कुट्टू पार्टी-हास्य व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 6, 2025 हास्य रचनाएं 0

कुट्टू पार्टी"—व्रत की भूख और श्रद्धा का स्वादिष्ट संगम। यह कोई ‘किटी पार्टी’ नहीं, बल्कि सेंधा नमक और फलाहार के बीच पनपी भारतीय संस्कृति की एक व्यंग्यात्मक परंपरा है। जहाँ महिलाएँ व्रत के बहाने ब्रह्मा जी से लेकर रसोई तक सबको सक्रिय रखती हैं, और ‘कुट्टू का आटा’ बन जाता है धर्म, भूख और जुगाड़ का दिव्य सेतु।

वे स्थान जहां नहीं किया जाता रावण दहन

Vivek Ranjan Shreevastav Oct 4, 2025 Important days 3

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘भोपाल’ का लेख “वे स्थान जहां नहीं किया जाता रावण दहन” भारतीय संस्कृति की विविधता और सहिष्णुता का जीवंत प्रमाण है। इसमें उन स्थानों का वर्णन है जहां रावण को खलनायक नहीं, बल्कि विद्वान, शिवभक्त और पूजनीय रूप में याद किया जाता है — जैसे बिसरख, मंडोर, कांकेर, विदिशा, कांगड़ा और गढ़चिरौली। लेख बताता है कि भारत में हर कथा का एक से अधिक पक्ष होता है।

अमीर दिखने का विज्ञान-हास्य व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 3, 2025 व्यंग रचनाएं 0

अमीर दिखना अब कोई मुश्किल नहीं, बस सही नुस्ख़े चाहिए। घर की सफ़ाई से लेकर कॉफी कप, फ्रिज के एवोकाडो और कॉलर वाले नाइट सूट तक—हर चीज़ आपकी ‘रईसी’ का प्रतीक है। गरीबपने की पहचान जैसे कैलेंडर पर दूध का हिसाब, पन्नी वाला रिमोट, और छेद वाली टी-शर्ट तुरंत त्यागिए। याद रखिए—Fake it till you make it—अमीर दिखने का असली विज्ञान यही है।

मैंने आईफोन क्यों लिया?-हास्य व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 3, 2025 व्यंग रचनाएं 0

“आईफोन क्यों लिया?” इस सवाल का जवाब तकनीकी फीचर्स नहीं, बल्कि स्वैग है। लेखक व्यंग्य में बताते हैं कि आईफोन खरीदने के बाद आत्मविश्वास भी अपग्रेड हो जाता है। अब जेब वही चलती है जिसमें तीन कैमरों वाला आईफोन झाँकता है। पत्नी को घर की मरम्मत टालनी पड़ी, पर आईफोन का बीमा हो गया। असलियत में मोबाइल से ज़्यादा उसकी शोभा और लोगो दिखाना ही सबसे बड़ा फीचर है।

अथ खालीदास साहित्यकथा-हास्य व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 3, 2025 व्यंग रचनाएं 0

“अथ खालीदास साहित्यकथा” आज के साहित्य की खिचड़ी परोसती है। फेसबुकिये कविराज, ट्विटरबाज महंत, सेल्फी–क्वीन और रीलबाज कविगण – सब मंच से उतरकर मोबाइल स्क्रीन पर आ विराजे हैं। आलोचक चुहलबाज बने बैठे हैं और सत्य कोने में जम्हाई ले रहा है। लाइक–पुरुषों की अंगूठी साहित्य की असली मुहर बन चुकी है। यही है साहित्य का आज का फास्ट–फूड संस्करण।

कलियुग का रावण-व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 2, 2025 व्यंग रचनाएं 1

अख़बार ने लिखा — इस बार रावण 'मेड-इन-जापान'! पुतला बड़ा, वाटरप्रूफ, और दोनों पैरों से वोट माँगने तैयार। हम रोते नहीं, तमाशा देखते हैं: रावण की लकड़ी दूर से चमकती है, बच्चे खिलौने समझकर गले लगाते हैं, आयोजक स्टेज पर तालियां खाते हैं। असली रावण तो अंदर छिपा है — वह मुस्कुराता है और हर साल नया रूप धारण कर वोट, पैसा और शो भुनाता है। और सब शांत बैठे।

दिवाली की सफाई: घर, किताबें और कबाड़ी वाला – एक व्यंग्य

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 2, 2025 व्यंग रचनाएं 0

दिवाली का असली मतलब घर की महिलाओं के लिए सफाई है। और सफाई सिर्फ झाड़ू-पोंछा नहीं, बल्कि पति के शौक की चीज़ों को कबाड़ी वाले तक पहुंचाने का मिशन है। किताबें, कैमरे और कबाड़—सब अलमारी की जगह घेरकर ‘अपराधी’ घोषित हो जाते हैं। पति हर बार वादा करता है—“काम आएंगी”—पर सफाई अभियान में उसकी दलीलें भी झाड़ू के नीचे दब जाती हैं।

गरबा का थोथा गर्व-व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 1, 2025 व्यंग रचनाएं 0

नवरात्रि आते ही शहर गरबा-डांडिया के बुखार में तपने लगता है। भक्ति पीछे, डीजे आगे—फ़ैशन शो, सेल्फ़ी, और सार्वजनिक रोमांस! माँ दुर्गा कोने में दो माला, दो अगरबत्ती के साथ कैद; बाकी रात भर ‘चिकनी चमेली’ पर ठुमके। सोशल मीडिया पर दिव्यता, ज़मीन पर कीचड़, ट्रैफ़िक, और बेसमेंट में डूबते बच्चे। गरबा सबको कुछ देता है—नेताओं को वोट, संस्थाओं को चंदा, और समाज को चमक-धमक की चकाचौंध।

दिल का मामला है-हास्य व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 1, 2025 व्यंग रचनाएं 0

"दिल का मामला है जी – एक दिन में कहाँ सिमट पाता है! वैलेंटाइन डे ने तो पूरे सात दिन का सरकारी-सा कार्यक्रम बना दिया है—चॉकलेट डे, हग डे, प्रपोज डे…पर दिल फेंक दिवस की तो भारी कमी है। असली शुरुआत तो दिल फेंकने से ही होती है। काश ओलंपिक में भी ‘दिल फेंक’ प्रतियोगिता होती, तो हम भारतीय गोल्ड की गारंटी से लौटते!"

भीतर का समुद्र-मंथन: विष से अमृत तक की आत्मिक यात्रा

डॉ मुकेश 'असीमित' Sep 30, 2025 Culture 0

समुद्र-मंथन की कथा हमें बताती है कि जीवन की साधना सबसे पहले विष का सामना है—आलोचना, उपहास और असुविधा का। लेकिन यही विष जब धारण कर लिया जाए तो भीतर से रत्न प्रकट होते हैं—प्रतिभा, विवेक, गरिमा, समृद्धि और अंततः अमृत। यह कथा हमें याद दिलाती है कि हर संघर्ष एक नया जागरण है और भीतर की देवी ही हमारी असली शक्ति है।