क्या आप जानते हैं –
– कि आपकी दो आँखें आपके मस्तिष्क के संचार संस्थान के दो दूरदरर्शन स्टूडियों है जिनमें (हर आँख में) 1 करोड़ 80 लाख डिजिटल कैमरे लगे होते हैं। आँख के पिछले भाग में स्थित दृष्टि–पटल (रेटिना) में रोड्स (दण्ड) और कोन्स (तिकोण) कैमरे होते हैं। 60 लाख रंगीन तिकोन कैमरे और 120 लाख स्वेत–श्याम दण्ड कैमरे। रात के अंधेरे में रोड कैमरे ही काम करते हैं, तिकोन नहीं। विटामिन ए की कमी में प्रकाश संवेदक रोहडोप्सिन रंजक नहीं बन पाता जिससे रतोंधी – नाइट ब्लाइन्डनेस – होती है। छछुंदर।
– कि रोड और तिकोन कैमरों के तार ऑप्टिक नर्व में इकट्ठे हो कर मस्तिष्क के दृष्टि संचार केन्द्र में पहुंचते हैं। एक आँख से लगभग डेढ करोड़ तार। लेकिन दाईं आँख के सभी तार दायें मस्तिष्क में और बाई आँख के बायें मस्तिष्क में नहीं जाते। दोनों आंखों के दृष्टि पटल के दायें भाग के दायें मस्तिष्क में और बायें भाग के बांये मस्तिष्क में जाते हैं। दोनो दृष्टि पटल के कनपटी के ओर के भाग के अपनी ओर के मस्तिष्क में और नाक की ओर के उलटी तरफ। दृश्य की गहराई का अनुभव इसी से संभव होता है। दृष्टि का व्यापक फलक – संसार को आँखों में समेटने की जुगत।
– कि आँख की आगे की अर्धगोलार्ध पारदर्शी परत कोर्निया में रक्त वाहनियां नहीं होती। आंसू ही इसे गीला रखतें हैं और उसी से इसे आक्सीजन मिलती है। इसको जीवित रहने के लिए रक्त संचार की जरूरत नहीं होती इसी लिए यह व्यक्ति के मरने बाद भी कुछ घंटों तक जिन्दा रहते हैं जबकि बाकी सभी अंग मर जाते हैं। शरीर का मात्र यही एक अंग है जो मरने के बाद भी प्रत्यारोपित किया जा सकता है। नेत्र दान में केवल यही काम आता है। कोर्निया के सफेद हो जाने पर उसकी पारदर्शिता खत्म हो जाती है, आँख अंधी हो जाती है। कोर्निया र्ट्रांसप्लांट से नेत्र ज्योति लौट आती है। कोर्निया किसी को भी लगाया जा सकता है। नेत्र (कोर्निया) दान महादान है।
– कि कोर्निया को नम रखना आवश्यक है वरना तो सूख कर निश्प्राण हो जायगा। आँख कटोर के कोने में एक अश्रुग्रंथि होती है जो नियमित अश्रु स्राव करती है। अश्रु केवल रोने के समय ही नहीं बनते। पलक झपकने से अश्रु कोर्निया पर फेलते रहते हैं। अगर पलक न झपके तो स्रावित अश्रु उड़ जायेंगे और कोर्निया सूख जायगा। लम्बे समय तक अपलक कप्यूटर पर काम करने वालों को ड्राई आई सिंड्रोम हो जाता है। अश्रु मात्र नमकीन पानी नहीं है। इसमें लाइसोजाइम नामक कीटाणु नाशक होता है जो आँख की रक्षा करता है, वरना तो हवा में व्याप्त कीटाणू नम कोर्निया को कब के लील जायें? ‘पानी गए ना ऊबरे, मोती मानस चून’। ‘आँखों का पानी मरगया’ सारगर्भित मुहावरा है।
