कोविड 19 विषाणु रोग प्रतिरोध अर्जित करने की क्षमता जन्मजात होती है
इम्यूनिटी, रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता। रोग रोधक क्षमता और रोग प्रतिरोधक क्षमता। शारीरिक किसी भी क्षति को रोकने की जन्मजात रोधक क्षमता और परिवेश ़में पनपते रोगाणुओं से लड़ने की प्रतिरोधात्मक क्षमता। इन्हें नेचुरल या नैसर्गिक और एक्वायर्ड या अर्जित इम्यूनिटी की संज्ञा दी जाती है। नवजात शिशु में क्षति रोधक क्षमता पूर्णतया विकसित होती है। गर्भ के सुरक्षित परिवेश से बाहर आते ही उसका सामना असंख्य जीवाणुओं/रोगाणुओं से होता है और वह सहज ही हर रोगाणु के खिलाफ प्रतिरोधात्मक क्षमता विकसित करता है। शुरू में मां का दूध सहायक होता है। सोचने की बात है कि जब नवजात शिशु यह कर सकता है तो हम क्यों नहीं?
शरीर में रोगाणुओ के खिलाफ प्रतिरोधात्मक शक्ति अर्जित करने के लिये एक व्यवस्थित और विकसित तंत्र होता है। देश के रक्षा संस्थान के समकक्ष रक्षा संस्थान। फौज का शरीर में प्रतिनिधित्व करती है रक्त में सतत् प्रवाहित श्वेत कोशिकाओं की फौज। करोड़ों कोशिकाएं रोज बनती हैं और अपना सेवा काल समाप्त कर उत्सर्ग हो जाती है। रोगाणुओं के खिलाफ प्रतिरोधात्मक शक्ति हांसिल करने का जिम्मा लिम्फोसाइट श्रेणी की श्वेत कोशिकाओं का होता है।
हर रोगाणु/विषाणु की जैनेटिक संरचना विशिष्ट होती है। यही उसकी पहचान होती है। जैसी देश की सीमाओं पर रक्षक सेना होती है वैसी ही शरीर की सीमाओं पर श्वेत कोशिकाएं। श़त्रु रोगाणु के सीमा पार करते ही ये कोशिकाएं रोगाणु की जैनेटिक पहचान कर लेती हैं और इसे बी लिम्फोसाइट्स को प्रेषित कर देती हैं। बी लिम्फोसाइट कोशिका विलक्षण प्रतिभा और क्षमता की धनी होती है। रोगाणु का जेनेटिक कोड मिलते ही उसे आत्मसात कर ये कोशिका उस विशिष्ट रोगाणु/विषाणु को समर्पित हो उसके खिलाफ एन्टीबोडी बनाने की फैक्ट्री में परिवर्तित हो जाती है। एक और विलक्षण परिवर्तन इन बी लिम्फोसाइट कोशिकाओं में होता है। यह स्वतः ही विभाजित हो कर अपने प्रारूप तैयार करने लगती है। इनमें उस विशिष्ट रोगाणु की जैनेटिक कुंडली आत्मसात होती है, अतः इन्हें मैमोरी (स्मृति) कोशिका की संज्ञा दी जाती है। रोगाणु पर विजय पाने के बाद उस रोगाणु को समर्पित ये मैमोरी काशिकाएं रक्त शिराओें के बाहर जा कर अंगों में स्थापित हो जाती हैं जहां लम्बे समय तक जीवित रहती हैं। भविष्य में उस रोगाणु के फिर आक्रमण पर ये मैमोरी कोशिकाएं जागृत हो उसी एन्टीबोडी की बौछार करने लगती हैं। यह होती है उस रोगाणु के खिलाफ प्रतिरोधात्मक क्षमता – अर्जित इम्यूनिटी – जो बार बार संक्रमण से शाश्वत हो जाती है। बनती है और बनी रहती है।
एन्टीबोडी बनाने के अलावा इस इम्यूनिटी का एक और पक्ष होता है। बी लिम्फोसाइट्स के समकक्ष और सहायक टी लिम्फोसाइट्स होते हैं। ये मारक (किलर) कोशिका का रूप धारण कर लेते हैं। एन्टीबोडी द्वारा चिह्नित किये गए रोगाणु को मारकर उसकी सूचना मैमोरी कोशिकाओं के भेज देते हैं, कितने आतंकियों को ढेर किया इसकी सूचना। किलर कोशिकाएं इस प्रकार सहायक कोशिकाओं का पार्ट भी अदा करती हैं।
इम्यूनिटी स्वतःस्फूर्त रक्षा प्रक्रिया है न कि कोई तत्व। कोरोना वायरस के शरीर में प्रवेश करने पर ही ये कोशिकाएं उसके खिलाफ इम्यूनिटी अर्जित करेंगीं। जब तक वैक्सीन के माघ्यम से कोरोना की जेनेटिक कुंडली कृत्रिम रूप में बी कोशिकाओं को उपलब्ध नहीं करायी जाती तब तक इस वायरस से लड़ने का मात्र एक ही उपाय है, संक्रमित हो कर इम्यूनिटी अर्जित करना। संक्रमण घातक न हो इसके सक्षम उपाय यही हैं कि विषाणुओं का घनत्व यथा संभव कम किया जाए और जहां इनका घनत्व अधिक होने की संभावना हो, जैसे संक्रमित व्यक्ति या संक्रमण संभावित व्यक्ति, उससे दूरी बनाये रखी जाय।
