पिता की मृत्यु के बाद कैंसर पीड़ित मां का इलाज और छोटी बहन की देख रेख की जिम्मेदारी किशोर के किशोर कंधो पर आ पड़ी। बेचारा किशोर अचानक आई इस जिम्मेदारी से घबरा गया और सोचने लगा अब मेरी पढ़ाई का क्या होगा कैसे घर की जिम्मेदारी निभाऊंगा, अब सब खत्म हो गया और वह रोने लगा । तभी उसे अपने गुरु की बात याद आई। वे कहते थे कभी जीवन में निराश मत होना, जिंदगी ही शिक्षक है। जीवन के अनुभवों से बड़ा कोई गुरु नहीं है । याद रखो मायूसी के अंधेरों से निकलने के लिए उम्मीद का एक छोटा सा दीपक ही काफी है। इन बातों को याद करके जैसे किशोर के अंदर एक नई ऊर्जा का संचार हो गया और उसने फैसला लिया कि वह दिन में रहमान अंकल के साथ मिलकर अपने पिता के गैरेज को संभाल लेगा और नाईट स्कूल में जाकर अपनी शिक्षा को जारी रखेगा । ऐसा करके व अपने शिक्षक और उनकी शिक्षा का सच्चा सम्मान करेगा ।