“अपनी राह”
कुण्डली 8चरण
अपनी राह स्वयम् चुनो,तव पाओगे मान,
नदियां सागर में मिले,खो अपनी पहचान,
खो अपनी पहचान,नदी सागर में मिलती,
मीठे जल को छोड़,सभी सागर में ढलती,
जव तक अपनी राह,चली पूज्यनिय बनी थी,
प्रथक नदी के नाम,साथ सम्मान वही थी,
“प्रेमी”मार्ग नेक ,तो सफल होयगी चाह,
,सुयश चाहत हो यदि,मत छोडो अपनी राह।
रचियता महादेव प्रेमी