क्या आप जानते हैं –
– कि प्राणी शरीर जिन असंख्य इकाइयों का बना होता है उसे कोशिका कहते हैं?
– कि हर नन्ही–सी, आँखों से न दिख ने वाली, जिसे देखने के लिए माइक्रोस्कोप (सूक्ष्मदर्शी यंत्र) चाहिए, ऐसी कोशिका में भी विलक्षण संसाधन, सामाजिक संरचना और प्रशासनिक व्यवस्था होती है। यानी कण कण में विधि–विधान।
– कि प्राणी शरीर की कोशिका एक दुर्ग के समान एक अभेद दीवार से ढकी नजर आती है। लेकिन दुर्ग की दीवार केवल परकोटे पर ही होती है जब कि कोशिका की प्लाज्मा मेम्ब्रेन चारों ओर। कोशिका ही नहीं उसके अंदर के सारे ऑर्गेनेल्स (नन्हे अंग) भी मेम्ब्रेन आरक्षित होते हैं। लाईपोप्रोटीन सैनिकों और द्वारपालों से आरक्षित मेम्ब्रेन के आर पार आगमन और गमन नियंत्रित होता है। ठीक वैसे ही जैसे देश की सीमाओं पर।
– कि मेहनत की महतत्ता के अनुरूप कार्य विभाजन (डिविजन ऑफ लेबर) कोशिका की आंतरिक व्यवस्था का अनिवार्य अंग होता है।
– कि कोशिका में हर विशिष्ट कार्य के लिए विशिष्ट अंग होता हैं जिसे ऑर्गेनेल् कहते हैं।
– कि जैसे शरीर में विभिन्न कार्यों के लिए विशिष्ट अंग – ऑर्गन्स – होते हैं, वैसे ही हर कोशिका में ऑर्गेनेल्स – अति शूक्ष्म अंग होते हैं। शरीर में कार्य विभाजन अंगों में और कोशिका में कार्य विभाजन आर्गेनेल्स में।
– कि शरीर का हर अंग, कोशिका का हर आर्गेनेल, कृष्ण का सच्चा अनुयाई होता है जो निस्काम, निस्वार्थ भाव, बिना फल की कामना किए अपना कर्म करता है।
– कि कार्य विभाजन के अनुरूप केंन्द्रक (न्यूक्लियस) द्वारा आर्गेनेल्स का लक्ष्य परक सुचारु संचालन और समन्वय, समाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था का विलक्षण प्रतीक है।
– कि हर कोशिका में केन्द्रक के रूप में एक केन्द्रीय सरकार होती है। पूरी कोशिका का कार्य संचालन यहां से होता है।
– कि केन्द्रक द्विव–स्तरीय (डबल मेंम्ब्रेन) सुरक्षा कवच से घिरा होता है। कोशिका का हर आर्गेनेल ऐसी ही मेम्ब्रेन के सुरक्षा कवच से धिरा होता है। हर आर्गेनेल को सुरक्षा और स्वायत्तता इसी से मिलती है। कवच के आर पार आगमन और गमन निश्चित, नियमित और स्व–नियंत्रित होता है।
– कि कोशिका की इस केन्द्रीय सरकार में 23 जोड़ें क्रोमोजोम्स (46 क्रोमोजोम्स) के 23 मंत्रालय होते हैं। जोड़े का एक क्रोमोजोम मा़तृसत्ता और दूसरा पितृसत्ता का प्रतिनिधत्व करता है। प्रजनन एवं स्वास्थ्य मंत्रालय में नर और मादा क्रोमोजोम्स – एक्स और वाई क्रोमोजोम्स – का जोड़ा होता है।
– कि हर केन्द्रीय मंत्रालय (क्रोमोजोम) में सेंट्रोमीयर नाम का मंत्री होता है जो पूरे मंत्रालय का संचालन करता है।
– कि हर मंत्रालय (क्रोमाजोम) में जीन नामक महकमों की एक व्यवस्थित श्रंखला होती है।
– कि कोशिका का हर कार्य संचालन जीन द्वारा संश्लेषित मेसेन्जर आर एन ए के लिखित निर्देश के अनुसरण से होता है।
– कि हर कोशिका में एन्डोप्लाजमिक रेटीक्यूलम नामक ऑर्गनेल में चपटी ट्यूबूल््स (अतिशूक्ष्म नलियां) की संकरी गलियों का जाल होता है जिस में शहर की सड़को की तरह परिवहन की व्यवस्था होती है।
