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गजल-गुजरा वक्त -डॉ मुकेश असीमित

गुजरा वक्त

वक़्त-ए-पीरी ये कैसी मुलाकातें ,

जैसे हों ख़्वाब-ओ-ग़ुज़िश्ता की बातें ।

चढ़ी जवानी में खो गया वो सफ़र,

अब हैं दिल-ए-ख़राब की बातें ।

छेड़ के तान मधुर वो लौट न पाया,

गुज़र गईं हवा में बस बेचैन रातें ।

‘असीमित’ क्यों करे अब गिला यहाँ,

फकत रह गईं बिखरी मुलाक़ातें ।

~डॉ मुकेश असीमित

वक़्त-ए-पीरी वक्त-बुढ़ापे का वक्त

ख़्वाब-ओ-ग़ुज़िश्ता-गुजरा हुआ सपना

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