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अमरनाथ यात्रा के दौरान खच्चर और पालकी से पहाड़ी रास्तों पर चढ़ते श्रद्धालु, सामने बर्फ से ढकी चोटी, एक तरफ़ टूटे रास्ते पर गिरती युवती, दूसरी ओर बाबा बर्फानी की गुफा के दर्शन करते श्रद्धालु — थके, डरे, लेकिन संतुष्ट। वातावरण में बर्फ, कीचड़ और आस्था का समावेश।

बाबा बर्फानी की वो अद्भुत यात्रा.-भाग द्वितीय

यात्रा संस्मरण में लेखक ने अमरनाथ यात्रा के अनुभव को व्यंग्य, यथार्थ और करुणा के त्रिकोण में पिरोया है। हेलिकॉप्टर टिकट से लेकर खच्चर की…

अमरनाथ यात्रा के दौरान खच्चर और पालकी से पहाड़ी रास्तों पर चढ़ते श्रद्धालु, सामने बर्फ से ढकी चोटी, एक तरफ़ टूटे रास्ते पर गिरती युवती, दूसरी ओर बाबा बर्फानी की गुफा के दर्शन करते श्रद्धालु — थके, डरे, लेकिन संतुष्ट। वातावरण में बर्फ, कीचड़ और आस्था का समावेश।

बाबा बर्फानी की वो अद्भुत यात्रा-भाग प्रथम

इस व्यंग्यात्मक यात्रा संस्मरण में लेखक ने अमरनाथ यात्रा के अनुभव को व्यंग्य, यथार्थ और करुणा के त्रिकोण में पिरोया है। हेलिकॉप्टर टिकट से लेकर…

व्यंग्यात्मक प्रतीकों का एक चित्र जिसमें आम, बंदर, सांप, दीवारें, नेता आदि को व्यंग्य के भाव में प्रस्तुत किया गया है।

आजाद गजल -क्या मिला!

प्रह्लाद श्रीमाली की यह रचना हास्य और कटाक्ष के माध्यम से सामाजिक व्यवहारों, ढकोसलों और राजनीतिक विडंबनाओं पर करारा व्यंग्य करती है। ‘क्या मिला?’ के…

हास्य-व्यंग्य लेख जिसमें आधुनिक गुरु-शिष्य परंपरा की विडंबनाओं को उजागर किया गया है — गुरु अब समाधान नहीं, शॉर्टकट के स्रोत हैं और चेले केवल सौदेबाज़।

गुरु गुड ही रहे चेला चीनी हो गए-हास्य-व्यंग्य

गुरु अब ज्ञान के प्रतीक नहीं, शॉर्टकट और टिप्स देने वाले बाज़ारू ब्रांड बन चुके हैं। चेला बनना खतरे से खाली नहीं, क्योंकि हर चेला…

एक व्यंग्यकार डॉक्टर अपने क्लिनिक में हड्डी जोड़ने की जगह हास्य और व्यंग्य के धागों से रचना बुनता हुआ, किताबों और सामाजिक प्रतीकों से घिरा चित्र।

गिरने में क्या हर्ज़ है-पुस्तक समीक्षा व्यंग्यकार अर्चना चतुर्वेदी द्वारा

‘गिरने में क्या हर्ज है’ डाक्टर मुकेश ‘असीमित’ जी का पहला व्यंग्य संग्रह है । पहले संग्रह के हिसाब से देखा जाए तो डॉक्टर साब…

एक थकी हुई जनता की प्रतीकात्मक छवि जिसमें साहब कुर्सी पर झुके हैं, चपरासी दीवार से टेक लगाए ऊंघ रहा है और बैकग्राउंड में लिखा है – "देव सो रहे हैं..." – दर्शाता है सामाजिक तटस्थता और भाषाई राजनीतिक विडंबना।

देव सो रहे हैं और आम आदमी पिट रहा है….? व्यंग्य

जब देव सोते हैं तो देश की नींव भी ऊंघने लगती है। जनता, बाबू, साहब और चपरासी सब अपनी-अपनी तरह से नींद का महिमामंडन करते…

A humanoid robot gently rocks a wooden cradle with a sleeping baby inside, set in an A.I. lab with digital screens in the background.

अब ए.आई. भी ‘आई’ बन सकती है!-हास्य व्यंग्य

ए.आई. अब सिर्फ इंटेलिजेंस नहीं, अब वह ‘आई’ भी है! तकनीक की इस नई छलांग में अब प्रेम, गर्भ और पालन-पोषण भी कोडिंग से संभव…

पंकज त्रिवेदी के काव्य संग्रह "तुम मेरे अज़ीज़ हो" की समीक्षा, जिसमें आत्मीय प्रेम, विरह, और स्मृतियों का गहन चित्रण किया गया है।

काव्य संग्रह समीक्षा-तुम मेरे अज़ीज़ हो-डॉ मुकेश असीमित द्वारा

“तुम मेरे अज़ीज़ हो” सिर्फ प्रेम का नहीं, आत्म-संवाद, स्मृति और मौन की यात्रा है। पंकज त्रिवेदी की सरल भाषा में छिपे गहन भाव, प्रेम…