– कि कोशिका का व्यस्त परिवहन संचालन इन्हीं ट्यूबूलर गलियों से होता है।
– कि एन्डोप्लाजमिक रेटीक्यूलम का एक भाग, राईबोसोम्स चिपके होने से खुरदरा होता है जिसे रफ एन्डोप्लाजमिक रेटीक्यूलम कहते हैं।
– कि राइबोसोम्स कोशिका की गलियों में स्थित फैक्ट्रियां होती है जिसमें खान पान व अन्य आवश्यक सामग्री का नियमित निर्माण होता है, ठीक वैसे ही जैसे अक्षयपात्र की रसोइयों में।
– कि निर्माण की गई सामग्री अपने गंतव्य पर भेजने के पहले संग्रहण व पेकेजिंग के लिए गोल्गी कॉम्पलेक्स नामक आर्गेनेल में भेजी जाती है।
गोल्गी कॉम्पलेक्स – पेकेजिंग यूनिट
– कि गोल्गी कॉप्मलेक्स नामक आर्गेनेल, कोशिका का पेकेजिंग यूनिट होता है। एन्डोप्लाजमिक रेटीक्यूलम में निर्मित हर सामग्री यहां पकेजिंग के लिए आती है।
– कि हर समाग्री को गोल्गी कॉम्पलेक्स में मेम्ब्रेन में लपेट कर सील बद्ध कर पैकेट बनाये जाते हैं ताकि रास्ते में किसी प्रकार की क्षति न हो।
माइटोकोंड्रिया – ऊर्जा के स्रोत – पावर हाउस
– कि प्राणी की हर कोशिका का (लाल रक्त कणों के अलावा) अपना पावर हाउस होता है। कोशिका को जीवित रहने और कार्य करने की ऊर्जा उसे अपने इन्ही पावर हाउस से ही मिलती है। पावर हाउस कहें या जनरेटर जितनी ऊर्जा की आवश्यकता उतने ही जनरेटर, मांसपेशियों में सबसे अधिक।
– कि इस पावर हाउस को माइटोकांेड्रिया कहते हैं। मोइटोकोंड्रिया आक्सीजन से ऊर्जा उत्पन्न करते हैं।
– कि इन माइटोकोंड्रिया की अपनी डी एन ए होती है जो प्राणी की अपनी विशिष्ट डी एन ए (जो कोशिका के न्यूक्लियस में होती है) से भिन्न होती है।
– कि माइटोकोंड्रिया की डी एन ए की संरचाना बेक्टीरिया जैसी होती है न कि प्राणी जैसी।
– कि मान्यता है कि प्राणी कोशिका में माइटोकोंड्रिया सचमुच में एक घुसपेटिया बेक्टीरिया है। आदि काल में जब जीवन एक कोशकिए था तब यह आक्सीजन से ऊर्जा बनाने वाला बेक्टीरिया उस कोशिका में घुस गया जो आक्सीजन से ऊर्जा नहीं बना सकता था। कोशिका को यह घुसपेटिया रास आया और उसने इसे आक्सीजन से ऊर्जा बनाने वाले पावरहाउस के रूप में आत्मसात कर लिया। तब से कोशिका के विभाजन के साथ यह भी स्वतंत्र रूप से विभाजित हो कर संतति कोशिका में जाता है।
– कि पिता की पहचान के लिए व्यक्ति के न्यूक्लियर डी एन ए और माता की पहचान के लिए माइटोकोंड्रियल डी एन ए का विश्लेषण किया जाता है। कारण पिता के शुक्राणु की दुम में स्थित माइटोकोंड्रिया निषेचन (फर्टिलाइजेशन) पर ओवम के बाहर ही रह जाते हैं। संतति में माता के ही माईटोकोंड्रिया पहुंचते हैं पिता के नहीं। इस लिए किसी के माता की पहचान माइटोकोंड्रिया के डी एन ए के विश्लेषण से होती है।
– संतति में पिता का डी एन ए शुक्राणु से आता है और शुक्राणु में न्यूक्लियर डी एन ए उसके शीश में ही केन्द्रित होता है और फर्टिलाइजेशन पर केवल सिर ही ओवम में प्रवेश पाता है, माईटोकोंड्रिया तो बाहर ही रह जाते हैं।
कोशिका की क्षमता अनुरूप सामाजिक व्यवस्था विलक्षण होती है – प्राणियों से बेहतर।
डॉ. श्रीगोपाल काबरा
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