अदृश्य जीवों का विलक्षण संसार। मानव अपने बौद्धिक अहंकार में इनके अस्तित्व को तुच्छ मान कर चल रहा था। सोच रहा था, वह सर्वेसर्वा है। सारे जगत का संचालन व नियंत्रण कर सकता है। एक विषाणु – कोरोना वाइरस – ने जीव जगत में मानव को उसकी तुच्छता का अहसास करा दिया। जता दिया कि उनके सहअस्तित्व में ही प्राणी जीवन संभव है। पंचतत्व, जिनसे मानव शरीर निर्मित होता है, इन्हीं से रक्षित है। ये ही रीसाइकिल कर जीवन तत्व उपलब्ध करातें हैं। विश्व की आधी आक्सीजन, नाइट्रोजन, ट्रेस मेटल्स, पोषक तत्व सभी इन्हीं की देन हैं। प्राणियों को जीवन की ऊर्जा जीवाणुओं से ही मिलती है। नये उत्पन्न जीवाणुओं से समन्वय कर उनके सहअस्तित्व में ही उसे जीना सीखना होगा। आज जब हमें इन अदृश्य सहकर्मी जीवाणुओं के बारे में यथेष्ट जानकारी है, जब हमें मालूम है कि उनके बिना मानव जीवन संभव नहीं है, कि प्राणी जगत में इनकी तुलना में मानव जाति एक नगण्य इकाई है, हमें उन्हें उचित महत्व दे कर उनके साथा जीना सीखना होगा।
मानव शरीर असंख्य कोशिकाओं का बना होता है। कोशिकाओं से अधिक संख्या में उस शरीर में जीवाणु निवास करते हैं, सामन्यतः सहअस्तित्व में। मानव शरीर यथार्थ में सभी प्राणियों का शरीर इन जीवाणुओं का घर होता है। जीवाणुओं की अनेक प्रजातियों का घर होता है। शरीर को घर बनाने की एक विशिष्ट, प्रकृति नियत, प्रक्रिया होती है। प्रथम बार जब कोई जीवाणु अन्य प्राणी के शरीर में प्रवेश करता है तो उस प्राणी का रक्षा संस्थान जाग्रत हो उठता है। हर प्राणी की, जीवाणु की भी, जेनिटिक संरचाना विशिष्ट होती है। अपने से अलग गुणसूत्र वाले जीव को वह स्वीकार नहीं करता। अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखने के लिए यह विशिष्ट प्रक्रिया होती है। जब प्राणी को यह बोध होता है कि आगंतुक जीवाणु शरीर को कोई हानि नहीं पहुंचा रहा तो वह जीवाणु के प्रति सहिष्णु हो जाता है। ऐसे में जब जीवाणु अपने अस्तित्व के साथ प्राणी शरीर के लिए, उसके लाभार्थ कार्य करने लगता है तो सहअस्तित्व की स्थिति बन जाती है। संघर्ष, सहिष्णुता और सहअस्तित्व। हामारे शरीर में करोड़ों, अरबों, खरबों जीवाणु इस यथार्थ के साथ रहते हैं। इनके योगदान के बिना प्राणी जीवन संभव नहीं है।
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हर जीवाणु रोगाणु नहीं होता। लकिन क्योंकि ये जीवाणु प्रकृति में सर्वत्र व्याप्त हैं, अतः उनका शरीर में प्रवेश अपरिहार्य है। आगंतुक की जेनिटिक संरचना के अनुरूप शरीर में इम्यून प्रक्रिया होती है। आगंतुक की विशिष्ट जेनेटिक संरचना के विरुद्ध एन्टीबोडीज बनती हैं, केवल उसी जीव के लिए। उस विषम जीन वाले जीव को नष्ट कर उसे शरीर से बाहर निकालने के लिए। उस जीव की जेनेटिक संरचना की सूचना रक्षा संस्थान में सदैव के लिए सुरक्षित हो जाती है, ठीक वेसे ही जैसे अपराधियों के फिंगर प्रिंट। भविष्य में उनके आगमन पर त्वरित पहचान और त्वरित इम्यून प्रक्रिया होती है। मां के गर्भ से निकलने के बाद प्राणी असंख्य जीवाणुओं की पहचान करता है, प्रत्येक के खिलाफ विशिष्ट इम्यून रिसपोंस तैयार करता है, सुरक्षित रखता है। जीवाणु रोगाणु नहीं हो पाते। जीवन एक सतत् संघर्ष है। संघर्ष के नियम निर्धारित हैं, प्रक्रिया व प्रतिक्रिया निश्चित, शाश्वत है।
