है। सलाह बांटी जा रही है, सलाह आपके घर-द्वार, आपके बेडरूम, वॉशरूम तक पहुँच गई है। कैसे खाना, हगना, मूताना, चलना, सोना, सब पर सलाह। गूगल बाबा को भी फेल कर दिया है। सरकार से भी सलाह ही आ रही है, पानी बचाओ, बिजली बचाओ की सलाह। पानी के संकट और बिजली के संकट में भला इससे बढ़िया सलाह क्या हो सकती है? पानी और बिजली उपयोग में न आएगी , अपने आप समस्या खत्म। और इसलिए नलों में पानी देना बंद कर दिया, तारों में बिजली प्रवाहित करना बंद कर दिया ताकि लोग सलाह पर अमल कर सकें। हमें अपनी जड़ों तक धकेला जा रहा है, हमें वापस पाषाण युग की तरफ, अपनी जड़ों की तरफ जहाँ कोई पानी की चिंता नहीं, बिजली की चिंता नहीं, बस शिकार करो, पेट भरो और बच्चे पैदा करो।
तो भाई अगली बार कोई आपको सलाह दे तो उसे मुफ्त का चंदन मान कर बस घिस घिस कर माथे पर लगाते रहो,थोड़ी देर के लिए गरम माथे को कूल कूल करते रहो ,अब आप कहेंगे की टीवी पर आने वाले एड़ भी तो आपको मुफ्त की सलाह दे रहे है, अब आप आशा करेंगे की इस भारी गर्मी में अमिताभ बचन आपको नवरतन तेल -ठंडा ठंडा कूल कूल लगाने की सलाह दे रहे है तो वो खुद भी लगाएं,नहीं बाबा ऐसा नहीं,मुफ्त का चन्दन सिर्फ दूसरों के लिए !