चिंता की एक बहुत ही उपयुक्चित व्याख्या विकिपीडिया से ली गयी है
“एक भविष्य उन्मुख मनोदशा है, जिसमें एक व्यक्ति आगामी नकारात्मक घटनाओं का सामना करने का प्रयास करने के लिये इच्छुक या तैयार होता है जो कि यह सुझाव देता है कि भविष्य बनाम उपस्थित खतरों के बीच एक अंतर है जो भय और चिन्ता को विभाजित करता है। चिंता को तनाव की एक सामान्य प्रतिक्रिया माना जाता है। यह किसी व्यक्ति कि किसी मुश्किल स्थिति, काम पर या स्कूल में किसी को इससे निपटने के लिए उत्साहित करने पर, से निपटने में मदद कर सकती है। अधिक चिंता करने पर, व्यक्ति दुष्चिन्ता विकार का शिकार हो सकता है।
लेखक महादेव् प्रेमी जी अपनी अतुकांत कविता शीर्षक “चिंता ” के द्वारा इस पर विशेष प्रकाश डाल रहे है
‘चिंता’
चिंता इतनी ही करो ,
कि काम हो जाय,
इतनी भी ना करना,
कि जिंदगी तमाम हो जाय,
दु:ख का असली कारण,
कभी महसूस नहीं होता,
क्योंकि खुद की गलती का,
कभी एहसास नहीं होता।
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