कविता शीर्षक भ्रष्टाचार आज इस व्यापक महामारी जो की कोरोना रुपी महामारी से भी भयानक इस संसार में व्याप्त है,को इंगित करती है.
“भ्रष्टाचार”
कुण्डली 8चरण
भ्रष्टाचारी माफिया,गुण्डे तष्कर चोर,
नाम राष्ट्र निर्माण,के मचा रहे वो शोर,
मचा रहे वो शोर,राष्ट्र निर्माण को लेकर,
कर जन्ता गुमराह,चले ईमान बेचकर,
आफिस या स्टेशन,रेट सव जगह फिक्स है,
रिस्वत ले ईमान,फिर का हे की रिस्क है,
“प्रेमी”जायें जेल ,वो जिनके शुद्ध विचार,
भांग कुएं में घुली,जब फैला भ्रष्टाचार।
रचियता- महादेव प्रेमी
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