लिम्फोसाइट्स के अतिरिक्त बाकी सभी श्वेत कोशिकाओं की श्रेणियां सामान्य रक्षण प्रक्रिया में संहार, भक्षण, सफाई, मरम्मत, संवर्धन और सुधार क्रिया में भाग लेती हैं। नेचुरल (नैसर्गिक) इम्यूनिटी का आधार यही है। एक्वायर्ड या अर्जित इम्यूनिटी का जिम्मा लिम्फोसाइट श्वेत कणों का है। बी कोशिकाओं की दीक्षा लिम्फनोड्स और स्प्लीन में होती है और टी कोशिकाओं की थाइमस में। रक्षा संस्थान के सुनियोजन का भार अस्थि मज्जा का है। कैंसर रोधक दवाइयां, रेडियेशन, कुछ हेवी मेटल्स अस्थिमज्जा को हानि पहुंचा कर रक्त कोशिकाओं के निर्माण में बाधा उत्पन्न करते हैं। रक्षक श्वेत कोशिकाओं का दैनिक निर्माण नहीं हो पाता। समस्त रक्षा तंत्र तहस नहस हो जाता है। ऐसे में आवश्यक उपचार उपलब्ध हैं। लेकिन जिनमें अस्थि मज्जा अपना कार्य कर रही है, उनमें सजग और जागृत रक्षा संस्थान होगा। रक्षा संस्थान शरीर की अनुशासित सेना है। यह सामान्य सामाजिक उथुल पुथल, अवसाद, खान पान आदि से प्रभावित नहीं होती। अर्जित इम्यूनिटी की प्रक्रिया सदैव जागृत रहती है। उसे बाहर से और जागृत नहीं किया जा सकता न ही रोगाणुओं के खिलाफ अर्जित इम्यूनिटी को पहले से बढाया जा सकता है। जिस भी कर्म से आपका आत्म विश्वास बढे उसे अवश्य करें, संक्रमण की इम्यून प्रतिक्रिया सहज और सुखद होगी। सकारात्मक सोच सदा अच्छा होता है।
कोविड 19 अति शूक्ष्म वाइरस होता है, इतना छोटा कि सुई की नोक पर 50 लाख समा जाएं। इसका आवरण ही इसका कवच होता है। अपने विशिष्ट आवरण की बदौलत यह श्वास कोशिकाओं से चिपक कर उसमें छेद कर देता है, आर एन ए वायरस कोशिका में घुस जाता है और कोशिका की आर एन ए को हथिया लेता है। जीवित हो उठता है, प्रजनन करता है। कोशिका में घुसने के बाद हमारा इम्यून सिस्टम इसे पहचान नहीं पाता। बाहर आने पर ही पहचानता है। एन्टीबोडीज इसके कवच को ध्वस्त कर देती हैं।
मानव शरीर में जहां कोरोना विषाणु की अतिसक्रियता चिंता का विषय है, मानव शरीर के बाहर इसकी निरीहता और लाचारी का लाभ हम उठा सकते हैं। शरीर में इनके प्रजनन की शक्ति विलक्षण होती है। लेकिन यह विषाणु न चल सकता है, न उड़ सकता है। न ही शरीर के बाहर प्रजनन कर सकता है और न जिंदा रह सकता है। यह जल के या धूल के कणों पर बैठ कर ही वातावरण में फैल सकता है। हम वातावरण में धूल और जल के कणों नियंत्रण कर विषाणु का वातावरण और परिवेश में घनत्व और प्रसार रोक सकते हैं। इसके लिए जो नियम हैं उनका पालन ही एक मात्र सार्थक उपाय है। इसके फैलने का मूल माध्यम हवा है। अतः जितना कम वाहनों की आवा जाही होगी उतना ही कम यह वातावरण में फैलेगा। और क्योंकि यह मानव शरीर में ही जीवित रहता है, जितनी कम मनुष्यों की आवा जाही होगी उतने ही कम विषाणु हवा में आ पायेंगे (वायरल लोड कम होगा); मास्क पहनना इसमें सहायक होगा।
विषाणु के खिलाफ अर्जित इम्यूनिटी को प्रभावित करने की चेष्टा, प्रचारित और प्रसारित इम्यूनो मोड्यूलेटर्स की सार्थकता आंशिक है, कोरोना वायरस से पार पाने का सक्षम उपाय नहीं। इस विषाणु से लड़ने की क्षमता तो अर्जित ही करनी होगी। हर नये रोगाणु का आगमन, आक्रमण, एक चुनौती होता है। इसके लिए सजग रहना, उसे पहचानना, स्वीकार करना और सामना करना ही अर्जित इम्यूनिटी है। यह ही हमारी सार्थक क्षमता है।
डॉ. श्रीगोपाल काबरा
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