कोरोना विषाणु नया विषाणु है। तीव्रता से फैलने वाला अल्पावधि में घातक है। मनुष्य से मनुष्य में फैलता है। इसके प्रसार की तीव्रता को रोकना एक बात है, लेकिन अंततोगत्वा इसका प्रसार तो होगा ही और इसी से इससे निजात की संभावना भी बनेगी। प्रक्रिया निश्चित है, शाश्वत है। सड़क, मकान, दुकान और गाड़ी-घोड़ों पर सेनेटाइजर छिड़कने से यह विषाणु लुप्त नहीं होगा। शारीरिक सुरक्षा, जैविक प्रतिक्रिया से ही संभव है। जब तक व्यक्ति इस विषाणु के खिलाफ इम्यूनिटी नहीं विकसित कर लेता, अपने रक्षा संस्थान को तैयार नहीं कर लेता, वह सुरक्षित नहीं है। और यह संभव होगा उसके संपर्क में आने से ही। वही संघर्ष, सहिष्णुता और सहअस्तित्व की प्रक्रिया है। व्यक्तिगत स्तर पर इसके अलावा कोई चारा नहीं है। सामाजिक स्तर पर यह इस विशिष्ट विषाणु की जेनिटिक संरचना के खिलाफ वेक्सीन बनने पर ही संभव होगा। तब तक व्यक्ति को अपनी शारीरिक क्षमता पर निर्भर करना होगा। इसकी घातकता को कम करने का मात्र यही एक उपाय है। चिकित्सक मदद करेंगे, हमें इनके साथ जीना सीखना होगा।
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प्रचारित उपचार – तुलसी-काली मिर्च, अदरक-काली मिर्च, गर्म पेय, योग आदि सब भय दूर कर आपको सहज रूप से इस विषाणु से पार पाने को सक्षम बनाते हैं, आश्वस्त करते हैं, आत्मविश्वासी बनाते हैं। लेकिन इस विषाणु से लड़ने की क्षमता तो शारीरिक रक्षा संस्थान को इस विषाणु विशेष के खिलाफ इम्यूनिटी, प्रतिरोधात्मक शक्ति, अर्जित करने पर ही आयेगी। जन साधारण में अधिकांश में जब ऐसा हो जायेगा तभी प्रसार रुकेगा। विषाणु रहेगा। संक्रमण भी होगा। लेकिन विषाणु उस व्यक्ति विशेष में रोगाणु नहीं बन पायेगा। सहअस्तित्व की स्थिति बनेगी, जैसी कोराना के समकक्ष अन्य वायरसों के प्रति है। सड़कों, दुकानों, मकानों, गाडियों आदि को सेनेटाइज करने का अपना महत्व हो सकता है लेकिन इससे कोरोना विषाणु लुप्त नहीं होगा। लेकिन विषाणु कम होंगे। यह मनुष्य के शरीर में ही जीवित रहता है, सड़कों पर नहीं। यsह भी ध्यान देने योग्य है कि विषाणु न अपने आप उड़ सकता है, न ही चल फिर सकता है। यह हवा में पानी के कणों (एरोसोल) व धूल कणों के माध्यम से ही फैलता है। अतः हवा जितनी स्वच्छ होगी, उसमें पार्टिकुलेट मैटर जितने कम होंगे, जो सांस ली जारही है उसमें कम होंगे उतने ही संक्रमण के आसार कम होंगे। नाक पर मास्क लगाने की स्वयं के लिए उपादेयता यही है।
जीव संसार में सहिष्णुता और सहअस्तित्व ही जीवन है।
डॉ. श्रीगोपाल काबरा
15, विजय नगर, डी-ब्लॉक, मालवीय नगर, जयपुर-302017
Very well penned down
it is an honour to see our esteemed mentor and teacher Dr S G kabra sir on this platform