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दुविधा (लघु कथा)

दुविधा लघु कथा


रोहित की पढ़ाई पर मां बाप ने खूब पैसा खर्च किया,रोहित ने भी खूब मेहनत से पढ़ाई की।सोचा था अच्छी सी सरकारी नौकरी मिलेगी।मगर ये हो न सका।शहर में बहुत हाथ पैर मारे तो मुश्किल से किसी भामाशाह नामक सेठ के यहां नौकरी मिली।तनख्वाह कम थी लेकिन सेठ ने पक्की नौकरी और नियमित तनख्वाह का वादा किया था।
शुरू शुरू में तनख्वाह नियमित थी और रोहित भी मन लगा कर काम करने लगा।तनख्वाह कम होने का मलाल तो था लेकिन कम से कम नौकरी तो मिली इस बात का सुकून भी था।
साल भर बीतते -बीतते भामाशाह सेठ की नीयत बदल गई। सेठ तनख्वाह में देरी करने लगा। तनख्वाह में
छ -छः महीने की देरी होने लगी।तनख्वाह देता भी तो काम मे नुख्स निकाल कर वेतन काटने लगा।
फिर एक दिन रोहित ने अपने गांव से कुछ भाइयों को बुलाया तो सेठ भड़क गया और रोहित पर ही चोरी का इल्जाम लगाने लगा।रोहित ने काम छोड़ने के लिए कहा तो सेठ ने कहा ,”काम कैसे बंद करोगे,2 साल का कॉन्ट्रैक्ट जो है”।परेशान रोहित थाने गया तो थानेदार ने भी उसे हड़का दिया।थानेदार का तो रात दिन सेठ के साथ खाना पीना था।
रो -धोकर रोहित ने जैसे तैसे दो साल निकाले।बकाया तनख्वाह के पैसे के लिए आज भी दर -दर भटक रहा है।भामाशाह सेठ की नौकरी छोड़ दी है।अब एक नए युवा सेठ आयुष्मान के यहां से नौकरी का आफर मिला है।आयुष्मान सेठ का कारोबार कई राज्यों में फैला है। नौकरी की शर्तें लगभग वही है।रोहित दुविधा में है कि आयुष्मान सेठ के यहां अपमान,अन्याय और शोषण वाली पहले जैसी नौकरी का खतरा उठाये या फिर खुद का कोई छोटा मोटा काम शुरू करके अपना जीवन सम्मान से बिताए।

-डॉ राज शेखर यादव
फिजिशियन एंड ब्लॉगर

(This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events, locales, and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events is purely coincidental.)

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