Duniyadaari (दुनियादारी ) kundili रचना इस दिनिया के मायाजाल को देख कर बनायीं है ,कैसे मनुष्य इस मायाजाल में फंसकर अपनी साड़ी जिंदगी व्यर्थ क्र देता है और जो उसका परम उद्देश्य इस जीवन में अपने आपको पहचानने का है उसको भूल गया है.
“दुनिया दारी”
दुनिया दारी की व्यथा,कछू समझ नहिं आय,
गये जारहे जायंगे,कर कर घने उपाय,
कर कर घने उपाय,चला विन नीति न जाने,
समझा नहिं खुद कभी,लगा दुनियां समझाने ,
कपट जाल की चाल,चला दुनियां को रिझाने,
खुद को नहिं पहचान,सका वह रव पहचाने।
“प्रेमी” अव भी समय,छोड़ ये माया सारी,
खुद की तरफ देखो, न देखो दुनियां दारी।
रचियता- महादेव प्रेमी
Pingback:सांप और सीढ़ी (मोक्ष पाटम) snake and ladder खेल - Baat Apne Desh Ki