आज मेरी कविता साईं इस संसार के छल कपट मोह माया के जाल में फंसे हुए इंसान की तरफ इंगित करती है. की कैसे इस संसार के मोहजाल में अपनी स्वार्थ सिद्धि में इंसान अपने सही मूल्यों को भूलता जा रहा है
“सांई”
साईं इस संसार में ,मतलब के सब लोग,
स्वारथ सिद्धी हो गयीं,भूल गये संयोग,
भूल गये संयोग,यार मुख सो नहिं वोले,
पैसा जब तक पास,वांह गल में ही डोले,
“प्रेमी”कलयुग माहि, भरोसा कर नहिं भाई,
सवै कुओं में भांग ,घुली इस जग में सांई।
रचियता -महादेव प्रेमी
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