जैविक संसार में कुछ भी शत प्रतिशत सत्य नहीं होता और न ही कोई सच शास्वत
घातक रोग व व अघातक जीवन प्रभावी रोग
डॉ. श्रीगोपाल काबरा
स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले रोगों की दो प्रमुख श्रेणियां होती हैं –
- घातक, जो शुरू से ही घातक प्रकृति के होते हैं। अल्पकाल में मृत्यु की संभावना लिए।
- अघातक जो धीरे धीरे दीर्ध कालिक जीवन को प्रभावित करते हैं।
घातक श्रेणी के रोग जैसे मस्तिष्क घात, हृदय घात, तीव्र गति का लिवर का वायरल संक्रमण या मस्तिष्क संक्रमण आदि।
अघातक रोग जो धीरे धीरे स्वास्थ्य को प्रभावित कर, अन्य व्याधिया उत्पन्न कर, अल्प आयू में मृत्यु की संभावना रखते हो जैसे मधुमेह, उच्च रक्त चाप, आस्थमा, संग्रहणी, कोरोनरी आर्टरी हृदय रोग, लिवर शोथ आदि।
ये अघातक दीर्घ कालिक रोग भी अंततः या काम्प्लीकेशन होने पर घातक अवस्था में पहुंचने पर घातक श्रेणी में आ जाते हैं। जैसे मधुमेह का रोगी का मधुमेह जनित किडनी फेलियोर, उक्त रक्त चाप जनित हृदय या मस्तिष्क घात, आस्थमा रोगी का राइट हार्ट फेलियोर में जाना आदि।
घातक रोगों और घातक स्थिति मे पहुंचे रोगो का उपचार आधुनिक चिकित्सा में ही संभव, श्रेष्ट व मान्य है। घातक अवस्था के उपचार के लिए आवश्यक सतत मोनिटरिंग से वाईटल पेरामीटर्स मापने के विधियां केवल आधुनिक चिकित्सा में ही उपलब्ध है। हर अग पर रोग के प्रभाव की स्थिति मापने की विधियां ततक्षण उपलब्ध हैं। हृदय के लिए ईसीजी। रक्त में आक्सीजन सेच्यूरेशन के लिए आक्सीमीटर। रक्त मे सोडियम पोटेशियम के लिए एबीजी रक्त परीक्षण। किडनी व लिवर फंक्शन नापने कि विधिया उपलब्ध हैं। कुप्रभावों को आंकने और मापने की सक्षम विधियां ही नहीं, घातक कुप्रभावों के निवारण की औषधीय, उपकर्णीय व उन्नत श्ल्यक्रिया विधियां उपलब्ध है। यह सब आधुनिक चिकित्सा में ही संभव है।
रक्त चाप स्थिर करने की त्वरित औषधियां, हृदय की लय व गति नियंत्रण करने के लिए पेस मेकर, आक्सीजन सेच्यूरेशन स्थिर करने के लिए वेन्टीलेटर, हृदय गति रुकने पर शाक देकर पुनः जीवित करने के लिए शॉक थेरेपी या सीपीआर, प्रमुख कोरोनरी धमनी रुकने पर स्टेटिंग, किडनी फेलियोर के लिए डायालिसिस, मस्तिष्क में रक्त का थक्का जमने या रक्तस्राव के लिए उन्नत शल्य चिकित्सा जैसी प्राणरक्षक सुविधायें केवल आधुनिक चिकित्सा में ही उपलब्ध है।
अधातक रोग जीवन भर चलते हैं। उनका नेचुरल कोर्स अनिश्चित होता है। आधुनिक चिकित्सा के साथ एशियेंट, ट्रेडिशनल व घरेलू उपचार आदिकाल से उपलब्ध हैं। कारगर हैं। मान्य हैं। जिससे रोगी लाभ महसूस करे वह उपयुक्त है, सही है, सार्थक है। चिकित्सकों में इसको लेकर बहस निरर्थक और बेमानी है।
जैविक संसार में कुछ भी शत प्रतिशत सच या सार्थक नहीं होता है। न रोग न उपचार। न ही प्रतिपादित सच शास्वत। शर्तियां इलाज, श.प्र. कारगर इलाज, हर रोग का शर्तिया इलाज, सब जानते हैं, बेकार की बाते हैं। इसको नकारने की आवश्यक्ता ही क्या है।