विश्व मे सबसे सस्ता इलाज़ देकर भी लुटेरे कहलाओ,अगले जन्म मोहे डॉक्टर ना कीजो।??
1947 में जन्म लेने वाले भारतीय शिशु की Life Expectancy 32 वर्ष थी।मतलब उस समय यदि कोई जन्म लेता था तो वैज्ञानिक गणना के आधार पर ये अनुमान लगाया जाता था कि इस शिशु की औसत आयु 32 वर्ष होगी।
आज कोई शिशु भारत मे जन्म लेता है तो उसकी जन्म के समय Life Expectancy लगभग 69 वर्ष है।
32 से 69 वर्ष की इस छलांग में मुख्य योगदान देश के डॉक्टर्स, स्वास्थ्यकर्मियों और हमारी स्वास्थ्य सेवाओं का है।
आज सोशल मीडिया में डॉक्टर्स को बढ़ चढ़ कर कोसने वाले अधिकांश लोग यदि आज़ादी के समय पैदा हुए होते तो 32 वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले निपट चुके होते।इनमें से अधिकांश तो अपना पहला जन्मोत्सव भी नही मना पाते।
हज़ारों ,लाखों महिलाएं असुरक्षित प्रसव के कारण असमय काल का ग्रास बन जाती थी। ज्यादा पुरानी बात नही है , घर पर ही दाई के हाथों प्रसव करवाने का चलन इतना अधिक था कि वर्ष 2005 में सरकार को भोली -भाली जनता को 1400 रुपय का इंसेंटिव देना पड़ा कि आप घर पर प्रसव मत करवाओ ,प्रसूता की जान को खतरे में मत डालो।वो इंसेंटिव काम आया और आज अधिकांश प्रसव अस्पतालों में होते हैं।
21 वीं सदी में जिस देश मे मरीजों को अस्पताल तक लाने के लिए सरकारों को1400 रुपये का लालच देना पड़े उस देश Life Expectancy को 32 वर्ष से 70 वर्ष तक पहुचाने के लिए उस देश के डॉक्टर्स और स्वास्थ्यकर्मियों ने कितना परिश्रम किया होगा उसकी कल्पना करना मुश्किल काम नही है।
आज आप अपने स्मार्ट फ़ोन से किसी भी डॉक्टर या अस्पताल को चोर ,लुटेरा ,डाकू बोल लेते हैं। लेकिन 1947 में जन्मे अधिकांश शिशु आप जैसे भाग्यशाली नही थे, क्योंकि उस समय उनके पास अच्छे डॉक्टर्स और अच्छे हॉस्पिटल्स नही थे। डॉक्टर्स को गाली दे सकने की उम्र तक पहुचने से पहले ही मर जाते थे।
आज़ादी के बाद 70 सालों में बहुत से चीजें बदली हैं।
1980 में प्राइवेट स्कूल्स की सालाना फीस सौ दो सौ रुपये थी आज नर्सरी के बच्चे की भी लाखों में होती है।1990 के आसपास तक 98 प्रतिशत मेंडिकल छात्र न के बराबर खर्च में डॉक्टर बन जाते थे ,आज 50 प्रतिशत से अधिक मेडिकल छात्रों को मेडिकल की पढ़ाई के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं।अपने आसपास देखिए,हर कमोडिटी के रेट्स बढ़े हैं। ऐसे में हेल्थ केअर कॉस्ट का बढ़ना भी लाज़मी है।सरकारी नियम कायदों के कारण हॉस्पिटल्स के खर्चे बेतहाशा बढ़ें हैं।एक ओपीडी क्लिनिक चलाने वाला डॉक्टर जो दिन भर में 50 ग्राम बायो मेडिकल वेस्ट भी generate नही करता होगा उसे साल के हज़ारों रुपये तो केवल उस 50 ग्राम बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए खर्च करने पड रहे हैं।सरकारी अफसर हों या सरकारी कानून हर कोई जोंक की तरह अस्पतालों का खून चूस रहा हैं।लेकिन इन सबके बावजूद हिंदुस्तान के मरीजों को आज भी विश्व का सबसे सस्ता इलाज़ मिल रहा है। लेकिन अब यदि सरकार ने इन अस्पतालों के सर से अनावश्यक नियम कानूनों का बोझ कम नही किया तो या तो ये अस्पताल दम तोड़ देंगे या आपको विश्व का सबसे सस्ता इलाज़ नसीब नही होगा।
-डॉ राज शेखर यादव
फिजिशियन एंड ब्लॉगर
A bitter truth of indian healthcare system