– कि कोर्निया के पीछे रंगीन पर्दा आइरिस होती है जिसमें छेद ही पुतली होती है। आइरिस पुतली के आकार को छोटा बड़ा कर आँख में जाने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है। रेटिना पर उकरी छवि की स्पष्टता पुतली की साइज निर्धारित करती है, जितनी छोटी पुतली उतनी स्पष्ट छवि। पुतली से भाव अभिव्यक्ति भी होती है – डर में यह फैल जाती है, खुशी में सिकुड़ जाती है। प्यार में इसका आकार एक होता है, नफरत में दूसरा।
– कि आइरिस पर उकरी पैटर्न हर व्यक्ति की अपनी अलग होती है जैसे फिंगर प्रिंट। जैसे फिंगर प्रिंट से व्यक्ति की पहचान की जा सकती है वैसे ही आइरिस से। कर्मचारियों की हाजरी में काम आने वाले आधुनिक उपकरण आइरिस बायोमेट्रिक विधि काम में लेते हैं। फिंगर प्रिंट और आइरिस की आक्रति बार कोड का काम करती हैं। आपका आधार कार्ड। आइरिस का रंग आनुवांशिक होता है। गोरों की नीली झील सी आँखे। बिराल चक्षु।
– कि आइरिस के पीछे बाई–कोनवेक्स लैंस होता है। इसके पार जाती प्रकाश किरणें इसके फोकल लेंग्थ पर स्थित रेटिना पर चित्र अंकित करती हैं। रेटिना पर बना चित्र उल्टा होता है। पास की वस्तु का चित्र भी रेटिना पर ही बने इसके लिए लैंस का आकार अधिक गोलाकार करना होता है। नजदीक की और दूर की नजर में इसका आकार, फोकल लेंग्थ बदलते हैं। इसे अकोमोडेशन कहते हैं। मस्तिष्क से आये रिफ्लेक्स संवेगों से यह संभव होता है।
– कि मोतियाबिंद (केटेरेक्ट) में जब लैन्स मोती सा सफेद हो जाता है और अपनी पारदर्शिता खो देता है, आँखों से दिखना बंद हो जाता है। देश में यह बुढापे में अंधता का प्रमुख कारण है। सुश्रुत के समय आयुर्वेद में एक सुई डाल कर लैन्स को झटका दे कर आँख में पीछे गिरा देते थे और अंधे व्यक्ति को दिखने लगता था। यह एक बड़ी सफल सर्जरी मानी जाती थी। इस विधि को काउचिंग कहते हैं जो अब वर्जित है, कारण पीछे गिरा लैन्स बाद में गंभीर कॉम्पलिकेशन पैदा करता है। कैटरेक्ट सर्जरी में आज अद्भुत विकास हुआ है – एक छोटे से छेद से औजार डाल कर लैंन्स को घोल कर बाहर निकाल देते हैं। यही नहीं उसी छोटे छेद से कृत्रिम लैंन्स अन्दर फिट कर देते हैं। ऑपरेशन के बाद आप सीधे घर जा सकते हैं, चल फिर सकते हैं। पहले लैन्स निकालने के बाद मोटे कांच के लैन्स का चश्मा लगाना होता था। कैटेरेक्ट आपरेशन करवाये हुए बूढे अलग से पहचाने जा सकते थे, अब पता ही नहीं चलता।
–कि रेटिना पर एक छोटा सा बिन्दु होता है फोविया – मेकुला का मध्य बिंदु – जो रेटिना का सबसे अधिक संवेदनशील भाग होता है। आप जब कुछ पढते हैं तो पूरे पन्ने और उस पर लिखे सभी शब्दों का चित्र दृष्टि पटल पर बनता है लेकिन आप पढतें है एक अक्षर, एक शब्द – यह कैसे संभव होता है? आँखों की अति सूक्ष्म चाल (मूवमेन्ट) यह सुनिश्चित करती है कि उस अक्षर और शब्द की छवि फोविया पर बने, मस्तिष्क केवल उसे ही पढता है। आँखें बहुत आहिस्ता चलती हैं, नजर इच्छित और चिन्हित बिन्दु पर टिकती है, उसकी छवि फोविया पर बनती है, मस्तिष्क में पहंचती है, और वहां से संकेत पा कर नजर आगे बढती है। दृष्टि व्यापक होती है, नजर पैनी।
