चैम्बर में अपनी एकमात्र कुर्सी पर धंसा ही था कि एक धीमी आवाज आई, “में आई कम इन सर ?” नजरें उठाकर देखा तो आगन्तुक मेरे सर के ऊपर खड़ा मुझसे अंदर आने की अनुमति मांग रहा था। शक्ल से दीन-दुखी सा, घबराया हुआ, जर्द चेहरा, आंखों में उदासी और शरीर थोड़ा सा कांप रहा था. देखते ही समझ में आ गया , वह एक फार्मा कंपनी का प्रतिनिधि था। उसके हाव-भाव से साफ़ नजर आ रहा था कि वह नई नई भर्ती है और आज पहली बार उसे बिना अपने सीनियर के अकेले मैदान को फतह करने भेजा गया है। उसकी शर्ट मैली सी लेकिन उसके ऊपर कंपनी की ही भेंट की हुई टाई चमक रही थी.जेब का अधिकांश भाग कंपनी ने अपने लोगो से छुपाए रखा था, उसी जेब में से झांकता हुआ एक बॉल पेन, जिसकी कैप के ऊपर भी कंपनी का लोगो था। कंपनी का वश नहीं चला ,नहीं तो गालों पर भी कंपनी भक्ति को दिखाने के लिए लोगो चिपका देते ,जैसे हम देशभक्ति दिखाने को गालों पर तिरंगा चिपकाते हैं। अभिवादन शैली,संवाद शैली,बॉडी लैंगुएज ट्रेनिंग आदि के लम्बे चलने वाले सेसनों में उसे काफी दिन तक पेला हुआ था . हालांकि संवादों के रटने में और कुछ झिझक के कारण उसका प्रथम अभिवादन मुँह पर उच्चारण होने में देरी हो गई. संवाद भी बॉडी लैंग्वेज से मेल नहीं खा रहे थे, इसलिए चैंबर में अंदर पहले घुस चुका था फिर घुसने की परमिशन मांग रहा था। मेरे साथ यह रोज की घटना है.मेरा OPD का निठल्लापन या मेरा व्यवहार कंपनियों को पसंद आ गया था .इसलिए ऐसे नए रंगरूटों को रिक्रूट करते ही ट्रेनिंग के प्रथम प्रोबेशन फेज में मेरे चैंबर में भेजते रहते हैं। मैंने उसे अपनी उखड़ी सांसों को संयत करने की सलाह देते हुए बैठने को कहा. चाह रहा था थोड़ी देर वो तसल्ली से बैठ कर अपने आपको कम्फर्ट करे लेकिन शायद उसे जल्दी थी. वो जल्दी से अपना काम निपटकर इस चक्रव्यूह से बाहर निकलना चाहता था. इसलिए दूसरा संवाद दागा,- “सर आज तो विशेष गर्मी है। सूरज आग उगल रहा है। मौसम की भविष्यवाणी ये आ रही है की शायद आज शाम को बारिश हो जाए।” मैं सोच रहा था अगर ये मौसम नहीं होता तो दुनिया में आधे लोग तो एक दूसरे से संवाद ही स्थापित नहीं कर पाते। आपको चैंबर में बैठे बैठे मौसम का हाल बताने वाले इन दवा प्रतिनिधियों का मैं हृदय से सम्मान करना चाहता हूँ। मैंने भी उसके मौसमे हाल बयान करने पर आभार स्वरूप सर हिलाया. कृतज्ञटा से पूर्ण नजरों से देखा और बोला, “चलो आपने अच्छी बात बताइ, मैं तो सोच रहा था आज का दिन भी इस गर्मी में झुलसते निकल जाएगा।”
मेरे साथ संवादों की इस सुलभ कनेक्टिविटी के स्थापित हो जाने से उसकी आँखों में चमक आ गयी. उसे लगा की जैसे मिशन इम्पॉसिबल में उसने चांद फतह कर लिया हो। मैंने कहा “चलो बताओ अपनी कंपनी के प्रोडक्ट के बारे में।” उसने झिझकते हुए अपने बैग में से एक फ्लायर निकाल कर मेरे सामने परोस दिया। मैंने कहा “नहीं नहीं आप मुझे प्रत्येक प्रोडक्ट की डिटेल बताओ, मैं भी आज उसका दिन बनाना चाहता था।” उसने झिझकते हुए फोल्डर निकला और एक एक पन्ने को पलटते हुए उसमें लिखे प्रोडक्ट के डिस्क्रिप्शन को ऐसे पढ़ रहा था जैसे कि कोई प्राइमरी क्लास का बच्चे को अंग्रेजी का शेक्सपीयर का ड्रामा पढ़ने को कह दिया हो। बीच बीच में मेरी हूँकार से उसका मनोबल बढ़ता गया.उसने मेरे उत्साह को ठंडा करने की कोई कसर नहीं छोड़ी. उसने पूरे फोल्डर में ऑर्थो, मेडिसिन, गायनीकेलोजी , डर्मा सभी ब्रांच के प्रोडक्ट जो उसकी कंपनी ने निर्मित किए थे, सभी प्रोडक्ट के बारे बताने लगा .बाहर मरीजों की भीड़ इकट्ठा हो गई थी. जैसे तैसे उसने अपने काव्य को पूरा पढ़ा, फिर आशा भरे निगाहों से मेरी तरफ देखने लगा। अब तक बोलते बोलते उसका गला सूख गया था, मैंने उसे ठंडा पानी पिलाया। उसे आत्मीयता से विदा किया साथ ही एक आशा भरा वायदा भी किया की हाँ मैं कुछ प्रोडक्ट के बारे में जरूर सोचूंगा. ऐसा लगा जैसे किसी को खुशी देने के लिए कोई पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं होती, थोड़ा सा वक्त भी अगर हम दे दें तो शायद वह उनके जीवन में बहुत मायने रखता है।