आज जब कोरोना रूपी महामारी में सभी जगह निरशा और अनिष्चितता का अंधेरा छाया हुआ है। ऐसे में एक पुरानी फ़िल्म बातो बातो में का यह गाना शायद आपको जरूर एक आशावान ऊर्जा से भर देगा।
आप इस गाने को एक बार अवश्य सुने । आप इसे खुद भी गुनगुनाये।
मेरा दावा है यह गाना एक आशा की किरण ,उम्मीद की रोशनी जरूर जगायेगा।
गाना / Title: कहाँ तक ये मन को अंधेरे छलेंगे – kahaaN tak ye man ko andhere chhalenge
चित्रपट / Film: बातों बातों में-(Baaton Baaton Mein)
संगीतकार / Music Director: Rajesh Roshan
गीतकार / Lyricist: Yogesh
गायक / Singer(s): किशोर कुमार-(Kishore Kumar)
कहाँ तक ये मन को अंधेरे छलेंगे
उदासी भरे दिन कभीं तो ढलेंगे
कभी सुख कभी दुख, यही ज़िंदगी हैं
ये पतझड़ का मौसम घड़ी दो घड़ी हैं (२)
नये फूल कल फिर डगर में खिलेंगे
उदासी भरे दिन कभीं तो ढलेंगे
भले तेज कितना, हवा का हो झोंका
मगर अपने मन में तू रख ये भरोसा (२)
जो बिछड़े सफ़र में तुझे फिर मिलेंगे
उदासी भरे दिन कभीं तो ढलेंगे
कहे कोई कुछ भी, मगर सच यही है
लहर प्यार की जो कभीं उठ रही है (२)
उसे एक दिन तो किनारे मिलेंगे
उदासी भरे दिन कभीं तो ढलेंगे
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