– कि लम्बे चोड़े आंगन में चलती एक छोटी सी चींटी पर नजरे केंन्द्रित करने की क्षमता और कार्यशैली बड़ी विलक्षण होती है। आँखों के बाहर मस्तिष्क के अति सूक्ष्म नियंत्रण में काम करने वाली 6 मांसपेशियां होती हैं जिनका मस्तिष्क द्वारा बड़ा संयत, सटीक और सतत नियंत्रण एक एक शब्द पर रुक रुक कर नजर केन्द्रित करता है, या किसी चलते हुए लक्ष्य पर नजरें टिकाये रखता है। दो आँखें, 12 मांसपेशिया, 6 नर्वज और 2 मस्तिष्क और उनके बीच अदभुत कार्य समन्वय। संसार को समेटने और उससे सतत सरोकार रखने की विलक्षण व्यवस्था।
– कि आँखें शरीर का सबसे विलक्षण अंग है। आँखें जिनमें सारा संसार समाया रहता है। सागर सी गहरी और दर्पण सी साफ। भावों का सागर, मन का दर्पण। कैसे अभिव्यक्त होते हैं आँखों में भाव? कैसे नजर आते हैं आपको आँखों में प्यार, ममता, अपनापन, उदासीनता, नफरत, भय? मन का भाव कैसे आँखों में स्वतः ही झलकता है? कैसे बोलती हैं आँखें मन की भाषा? मात्र किसी की आँखों में झांक कर एक झलक में हम कैसे भांप लेतें हैं कि वह व्यक्ति क्या सोच रहा है? उसके मन में क्या है? आँखों की पुतली, उसका आकार, पलकें उनका झुकना, उठना, फैलना, आँखों का कोण, नजर की दिशा और दसा, भंवों का सिकुड़ना, तनना, इन सब की सूक्ष्म से सूक्ष्म जुम्बिश से भावो की अभिव्यक्ति होती है, और आपकी सूक्ष्मदर्शी आँखें इन्हें पहचान लेती हैं। भावों का बार कोड। आँखों की भाषा पढने में गुल्जार का सानी नहीं, याद करिए ‘‘हम ने देखी हैं उन आँखों की महकती खुशबू ………… सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो ……. कोई नाम न दो।’’
– कि हाल ही में हुए वैज्ञानिक शोध से मस्तिष्क में दर्पण कोशिकाओं (मिरर सेल्स) को चिन्हित किया गया है, आपकी इन्ही कोशिकाओं में सामने वाले की आँखों, चहरे के भाव, शरीर की भंगिमा का अक्स बनता है और प्रतिक्रिया स्वरूप आपके मस्तिष्क में वही भाव और सोच उभरते है, आप उन्हे पहचान लेते हैं। (प्रेयसी की आँखों के भाव गुलजार के मस्तिष्क में प्रतिबिम्बित हो महक उठते हैं) व्यक्ति एक झलक में आंक लेता है कि सामने वाले के तेवर आक्रामक हैं कि प्यार के। वह मारने वाला है कि गले लगने वाला। आँखें बोलती हैं। उनकी अपनी भाषा, अपनी लिपि, अपनी वर्तनी होती हैं। आँखों की भाषा कवि और आशिक ही नहीं साधारण व्यक्ति भी बांच लेता है। यह यूनिवर्शल होती है, देश विदेश में एक। कवियों के अनुसार तो मरे व्यक्ति की आँखों में भी भाव रहते हैं –
कागा चुन चुन खाइयो, सब तन खइयो मांस
दो नयना मत खाइयो, पीव मिलन की आस।