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Category: हिंदी लेख

Satirical commentary on the contemporary practices of naming in the digital age, where traditional religious ceremonies have been replaced by technological solutions and numerology. The article discusses the transformation from culturally rich naming conventions that connected individuals with their religious and family heritage, to a superficial quest for unique and sometimes meaningless names facilitated by specialized websites and numerologists.

नाम बड़े काम की चीज है –हास्य व्यंग रचना-डॉ मुकेश

इस व्यंग्यात्मक रचना में आधुनिक समय में नामकरण की प्रक्रिया के व्यापारीकरण पर कटाक्ष किया गया है। यहाँ बताया गया है कि कैसे परंपरागत रीति-रिवाजों…

"रेलवे की लाइनों में जीवन के उतार-चढ़ाव की गाथा: प्रौद्योगिकी और व्यवहार की चुनौतियों के बीच, सामाजिक चेहरा और व्यक्तिगत जद्दोजहद का आईना।"

टिकट विंडो की लाइन : व्यंग रचना -डॉ मुकेश गर्ग

“रेलवे की लाइनों में जीवन के उतार-चढ़ाव की गाथा: प्रौद्योगिकी और व्यवहार की चुनौतियों के बीच, सामाजिक चेहरा और व्यक्तिगत जद्दोजहद का आईना।” रेलवे के……

कोई हमारे नाम के आगे भी तखल्लुस सुझाए -व्यंग रचना

‘कोई हमारे नाम के आगे भी तखल्लुस सुझाए -व्यंग रचना’ में लेखक ने अपने लेखनी के सफर को जिस खूबसूरती से बयां किया है, वह…

जब गायन का भूत सिर पर सवार हुआ, तो लगा कि शायद मैं भी किसी रॉकस्टार की तरह मंच पर छा जाऊंगा

जब मुझे गायन का शौक चढ़ा -हास्य व्यंग रचना

“जब गायन का भूत सिर पर सवार हुआ, तो लगा कि शायद मैं भी किसी रॉकस्टार की तरह मंच पर छा जाऊंगा “ यूँ तो……

सेवानिवृत्ति का सुख-व्यंग रचना

सेवानिवृत्ति का सुख” कथा में नायक सेवानिवृत्ति की दोहरी प्रकृति पर चिंतन करता है। जहां कई लोग इसे आराम और स्वतंत्रता के चरण के रूप…

मरने की फुर्सत नहीं -व्यंग रचना

इस लेख में, एक निजी चिकित्सक का व्यंग्यात्मक चित्रण किया गया है जो अपने पेशेवर जीवन में उतने सफल नहीं हैं जितना समाज से उम्मीद…

मंत्री जी  की चुनावी रैली –व्यंग रचना

चुनावी माहौल अब अपने पूरे शबाब पर है। चारों ओर बस एक ही चर्चा की गूंज है – चुनाव! जहां देखो, वहां गरमा-गरम बहसें और…

कुंवारा लड़का,दुखी बाप -व्यंग रचना

ओपीडी में एक सनकी मुठभेड़ में, एक अघोषित आगंतुक, निश्चित रूप से एक परिचित चेहरा, दिनचर्या को बाधित करता है। बिना किसी अपॉइंटमेंट या पंजीकरण…

समकालीन भारत में हास्य-व्यंग्य की पुनर्परिभाषा

हास्य-व्यंग्य: इक्कीसवीं सदी में सामाजिक दर्पण

इक्कीसवीं सदी में, जहां विश्व नित नवीन परिवर्तनों की गोद में खेल रहा है, वहीं हास्य-व्यंग्य की विधा ने भी अपने आवरण को नवीनतम रूप……

मैं और मेरा आलसीपन –अक्सर ये बातें करते हैं

“वास्तव में, आलस्य और मेरे मध्य ऐसा अटूट बंधन है, जैसे कि आत्मा और शरीर का होता है, जो केवल महाप्रलय में ही छूट पाएगा,…